East Singhbhum News : ठिठुरते कट रहीं सबरों की सर्द रातें, आवास नहीं, पशुओं के साथ सो रहे
गुड़ाबांदा. प्रभात खबर ने सबर बस्तियों में जाकर उनका हाल जाना
गुड़ाबांदा.
गुड़ाबांदा प्रखंड में करीब 520 विलुप्त होती आदिम जनजाति सबर हैं. अधिकतर सबर झुग्गी-झोपड़ी में रह रहे हैं. उनकी सर्द रातें ठिठुरते हुए कट रही हैं. शनिवार की रात प्रभात खबर ने कई सबर बस्तियों में जाकर उनका हाल जाना. अधिकतर सबरों के पास सरकारी आवास नहीं है. वैसे सबर परिवार फूस की झोपड़ी व चाली में रह रहे हैं. कई झोपड़ी चारों ओर से खुली हुई है, तो कुछ में इंसान और जानवर दोनों साथ रह रहे हैं. कई सबरों के वर्षों पुराने इंदिरा आवास जर्जर हैं. अधिकतर सबर जनजाति के लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. इनकी जिंदगी जंगल से शुरू होकर जंगल में खत्म होती जा रही है. सुबह उठकर जंगल जाकर लकड़ी, पत्ता आदि लाकर बेचते हैं और उसी से गुजारा होता है. राशन का चावल तो मिलता है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या आवास है.धवोडुंगरी सबर बस्ती में तीन बच्चों के साथ गुल्ठू व शनिवारी सबर ठिठुरते मिले
मुड़ाकाटी पंचायत के अर्जुनबेड़ा गांव के धवोडुंगरी सबर टोला निवासी गुल्ठू सबर एक फूस की चाली में अपनी पत्नी शनिवारी सबर समेत तीन बच्चों के साथ ठिठुरते हुए मिले. पूछने पर बताया कि पांच साल से इसी हाल में रह रहे हैं. आवास के लिए आवेदन दिया है, लेकिन नहीं मिला. ठंड में उनकी मुश्किलें बढ़ गयी हैं. इन सबरों को कंबल तक नहीं मिला है.
खुले में रात काटने से जंगली हाथी का भय बना रहता है
सबरों ने कहा कि खुले में सोने से रात में जंगली हाथी का भय बना रहता है. प्रतिदिन हाथी इलाके में विचरण करते हैं. यहां अधिकतर लोग टीबी की बीमारी से पीड़ित हैं. इसके कारण कम उम्र में मौत हो जाती है. सरकार की ओर से दवा मुहैया करायी जाती है, लेकिन आवास और पौष्टिक आहार का काफी अभाव है.सबर जनजाति के कुछ लोगों का नाम आवास लिस्ट है. उन्हें जल्द आवास योजना का लाभ मिलेगा. बाकी जिन लोगों का नाम लिस्ट में नहीं है, उनका नाम जल्द सूची में चढ़ाकर आवास का लाभ दिया जायेगा. –
डांगुर कोड़ाह
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