मत्स्य पालन पदाधिकारी रौशन कुमार ने कहा, तालाब खुदाई व मछली पालन में मिलेगा अनुदान

देवघर : इस वर्ष हुई पर्याप्त बारिश से मत्स्य पालन की संभावनाएं काफी बढ़ गयी हैं. मत्स्य पालन से जुड़ कर कैसे रोजगार पा सकते हैं, मछली पालन को कैसे उद्योग का रूप दे सकते हैं, साथ ही मत्स्य विभाग की क्या-क्या योजनाएं हैं, इन सबकी जानकारी देने शनिवार को प्रभात चर्चा कार्यक्रम के तहत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 3, 2017 9:52 AM
देवघर : इस वर्ष हुई पर्याप्त बारिश से मत्स्य पालन की संभावनाएं काफी बढ़ गयी हैं. मत्स्य पालन से जुड़ कर कैसे रोजगार पा सकते हैं, मछली पालन को कैसे उद्योग का रूप दे सकते हैं, साथ ही मत्स्य विभाग की क्या-क्या योजनाएं हैं, इन सबकी जानकारी देने शनिवार को प्रभात चर्चा कार्यक्रम के तहत प्रभात खबर कार्यालय में अतिथि के रूप में उपस्थित हुए जिला मत्स्य पदाधिकारी रौशन कुमार. उन्होंने बताया कि मत्स्य पालन को उद्योग के रूप में विकसित कर सकते हैं. इसके लिए सरकार की ओर से कई तरह के अनुदान हैं.

मत्स्य विभाग तालाब की खुदाई से लेकर मछली बिक्री तक आर्थिक सहयोग करता है. मत्स्य कार्यालय में आवेदन दिये जाने के बाद जांच के बाद विभाग की ओर से 50 डिसमिल से लेकर दो एकड़ तक जमीन पर खुदाई के लिए राशि मुहैया करायी जाती है.

अगर जमीन 1.30 एकड़ है तो 2.40 लाख रुपये विभाग तालाब खुदाई के लिए देगा. मत्स्य पालक को विभाग अपने खर्च में बीज उत्पादन व व्यावसायिक प्रशिक्षण देगा. विभाग नि:शुल्क मछली का जीरा, भोजन व नेट देगा. तालाब में मछली का जीरा जब थोड़ा बड़ा होगा तो झाकसो फिश नामक संस्थान की ओर से 50 फीसदी अनुदान पर किसानों को मछली का भोजन मुहैया कराया जायेगा.

अगर उत्पादन बेहतर हुआ तो संबंधित किसान को विभाग बाइक खरीदारी के लिए 20 हजार रुपये भी देगा. अगर एक सीजन में 20 टन उत्पादन हुआ तो पिकअप वैन खरीदने के लिए दो लाख रुपये विभाग देगा.
नदियों में करें मछली पालन, विभाग देगा सुविधा
उन्होंने बताया कि अगर आपके पास तालाब के लिए जमीन नहीं है तो मत्स्य विभाग से सदाबहार नदियों में भी मछली पालन करने की योजना है. सालों भर बहने वाली नदियों के किनारे को बांस व नेट से बांध कर मछली पालन कर सकते हैं. विभाग इसमें नेट, मछली का जीरा व भोजन पहले चरण में मुहैया करा देगा. इस योजना का लाभ लेने के लिए पहले कार्यालय में आवेदन देना होगा. उसके बाद विभाग की ओर से गांव में मुखिया की अध्यक्षता में ग्रामसभा कर मत्स्य मित्र का चयन किया जायेगा. 20 लोगों की कमेटी बनाकर पहले खुद अपने खर्च में नदी में बांस गाड़ना पड़ेगा. उसके विभाग नेट व मछली का जीरा मुहैया करा देगा. उन्होंने बताया कि जिले में नौ स्थानों पर यह योजना चल रही है. 10 योजनाओं का स्थल चयन करना बाकी है. ग्रामीण आवेदन दे सकते हैं.
मछली के लिए पर्याप्त भोजन व ऑक्सीजन जरूरी
उन्होंने बताया कि बरसात में लोग मछली का जीरा डाल कर छोड़ देते हैं. भोजन के नाम पर केवल गोबर डाल देते हैं. गोबर से मछलियों को भोजन नहीं, बल्कि पानी में मिश्रित ऑक्सीजन मिलता है. भोजन के लिए धान का गुड़ा व सरसों की खली बोरा में बंद कर उसमें कुछ छेद करने बांस के सहारे तालाब में टांग सकते हैं. इसके साथ ही जीवामृत अपने तालाब व डोभा में नियमित डालना चाहिए. जीवामृत 100 लीटर पानी में 20 लीटर गौ मूत्र, 20 किलो गोबर, एक किलो बेसन, एक किलो गुड़ व एक किलो तालाब की मिट्टी मिलाकर धूप में छोड़ दें, उसके बाद तालाब में डाल दें. इससे मछली को पर्याप्त भोजन मिलेगा व उत्पादन में तेजी से वृद्धि होगी.