Bokaro News : बेरमो में देखने लायक होती थी गुजराती परिवार की होली

Bokaro News : एक समय बेरमो में गुजराती समाज का बड़ा रहता था. इनकी होली देखने लायक होती थी.

By Prabhat Khabar News Desk | March 10, 2025 12:26 AM

बेरमो. एक समय बेरमो में गुजराती समाज का बड़ा रहता था. चनचनी कॉलोनी में गुजरात व सौराष्ट्र से आये 200 से ज्यादा गुजराती परिवार रहते थे. जरीडीह बाजार में भी 300 से ज्यादा गुजराती परिवार रहते थे. 10-20 घर बेरमो स्थित मजदूर टॉकिज के पास थे. गुजराती समाज की होली उस वक्त देखने लायक होती थी. कुछ दिन पहले से ही तैयारी शुरू हो जाती थी. एक दिन पहले शाम में चनचनी चौक में भव्य तरीके से होलिका दहन होता था. होलिका के बीच में एक मटका रखते थे, जिसमें चना, गेहूं व बजरी को पानी से भर कर रख देते थे. होलिका दहन के बाद सुबह उस मटके को निकाल कर उसमें पके अनाज को निकाल कर हर गुजराती परिवार के बीच बांटा जाता था. होली के दिन मुकुंदलाल चनचनी हर गुजराती परिवार के बच्चों को दो-दो रुपये मिठाई खाने के लिए देते थे. होली के दिन चनचनी चौक में एक बड़े ड्राम में भर कर रंग रखा जाता था. यहीं से लोग अपनी-अपनी पिचकारी में रंग भर कर एक-दूसरे के साथ होली खेलते थे. दिन में हर गुजराती परिवार के यहां मालपुआ बनता था. एक-दूसरे के घर लोग आते-जाते थे, जिन्हें मिठाई खिलायी जाती थी. होली के दिन मुकुंदलाल चनचनी श्रमिक नेता बिंदेश्वरी दुबे के चार नंबर स्थित आवास जाकर उन्हें गुलाल का टीका लगा कर बधाई देते थे. जैसे-जैसे गुजराती समाज से जुड़े लोगों की संख्या यहां कम होती गयी, वह परंपराएं भी खत्म होती गयी.

नवजात शिशु को कराया जाता था होलिका का दर्शन

गुजराती परिवार में नवजात शिशु को नये कपड़े पहना कर होलिका का दर्शन अवश्य कराया जाता था. मान्यता थी कि नवजात को भी भगवान भक्त प्रह्लाद का धार्मिक अंश मिले. नवदंपति भी होलिका के चारों ओर सात चक्कर लगाते थे. इनके साथ परिवार के अन्य लोग भी होलिका का चक्कर लगाते थे.

जैन धर्म मानने वाले चले जाते थे पारसनाथ

उस वक्त जैन धर्म मानने वाले गुजराती समाज के लोग होली के दिन रंग-गुलाल से बचने के लिए पारसनाथ (मधुबन) चले जाते थे. वहां होली के अवसर पर तीन दिनों तक धार्मिक महोत्सव होता था. इसमें रंग नहीं खेला जाता था. हालांकि अभी भी पारसनाथ स्थित जैन मंदिर में भव्य होली महोत्सव मनाया जाता है. जहां कई राज्यों के गुजराती परिवारों का यहां दो-तीन दिनों तक जुटान रहता है.

महिलाएं करती थीं स्नेह मिलन कार्यक्रम

पहले गुजराती समाज से जुड़ी महिलाएं भी होली के दिन स्नेह मिलन कार्यक्रम करती थीं. इसमें महिलाएं एक-दूसरे को रंग व गुलाल लगाती थी तथा मिठाई खिलाती थीं.

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