Bokaro News : श्मशान घाट चास में रखी 18 अस्थियों को है ‘मुक्ति’ का इंतजार

Bokaro News : अस्थियों के अस्तित्व पर संकट, धीरे-धीरे मिटने लगे हैं कलशों पर लिखे परिजनों के नाम-पते.

By ANAND KUMAR UPADHYAY | September 19, 2025 11:07 PM

सुनील तिवारी, बोकारो, ये दु:ख काहे खत्म नहीं होता…हिंदी फिल्म मसान का यह पॉपुलर डायलॉग गरगा नदी किनारे स्थित श्मशान घाट-चास में रखी दो दर्जन से अधिक अस्थियों पर शत-प्रतिशत सटीक बैठती है. मतलब, जीते-जी जो सांसारिक समस्याओं का सामना किया, तो किया हीं, मरने के बाद भी कष्ट खत्म नहीं हो रहा है. श्मशान घाट में दो दर्जन से अस्थियां सिराये जाने के इंतजार में हैं. यहां रखे दर्जनों अस्थि कलश वर्षों से मोक्ष की बाट जोह रहे हैं, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई भी नहीं. समाज में ऐसे लोग भी है, जिन्होंने अपने परिजन की अंतिम संस्कार करने के बाद श्मशान घाट में अस्थि कलश तो रखवा दी, परंतु वर्षों बाद भी उसे लेने कोई परिजन नहीं आये. उनके पूर्वजों की अस्थियां आज भी वहीं पड़ी हुई है. इन अस्थि कलशों पर परिजनों के नाम-पते भी लिखे हुए हैं, जो धीरे-धीरे मिटने लगे हैं. कई तो पूरी तरह से मिट भी गये हैं. अब अस्थियों के अस्तित्व पर ही संकट मंडरा रहा है. पितृ पक्ष चल रहा है. लोग अपने पितरों को याद करके श्राद्ध कर रहे हैं. गयाजी जा कर पिंडदान कर रहे हैं. ऐसे में चास श्मशान घाट पर वर्षों रखी अस्थियों को अपनों का इंतजार है, जो उन्हें मोक्ष दिला सके, मुक्ति दिला सके.

ऐसी अनदेखी चिंतनीय

आमतौर पर लोग अपने परिजन की मृत्यु के बाद अग्नि संस्कार के बाद उनकी अस्थियों को मिट्टी के कलश में बांध कर श्मशान घाट में रखवा कर तीन दिन बाद उन अस्थि कलश को किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर उनकी मोक्ष की प्रार्थना करते हैं. इनमें से हीं कई लोग श्मशान घाट चास पर अस्थि कलश रख कर अब तक दुबारा नहीं आये अस्थि कलश को लेने. पितृपक्ष में ज्ञात अज्ञात सभी पूर्वजों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान जैसे कर्मकांड किये जाते हैं, परंतु घाट पर रखे ये कलश समाज के एक ऐसे सच को उजागर करते हैं, जो शर्मसार करने वाला है. वस्तुत: जीते-जी जिनका सम्मान हुआ हो या नहीं, लेकिन मृत्यु के बाद उनकी ऐसी अनदेखी सचमुच चिंतनीय है.

अपनों के पास ही पितरों की अस्थियां सिराने का वक्त नहीं

कोई अपना जब दुनिया छोड़कर चला जाता है, तो वह बस यादों में रह जाता है. हम उन्हें किसी न किसी तरह से याद करते रहे. पितरों के प्रति हमारे दिल में प्यार व सम्मान हो, तभी श्राद्ध के मायने हैं. वरना, तो यह सिर्फ एक रीति और रस्म बनकर रह जायेगा. मान्यता है पितृ पक्ष में पितर भवलोक में आकर परिजनों से पसंद के भोग स्वीकार करते हैं. अपनों के श्रद्धाभाव से पितरों की आत्मा प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देकर अगला जन्म ले लेती है. पितरों को श्राद्ध से ही मुक्ति मिलती है, तो आत्मा मुक्ति पाने के लिए अपनों के आने का इंतजार करती है. लेकिन, श्मशान घाट-चास में तो अपनों के पास ही पितरों की अस्थियां सिराने का वक्त नहीं है. यहां अस्थियां रखने के लिए एक अलमारी बनी हुई है. अलमारी का गेट भी खराब हो गया है, जिसको बदलने की तैयारी चल रही है.

बोले व्यवस्थापक

श्मशान घाट चास के व्यवस्थापक लखन महता ने कहा कि कई अस्थि कलश यहां वर्षों से रखे हुए है, जिसे कोई भी अब तक लेने नहीं आया. एक अस्थि कलश, तो 10 वर्षों से यहीं पड़ा हुआ है. इनको सुरक्षित रखना मुश्किल काम है. इसे हम विसर्जित भी नहीं कर सकते हैं. कारण, कभी भी परिजन इसे लेने आ सकते है. ऐसी संभावना बनी रहती है. फिलहाल, यहां 18 अस्थि कलश को मोक्ष और मुक्ति के लिए अपनों का वर्षों से इंतजार है. सभी को सुरक्षित रखा गया है. घाट पर विधि-विधान कराने वाले बलिराम पांडेय ने कहा कि पुराण में वर्णित है कि अस्थि कलश को समय से पवित्र जल में विसर्जित कर देना चाहिए. हिंदू (सनातन) धर्म की मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष का पखवारा अपने पितृ मोक्ष शांति के लिए पवित्र माना जाता है. लोग अपने पितरों की मोक्ष मिलने की प्रार्थना करते है. गरुड़ पुराण के अनुसार, अंतिम संस्कार के बाद अस्थि विसर्जन जैसा अनुष्ठान मृतक की आत्मा को पुनर्जन्म चक्र से मुक्त करने में सहायता करता है.

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