23 लाख की आबादी पर 154 डॉक्टर, एक भी महिला सर्जन नहीं
महिला सर्जन के अभाव में महिला मरीजों को कर दिया जाता है रेफर
– विभाग के लाख दावों के बावजूद जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था में नहीं हो सका है ठोस सुधार – महिला सर्जन के अभाव में महिला मरीजों को कर दिया जाता है रेफर – ग्रामीण और सुदूर इलाकों में स्वास्थ्य सुविधा का हाल और भी दयनीय -मामूली बीमारी का इलाज कराने के लिए ग्रामीणों को तय करना पड़ता है 20 से 30 किमी की दूरी सुपौल. स्वास्थ्य विभाग के लाख दावों के बावजूद जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था में अब तक कोई ठोस सुधार नहीं हो सका है. सरकार भले ही हर साल अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों को सशक्त बनाने का दावा करती है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है. कई स्वास्थ्य केंद्रों पर मरीजों को ना तो प्राथमिक सुविधाएं मिल पा रही हैं और ना ही विशेषज्ञ डॉक्टरों की सेवा. कई अस्पतालों में स्टाफ की भारी कमी है. कई स्वास्थ्य केंद्र आज भी कागज ही ही चल रही है. बताया जाता है कि जिले की कुल आबादी 23 लाख से अधिक है, जबकि यहां 154 डॉक्टर पदस्थापित हैं. औसतन 15 हजार लोगों पर एक डॉक्टर यहां हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मानक के अनुसार हर एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए. यह असंतुलन स्वास्थ्य सेवाओं पर सीधा दबाव डालता है. ग्रामीण और सुदूर इलाकों में स्वास्थ्य सुविधा का हाल और भी दयनीय है. कई बार लोग मामूली बीमारी के इलाज के लिए भी 20 से 30 किलोमीटर तक की दूरी तय करते हैं. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में सदर अस्पताल सहित तीन अनुमंडलीय अस्पताल, एक रेफरल अस्पताल, पांच सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी), दो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), 21 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (एपीएचसी), 178 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर और 190 उप स्वास्थ्य केंद्र संचालित हैं. इसके अलावा तीन आयुष स्वास्थ्य केंद्र भी कार्यरत हैं. अधिकांश केंद्रों पर ना तो डॉक्टर नियमित रूप से मिलते हैं और ना ही दवा की पर्याप्त व्यवस्था होती है. कई उप स्वास्थ्य केंद्र तो ऐसे हैं जहां भवन तो है, लेकिन वहां ना डॉक्टर हैं ना ही नर्स हैं. विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी जिले में चिकित्सकों की कमी सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है. स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में कुल 154 डॉक्टर कार्यरत हैं, जिनमें 30 एमबीबीएस और 54 आयुष चिकित्सक हैं. सबसे चिंताजनक स्थिति विशेषज्ञ डॉक्टरों की है. पूरे जिले में केवल 7 सर्जन हैं और उनमें एक भी महिला सर्जन नहीं है. इतना ही नहीं पूरे जिले में एक भी स्त्री रोग विशेषज्ञ (गायनकोलॉजिस्ट) उपलब्ध नहीं है. इसका खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है. प्रसव जैसी आपात स्थिति में उन्हें या तो सदर अस्पताल तक पहुंचाया जाता है या फिर दरभंगा, सहरसा और पूर्णिया जैसे जिलों की ओर रेफर कर दिया जाता है. कई बार इस लंबी दूरी और देर से उपचार के कारण मरीज की हालत गंभीर हो जाती है. पूरे जिले में 33 सरकारी एम्बुलेंस उपलब्ध जिले भर में 84 कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर (सीएचओ) की प्रतिनियुक्ति की गई है, जो हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों पर कार्यरत हैं. हालांकि सैकड़ों केंद्रों और 23 लाख से अधिक आबादी के लिए यह संख्या पर्याप्त नहीं है. वहीं एंबुलेंस व्यवस्था की स्थिति भी बेहतर नहीं कही जा सकती. पूरे जिले में 33 सरकारी एंबुलेंस हैं. इनमें से कई बार तकनीकी खराबी या चालक की अनुपलब्धता के कारण सेवा बाधित रहती है. ग्रामीण इलाकों में तो हालात इतने खराब हैं कि गंभीर मरीजों को आज भी ठेले, बैलगाड़ी या निजी वाहनों से अस्पताल लाया जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में नाम मात्र की सुविधा जिले का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण है, जहां की आबादी खेती-किसानी पर निर्भर करती है. इन इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएं लगभग नाम मात्र की हैं. कई उप स्वास्थ्य केंद्रों पर ताला लटका रहता है. गांवों की महिलाएं प्रसव के लिए अब भी झोलाछाप डॉक्टरों या दाईयों पर निर्भर हैं. आपात स्थिति में एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंचती. सर्दी-खांसी, डायरिया, मलेरिया या टायफाइड जैसी सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए लोग निजी क्लीनिकों का रुख करते हैं, जहां उनसे भारी शुल्क वसूला जाता है. जानकार बताते है कि सुपौल की स्वास्थ्य व्यवस्था फिलहाल कागजों पर व्यवस्थित है, लेकिन जमीनी स्तर पर नाजुक स्थिति में है. सुविधाएं हैं पर स्टाफ नहीं है. अस्पताल हैं पर डॉक्टर नहीं है. योजनाएं हैं पर उनका क्रियान्वयन अधूरा है. जरूरत है कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग इस दिशा में त्वरित कदम उठाएं, ताकि जिले वासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सके. कहा अगर विभाग ने ईमानदारी से अपने संसाधनों का प्रबंधन किया और रिक्त पदों को भरा तो ना केवल सुपौल बल्कि पूरे कोसी क्षेत्र की स्वास्थ्य व्यवस्था में बड़ा बदलाव संभव है. स्वस्थ बिहार, सशक्त बिहार का सपना तभी साकार होगा, जब गांव के आम व्यक्ति को भी समय पर इलाज, दवा और डॉक्टर की सुविधा मिल सकेगा. कहते है सीएस सिविल सर्जन डॉ ललन कुमार ठाकुर ने बताया कि विभाग लगातार स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए प्रयासरत है. उन्होंने कहा हमारे पास सीमित संसाधन हैं, लेकिन प्राथमिकता के आधार पर सुधार की कोशिश कर रहे हैं. कई पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया चल रही है. स्त्री रोग विशेषज्ञ और सर्जन की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजा गया है. जल्द ही आवश्यक पदों पर बहाली होगी. उन्होंने बताया कि हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों को सशक्त करने के लिए सीएचओ की संख्या बढ़ाने की योजना पर भी काम किया जा रहा है. साथ ही एंबुलेंस सेवाओं की निगरानी के लिए विशेष मॉनिटरिंग सेल बनाया गया है, ताकि मरीजों को समय पर सुविधा मिल सके.
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