Earthquake: आधी रात को बिहार में महसूस हुए भूकंप के झटके, जानें किन किन इलाकों में हिली धरती

देश के कई हिस्सों के साथ साथ बिहार में भी आधी रात को भूकंप के झटके महसूस किये गये. बिहार में रात को 1:57 बजे आया करीब 10 सेकेंड लंबा था. बिहार में कम तीव्रता और अधिकतर लोगों के सोये होने के कारण भूकंप की सूचना लोगों को सुबह में मिली.

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 9, 2022 10:29 AM

पटना. देश के कई हिस्सों के साथ साथ बिहार में भी आधी रात को भूकंप के झटके महसूस किये गये. बिहार में रात को 1:57 बजे आया करीब 10 सेकेंड लंबा था. बिहार में कम तीव्रता और अधिकतर लोगों के सोये होने के कारण भूकंप की सूचना लोगों को सुबह में मिली. बिहार में मुख्य रूप से पटना, मुज़फरपुर, मोतिहारी, गोपालगंज, भागलपुर, पूर्णिया जैसे जिलों में लोगों को भूकंप के झटके महसूस हुए हैं. यहां कई लोगों का दावा है कि उन्होंने अपना बेड हिलता हुआ महसूस किया है.

नेपाल, भारत से लेकर चीन तक हिली धरती

वैसे दिल्ली-NCR इलाके में भूकंप के सबसे जोरदार झटके लगे. वहां भूकंप की तीव्रता इतनी ज्यादा थी कि लोग डर गये. देर रात सोशल मीडिया पर भूकंप की चर्चा होने लगी. कई लोगों ने सोशल मीडिया पर अपने घरों में पंखों और अन्य चीजों के तेजी से हिलने का वीडियो ट्वीट किया है. जानकारी के अनुसार भूकंप का केंद्र नेपाल में धरती से करीब 10 किलोमीटर नीचे थे. इस भूकंप का असर नेपाल, भारत से लेकर चीन तक हुआ है.

कोई जिला भूकंप से सुरक्षित नहीं

बिहार का कोई जिला भूकंप के खतरों से सुरक्षित नहीं है. राज्य के 38 में से आठ जिले जोन पांच में हैं. 22 जिले जोन चार में और आठ जिले जोन तीन के अंदर आते हैं. इसलिए आज इस भू-पट्टी को बेहतर और कारगर आपदा प्रबंधन की जरूरत है. 15 जनवरी, 1934 को आये प्रलयकारी भूकंप से जुड़ी कई बातें याद कर आज भी यहां के लोग सहम जाते हैं.

1934 में हुआ था सबसे भीषण भूकंप

15 जनवरी 1934 में खौफनाक भूकंप का मंजर बिहार ने देखा था. रिक्टर स्केल पर तब उसकी तीव्रता 8.4 आंकी गयी थी. बिहार और भारत तो दूर, विश्व इतिहास में भी ऐसी तीव्रता वाले भूकंप कम ही रिकॉर्ड किये गये हैं. चार जून 1764 को आया भूकंप तीव्रता के हिसाब से रिक्टर स्केल पर 6 का था, तो 23 अगस्त 1833 को आया भूकंप 7.5 का. बिहार में जो आखिरी बड़ा भूकंप आया, वो 21 अगस्त 1988 का था, उसकी भी तीव्रता 6.6 ही थी. वैसे अब गांवों व शहरों में उस उम्र के लोग कम ही बचे हैं, लेकिन कहानियां और दस्तावेजों से उसकी भयावहता स्पष्ट महसूस की जाती है.

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