Chhath Puja Tragedy: छठ पर्व की छाया में मातम,बिहार में डूबने से 102 लोगों की मौत,कई अब भी लापता

Chhath Puja Tragedy: लोक आस्था के सबसे बड़े पर्व छठ ने इस बार बिहार को गमगीन कर दिया. घाटों पर उगते सूरज की आरती के साथ उठे गीतों के बीच कई परिवारों पर मातम छा गया. पिछले दो दिनों में राज्य के अलग-अलग जिलों में डूबने से 102 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि कई लोग अब भी लापता बताए जा रहे हैं.

By Pratyush Prashant | October 29, 2025 9:26 AM

Chhath Puja Tragedy: छठ पर्व के दौरान जहां एक ओर श्रद्धा और उल्लास की लहर थी, वहीं दूसरी ओर नदियों और तालाबों से बार-बार आती मौत की खबरों ने पूरे बिहार को दहला दिया. हादसे नहाय-खाय, घाट की सफाई और अर्घ्य के दौरान हुए. कहीं तेज बहाव ने किसी को खींच लिया, तो कहीं गहरे पानी ने श्रद्धालुओं को अपनी लहरों में समा लिया.
राज्य के जिन जिलों में सबसे ज्यादा हादसे हुए, उनमें पटना, नालंदा, भागलपुर, खगड़िया, मधुबनी, सीतामढ़ी, जमुई, कैमूर, रोहतास, वैशाली और मुजफ्फरपुर शामिल हैं. जिला प्रशासन ने इन सभी घटनाओं की पुष्टि की है.

पटना में सबसे ज्यादा 13 मौतें, भाई-बहन की दर्दनाक कहानी

राजधानी पटना जिले में सबसे ज्यादा 13 लोगों की मौत हुई. मोकामा, बिहटा, खगौल, मनेर और नौबतपुर इलाकों में डूबने की घटनाएं सामने आईं. मोकामा में तो एक ही परिवार पर दोहरी मार पड़ी, भाई के डूबने की खबर सुनकर बहन ने सदमे में दम तोड़ दिया.
मरांची थाना क्षेत्र के बादपुर गांव में हुई यह घटना पूरे इलाके को झकझोर गई. मृतक रॉकी पासवान (21) और सपना कुमारी (23) भाई-बहन थे. दोनों लोक आस्था के इस पर्व में स्नान करने गए थे, पर लौटे नहीं. गांव के लोग अब तक उस दृश्य को याद कर सिहर उठते हैं.

उत्तर बिहार में 26 की मौत, मासूमों की जान गई

उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर, मधुबनी, सीतामढ़ी, दरभंगा, पूर्वी चंपारण और समस्तीपुर जिलों से डूबने के कुल 26 मामलों की पुष्टि हुई है. इनमें अधिकतर बच्चे और किशोर शामिल हैं, जो घाटों पर परिजनों के साथ पूजा के लिए गए थे.
कई जगहों पर घाट की सफाई करते वक्त या दीपदान के दौरान बच्चे फिसलकर गहरे पानी में चले गए.

कोसी-सीमांचल और पूर्वी बिहार में 32 मौतें

छठ के दौरान सबसे ज्यादा हृदयविदारक दृश्य कोसी और सीमांचल इलाके में देखने को मिले. सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, अररिया, पूर्णिया, बांका, खगड़िया और भागलपुर जिलों से कुल 32 मौतों की खबरें आई हैं. मधेपुरा और भागलपुर में सबसे ज्यादा सात-सात लोगों की जान गई. वहीं पूर्णिया में चार, सहरसा में तीन और सुपौल में दो लोगों की मौत की पुष्टि हुई. कई गांवों में छठ के अर्घ्य के बाद भी परिजन अपने लापता सदस्यों को ढूंढ़ते रहे. स्थानीय गोताखोरों और प्रशासन की टीमें देर रात तक खोज अभियान में जुटी रहीं.

नालंदा और वैशाली में 15 की गई जान

नालंदा और वैशाली जिलों में डूबने की घटनाओं ने प्रशासन को झकझोर दिया. नालंदा के हिलसा थाना क्षेत्र के सिपारा गांव के पास लोकाइन नदी में नहाने के दौरान दो महिलाओं समेत तीन लोगों की मौत हुई, जबकि एक व्यक्ति लापता है. वहीं वैशाली में आठ लोगों की मौत दर्ज की गई. राघोपुर में तीन और बिदुपुर, महनार, देसरी व भगवानपुर में एक-एक व्यक्ति की डूबने से जान चली गई. गोपालगंज के दुबे जिगना गांव में तालाब में डूबकर दो चचेरे भाइयों की मौत हो गई, जबकि गया जिले के नदौरा गांव में एक युवक की डूबने से जान चली गई.

प्रशासन अलर्ट, लेकिन सवाल बाकी

राज्य सरकार ने जिला प्रशासन को सतर्क रहने और घाटों पर सुरक्षा बढ़ाने के निर्देश पहले ही जारी किए थे, बावजूद इसके इतनी बड़ी संख्या में हादसे होना गंभीर सवाल खड़ा करता है. अक्सर असुरक्षित घाट, पर्याप्त रोशनी की कमी, नावों पर तैनात कम कर्मी और लोगों की असावधानी इन दुर्घटनाओं की वजह बनते हैं.
पटना से लेकर सीमांचल तक हर जिले में प्रशासनिक अमला अब हादसों की समीक्षा में जुटा है. हालांकि पीड़ित परिवारों का कहना है कि छठ जैसे विशाल पर्व पर केवल कुछ नाव और अस्थायी बैरिकेड पर्याप्त नहीं होते.

छठ के घाटों पर अब भी वह दृश्य ताजा है. डूबते सूरज को अर्घ्य देने के बाद रोते-बिलखते परिजन, शवों की तलाश में तैरते गोताखोर और घाटों पर पसरा सन्नाटा जहां एक ओर व्रती महिलाओं ने “उग ह सुरज देव…” गाकर आस्था का दीप जलाया, वहीं दूसरी ओर कई घरों के दीए हमेशा के लिए बुझ गए.

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