Bihar Election 2025: बिहार चुनाव में महिला वोटर्स की बढ़ती ताकत, ’किंगमेकर’ बन रहीं हैं महिलाएं

Bihar Election 2025: बिहार की चुनावी मैदान में इस बार सबसे ऊंची आवाज न नेताओं की है, न नारों की. बिहार में महिला वोटर्स अब ‘मौन मतदाता’ नहीं रहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने को तैयार हैं.

By Pratyush Prashant | October 16, 2025 1:42 PM

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक समीकरणों में एक नई धुरी तेजी से उभर रही है महिला मतदाता. पिछले एक दशक में महिलाओं का मतदान प्रतिशत लगातार बढ़ा है और अब यह पुरुषों से आगे निकल चुका है. राज्य में करीब 15 लाख नई महिला वोटरों का जुड़ना इस बदलाव को और भी गहरा बना रहा है.

नीतीश कुमार की महिला-केंद्रित नीतियों, सामाजिक योजनाओं और शिक्षा में निवेश ने महिलाओं को राजनीतिक रूप से सशक्त किया है. आज स्थिति यह है कि जिस क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी अधिक होती है, वहां चुनावी नतीजों की दिशा अक्सर बदल जाती है.

लंबे समय तक पीछे रहीं,अब बनीं निर्णायक शक्ति

बिहार में दशकों तक मतदान में पुरुषों का वर्चस्व रहा.1962 के विधानसभा चुनाव में पुरुषों का मतदान प्रतिशत 55 था जबकि महिलाओं का केवल 32. यह लैंगिक अंतर 2000 तक बना रहा. फरवरी 2005 के चुनाव में भी 50 प्रतिशत पुरुषों और 43 प्रतिशत महिलाओं ने ही वोट डाला. 2010 में एक ऐतिहासिक मोड़ आया. 54 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया, जो पुरुषों के 51 प्रतिशत था. इसके बाद से यह प्रवृत्ति हर चुनाव में और मजबूत होती गई.

2015 में 60 प्रतिशत महिलाओं ने वोट डाला,जबकि पुरुषों का प्रतिशत 50 पर अटका रहा. 2020 के चुनावों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 60 था, जबकि पुरुषों का 54. यह आंकड़े बताते हैं कि अब महिलाएं बिहार की चुनावी राजनीति की सबसे मजबूत और स्थिर वोट बैंक बन चुकी हैं.

अभूतपूर्व वृद्धि: 15 लाख नई महिला वोटर

2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार में महिला मतदाताओं की संख्या 3,57,71,306 थी, जो 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए बढ़कर 3,72,57,477 हो गई है. यानी सिर्फ एक साल में 14,86,171 नई महिला वोटरों का नाम जुड़ा है. यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं, बल्कि राजनीतिक व्यवहार में गहराते बदलाव का भी संकेत है. विगत एक वर्ष में महिला वोटरों की संख्या में 15 लाख की बढ़ोतरी हुई है.

मुजफ्फरपुर, पश्चिम चंपारण, वैशाली और सीतामढ़ी जैसे जिलों में महिला मतदाताओं की संख्या में 50 हजार से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है. इन जिलों की विधानसभा सीटों पर महिला वोटरों की भूमिका निर्णायक साबित हो सकती है, क्योंकि यहां पहले से ही महिलाओं की मतदान भागीदारी पुरुषों से अधिक रही है.

Bihar election 2025

उत्तरी बिहार में महिला वोटिंग का असर और एनडीए का फायदा

2020 के विधानसभा चुनावों में 243 में से 167 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया, जिनमें से अधिकतर सीटें उत्तरी बिहार की थीं. इस क्षेत्र का झुकाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की ओर रहा. पूर्णिया जिले के बैसी में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से 22 प्रतिशत अधिक था और एनडीए ने यह सीट जीती. कुशेश्वरस्थान में भी महिलाओं ने पुरुषों से 21 प्रतिशत अधिक मतदान किया और यह सीट भी एनडीए के खाते में गई.

मधुबनी, सुपौल, सीतामढ़ी और दरभंगा जैसे जिलों में महिलाओं की बढ़ी हुई भागीदारी ने चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभाई. मधुबनी की दस सीटों में से आठ, सुपौल की सभी पांच, सीतामढ़ी की आठ में से छह और दरभंगा की दस में से नौ सीटें एनडीए ने जीतीं. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि महिला वोटरों की सक्रियता सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि चुनावी जीत की कुंजी बन चुकी है.

नीतीश मॉडल: योजनाओं से बना महिला वोट बैंक

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने शासनकाल में कई योजनाएं चलाईं, जिनका सीधा असर महिलाओं की सामाजिक-राजनीतिक स्थिति पर पड़ा. कन्या उत्थान योजना, शिक्षा में आरक्षण, जीविका कार्यक्रम और हाल ही में राज्य सरकार की नौकरियों में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा—इन सबने ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों की महिलाओं को नई पहचान दी.

इन्हीं योजनाओं के कारण नीतीश कुमार ने एक स्थिर महिला वोट बैंक तैयार किया, जो 2010 से लगातार उनकी चुनावी रणनीति की रीढ़ बना हुआ है. यही वजह है कि 2010, 2015 और 2020 में महिला वोटिंग पैटर्न ने एनडीए को निर्णायक बढ़त दिलाई.

महिला मतदाता अब मुद्दे भी तय कर रही हैं

पहले महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी सिर्फ मतदान तक सीमित थी, लेकिन अब वे चुनावी मुद्दों को भी आकार दे रही हैं. शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और महिला सशक्तिकरण उनके प्राथमिक मुद्दे बन चुके हैं. कई महिला समूहों, स्वयं सहायता समूहों और छात्राओं ने विधानसभा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की मांग की है.

जाहिर है बिहार में “आधी आबादी” अब सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि एक सशक्त राजनीतिक आवाज बन चुकी है. इस बार महिला मतदाता न केवल मतदान करने जा रही हैं, बल्कि वे सत्ता की दिशा और दशा तय करने का माद्दा भी रखती हैं.

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अब ‘क्वीनमेकर’ हैं आधी-आबादी

बिहार चुनाव 2025 में महिला वोटर खुद ‘क्वीनमेकर’ बनकर उभर सकती हैं. 2010 से 2020 के बीच महिलाओं के मतदान में जो 28 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, उसने लैंगिक अंतर को मिटा दिया है.अब राजनीतिक दलों के लिए यह संभव नहीं कि वे महिलाओं की उपेक्षा करें या उन्हें केवल प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत करें.

2020 के चुनाव में 243 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 28 सीटों पर महिलाएं विधायक बनीं. JDU की 3, BJP की 9, RJD की 5 और कांग्रेस की केवल 2 महिला उम्मीदवार जीत सकीं. यानी महिलाओं की टिकट हिस्सेदारी बढ़ाने में सभी दल पीछे रहे, जबकि वोटिंग में उनका प्रतिशत सबसे आगे रहा.

करीब 15 लाख नई महिला वोटरों के जुड़ने से राजनीतिक दलों के सामने अब एक साफ चुनौती है. महिला प्रतिनिधित्व को गंभीरता से नहीं लेंगे और नीतियों को जमीन पर नहीं उतारेंगे तो इसका सीधा असर सीटों पर पड़ेगा. राजनीतिक दलों की रणनीति अब महज जातीय समीकरणों या पारंपरिक वोट बैंक पर निर्भर नहीं रह सकती. उन्हें महिला मतदाताओं के एजेंडे को समझना और उसमें हिस्सेदारी देनी होगी.

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