Bihar Election 2025: छठ मनाएंगे, वोट नहीं डाल पाएंगे, बिहार चुनाव में प्रवासी युवाओं की चुनौती
Bihar Election 2025: हर साल बिहार के लाखों युवा अपने कामकाजी शहरों से त्योहार पर घर लौटते हैं. इस बार दीपावली और छठ महापर्व के ठीक बाद विधानसभा चुनाव हैं. सवाल यह है—क्या ये युवा मतदाता चुनावी उत्सव में भाग लेने के लिए रुक पाएंगे या काम और रोजगार की मजबूरियों ने उन्हें लोकतंत्र के इस पर्व से दूर कर दिया?
Bihar Election 2025: पटना की गलियों में दीपावली और छठ की तैयारियां जोरों पर हैं. घरों में रौशनी, बाजारों में भीड़, मिठाई और पूजा का सामान… सब कुछ त्योहार की खुशी बयां कर रहा है. इसी उत्सव की धूप में राजनीतिक दलों की चिंता भी छिपी हुई है.बिहार में लाखों प्रवासी युवा और कामकाजी वोटर छठ मनाने के लिए लौटे हैं, लेकिन मतदान तक रुक पाना उनके लिए आसान नहीं होगा. चुनावी समीकरण इसी प्रवासी भीड़ पर टिका हुआ है, जो कई सीटों पर परिणाम बदल सकती है.
पटना की गलियों में इस समय उत्सव की आहट है. इसी रोशनी के बीच एक सियासी चिंता भी घुमड़ रही है, कहीं ऐसा न हो कि पर्व की भीड़ में लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व फीका पड़ जाए. बिहार के प्रवासी मजदूर और छात्र लाखों की संख्या में अपने घर लौट तो रहे हैं, मतदान तक रुक पाना उनके लिए मुश्किल साबित हो रहा है. यही वजह है कि राजनीतिक दलों से लेकर प्रशासन तक सभी की निगाहें अब उन ट्रेनों पर टिकी हैं जो छठ के बाद पटरी पर दौड़ेंगी क्योंकि उनमें सवार होंगे वो वोटर, जो कई सीटों पर बाजी पलट सकते हैं.
45 लाख से ज्यादा लोग राज्य से बाहर,कई सीटों पर निर्णायक वोट
बिहार सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, करीब 45.78 लाख निवासी दूसरे राज्यों में काम करते हैं, जबकि 2.17 लाख लोग विदेशों में रोजगार के लिए गए हुए हैं. इनमें से अधिकांश प्रवासी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से आते हैं और मौसमी तौर पर काम के लिए पलायन करते हैं. यही वर्ग चुनावी मौसम में भी राज्य के राजनीतिक समीकरणों को गहराई से प्रभावित करता है. राजनीतिक दलों ने उन विधानसभा क्षेत्रों की पहचान शुरू कर दी है, जहां प्रवासन दर सबसे अधिक है. मकसद स्पष्ट है—त्योहार में घर लौटे प्रवासियों को मतदान तक रोकना और उन्हें मतदान केंद्र तक पहुंचाना.
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने भी इस हकीकत को स्वीकार किया है. उन्होंने कहा, “कुछ सीटों पर करीबी मुकाबले में प्रवासी मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. हम उन्हें छठ के बाद कुछ और दिन रुकने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं. कई जिलों में स्थानीय पार्टी इकाइयों को ‘हर वोट के मूल्य’ पर जोर देते हुए जागरूकता अभियान चलाने को कहा गया है.” कुछ जगहों पर तो प्रवासी मतदाताओं को मतदान केंद्र तक पहुंचाने के लिए परिवहन और लॉजिस्टिक सहायता की भी योजना पर विचार चल रहा है.
छठ के बाद निकल पड़ेंगे लाखों प्रवासी
इस साल मतदान की तारीख छठ महापर्व के ठीक बाद रखी गई है. छठ 28 अक्टूबर को समाप्त हो रहा है और मतदान 11 नवंबर को है. यानी बीच में 13 दिनों का अंतर है. यह अंतर जितना चुनावी दलों के लिए रणनीति का समय है, उतना ही प्रशासन और समाज के लिए चुनौती भी.
रेलवे के आंकड़े इस चुनौती को और साफ कर देते हैं. 28 अक्टूबर से 10 नवंबर के बीच गया जंक्शन से दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, लुधियाना, पंजाब और सूरत जैसे बड़े शहरों के लिए ट्रेनों में भारी भीड़ दर्ज की गई है. पुरुषोत्तम एक्सप्रेस, महाबोधि एक्सप्रेस, पूर्वा एक्सप्रेस, अजमेर-सियालदह एक्सप्रेस जैसी लगभग सभी प्रमुख ट्रेनों में टिकट ‘रिग्रेट’ या लंबी वेटिंग लिस्ट में है. कई ट्रेनों में 28 अक्टूबर से लेकर 13 नवंबर तक एक भी कन्फर्म सीट उपलब्ध नहीं है. यह साफ इशारा है कि लाखों प्रवासी मतदाता छठ का प्रसाद चढ़ाने तो आएंगे, लेकिन लोकतंत्र के उत्सव में हिस्सा लिए बिना वापस अपने कामकाजी शहरों की ओर लौट जाएंगे.
सात लाख प्रवासी वोटर बन सकते हैं ‘किंगमेकर’
पटना जिले में ही 18 से 39 साल के वोटरों की संख्या 21.33 लाख है. इनमें से लगभग सात लाख वोटर प्रवासी हैं, जो दीपावली और छठ पर घर लौटते हैं. ये युवा और कामकाजी वर्ग के लोग हैं, जिनके वोट कई सीटों पर निर्णायक साबित हो सकते हैं. लेकिन मतदान से पहले ही दीपावली और छठ का पड़ना और फिर शैक्षणिक संस्थानों व दफ्तरों के खुलने से बड़ी संख्या में ये वोटर वापस लौट जाएंगे.
18-19 साल से लेकर 20-29 साल के वोटरों की कुल संख्या लगभग 9.5 लाख है. इनमें लगभग 30-35 प्रतिशत युवा पढ़ाई के लिए बिहार से बाहर हैं. वहीं, 30-39 साल के वोटरों की कुल संख्या 11.80 लाख है, जिनमें से 35 से 40 प्रतिशत लोग प्रवासी श्रमिक हैं. यानी कामकाजी वर्ग के लगभग 3.5 लाख वोटर ऐसे हैं जिनके लिए पर्व के बाद रुकना व्यावहारिक रूप से कठिन है. निजी नौकरियों में सीमित छुट्टियां और लंबी यात्राएं उनके लिए बड़ी अड़चन बनती हैं.
किस जिलों से सबसे ज्यादा पलायन
बिहार में प्रवासन की सबसे बड़ी लहर कुछ चुनिंदा जिलों से उठती है. आंकड़ों के अनुसार, सबसे ज़्यादा प्रवासी पूर्वी चंपारण (6.14 लाख), पटना (5.68 लाख), सीवान (5.48 लाख), मुजफ्फरपुर (4.31 लाख) और दरभंगा (4.3 लाख) से हैं. गया, समस्तीपुर, पश्चिम चंपारण और नालंदा में भी बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए बाहर रहते हैं.
पहले चरण में पटना, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर, नालंदा और सीवान जैसे जिले मतदान में शामिल होंगे. दूसरे चरण में गया, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, जमुई, नवादा और बक्सर की सीटों पर वोट डाले जाएंगे. इन जिलों में प्रवासी वोटरों की भागीदारी या अनुपस्थिति सीधा असर चुनावी नतीजों पर डाल सकती है.
शहरी इलाकों में पहले से ही कम मतदान, बढ़ी चिंता
शहरी क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत पहले से ही अपेक्षाकृत कम रहता है. आमतौर पर शहरी सीटों पर लगभग 35 प्रतिशत मतदान दर्ज होता है. ऐसे में अगर युवा वर्ग और प्रवासी वोटर मतदान से वंचित रहे, तो इसका असर सभी राजनीतिक दलों के समीकरणों पर पड़ेगा. पटना जैसी सीटों पर, जहां लाखों प्रवासी वोटर मौजूद हैं, कुछ हजार वोटों का हेरफेर भी नतीजा पलट सकता है.
इस चुनौती को देखते हुए सभी प्रमुख दलों ने प्रवासी वोटरों को रुकने की अपील शुरू कर दी है. गांवों में चौपालों पर नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा यह कहा जा रहा है कि “त्योहार के बाद एक दिन और रुक जाइए, वोट दीजिए, फिर जाइए.” राजनीतिक दलों को पता है कि इस बार का चुनाव कई जगहों पर ‘क्लोज फाइट’ वाला है और ऐसे में प्रवासी वोटर ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकते हैं.
कुछ दलों ने उन सीटों पर विशेष फोकस ग्रुप बनाए हैं जहां प्रवासन दर बहुत अधिक है. वहां स्थानीय कार्यकर्ताओं को यह जिम्मा दिया गया है कि वे अपने मोहल्लों, गांवों और पंचायतों में जाकर प्रवासी मतदाताओं से व्यक्तिगत रूप से अपील करें और उन्हें मतदान तक रोकने का प्रयास करें.
त्योहार और चुनाव की तारीखें टकराईं, असर तय
इस बार दीपावली और छठ महापर्व के ठीक बाद मतदान की तारीख रखे जाने से सियासी समीकरण में नया पेंच जुड़ गया है. 28 अक्टूबर को छठ खत्म होते ही रेलवे स्टेशनों पर भीड़ उमड़ पड़ेगी. दिल्ली, मुंबई, सूरत और पंजाब की ओर जाने वाली ट्रेनों की बुकिंग स्थिति यह बता रही है कि लाखों लोग वोटिंग से पहले ही राज्य छोड़ देंगे.
राजनीतिक दलों के सामने यह एक नयी चुनावी गणित है—वे न तो तारीख़ बदल सकते हैं, न ही रोजगार की मजबूरियां. बस कोशिश यही है कि कुछ हजार वोटर और रुक जाएं, ताकि मतदान प्रतिशत में गिरावट न हो और वोट बैंक में सेंध न लगे.
लोकतंत्र का असली इम्तिहान
बिहार में हर चुनाव की तरह इस बार भी वोट से ज्यादा बात जाति, समीकरण और गठबंधन की हो रही है. असली इम्तिहान शायद इस बार वोट डालने वालों का ही है. क्या लाखों प्रवासी मतदाता त्योहार के बाद भी रुककर लोकतंत्र के इस पर्व में हिस्सा लेंगे? या फिर हर साल की तरह इस बार भी उनका नाम मतदाता सूची में दर्ज रह जाएगा, पर वोट डालने की बारी में वे किसी ट्रेन की खिड़की से छूटते बिहार को निहारते रह जाएंगे?
जो भी हो, यह तय है कि दीपावली और छठ के बाद निकलने वाले इन प्रवासियों की भीड़ इस बार केवल स्टेशनों की नहीं, बल्कि विधानसभा की कई सीटों की तकदीर भी तय करेगी.
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