आइंस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती देनेवाले महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का पटना में निधन

पटना : आइंस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती देनेवाले करीब 40 साल से सिजोफ्रेनिया से पीड़ित महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का सूरज गुरुवार की सुबह अस्त हो गया है. पटना के कुल्हड़िया कांपलेक्स में वह रहते थे. बताया जा रहा है कि आज अहले सुबह उनके मुंह से खून निकलने लगा. इसके बाद परिजन […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 14, 2019 9:59 AM

पटना : आइंस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती देनेवाले करीब 40 साल से सिजोफ्रेनिया से पीड़ित महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का सूरज गुरुवार की सुबह अस्त हो गया है. पटना के कुल्हड़िया कांपलेक्स में वह रहते थे. बताया जा रहा है कि आज अहले सुबह उनके मुंह से खून निकलने लगा. इसके बाद परिजन उन्हें लेकर तत्काल पीएमसीएच गये, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

गुमनामी का जीवन बिता रहे बिहार के इस नायाब हीरे के निधन से उनके गांव सहित भोजपुरिया जगत में शोक है. मालूम हो कि पिछले माह ही उनकी तबीयत खराब होने पर उनके छोटे भाई ने पीएमसीएच के आईसीयू वार्ड में भर्ती कराया था. उनके शरीर में सोडियम की मात्रा काफी कम हो जाने के बाद उन्हें पीएमसीएच में भर्ती कराया था. हालांकि, सोडियम चढ़ाये जाने के बाद वह बातचीत करने लगे थे और ठीक होने पर उन्हें वापस घर ले आये थे.

आर्मी से सेवानिवृत्त वशिष्ठ नारायण सिंह के भाई अयोध्या सिंह के मुताबिक, राजधानी पटना के एक अपार्टमेंट में गुमनामी का जीवन बिता रहे महान गणितज्ञ का अंतिम समय तक सबसे अच्छा दोस्त किताब, कॉपी और पेंसिल ही बना रहा. आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती देनेवाले गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह अपने शैक्षणिक जीवनकाल में भी कुशाग्र रहे हैं. पटना साइंस कॉलेज से पढ़ाई करनेवाले वशिष्ठ गलत पढ़ाने पर गणित के अध्यापक को बीच में ही टोक दिया करते थे. घटना की सूचना मिलने पर जब कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें अलग बुला कर परीक्षा ली, तो उन्होंने अकादमिक के सारे रिकार्ड तोड़ दिये. पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जे कैली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अमरीका ले गये. वहीं, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से ही उन्होंने पीएचडी की डिग्री ली और वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बन गये. नासा में भी काम किया. वहां भी उन्हें वतन की याद सताती रही. बाद में वह भारत लौट आये. उन्होंने आईआईटी कानपुर, आईआईटी बंबई और आईएसआई कोलकाता में नौकरी की.

वर्ष 1973 में वंदना रानी सिंह से हुई. इसके करीब एक साल बाद वर्ष 1974 में उन्हें पहला दौरा पड़ा. इसके बाद उन्हें कई जगह इलाज कराया गया. जब उनकी तबीयत ठीक नहीं हुई, तो उन्हें 1976 में रांची में भर्ती कराया गया.उनके असामान्य व्यवहार के कारण उनकी पत्नी ने उनसे तलाक तक ले लिया. गरीब परिवार से आने और आर्थिक तंगी में जीवन व्यतीत करनेवाले वशिष्ठ पर साल 1987 में अपने गांव लौट आ गये. वह यहीं रहने लगे. करीब दो साल बाद वह साल 1989 में अचानक लापता हो गये. करीब चार साल बाद वर्ष 1993 में वह सारण के डोरीगंज में पाये गये थे.

Next Article

Exit mobile version