तीसरा चरण 23 अप्रैल को, बिहार के इन लोस क्षेत्र में होगी वोटिंग, कम पढ़े-लिखे वोटर वोट देने में रहते हैं आगे

प्रमोद झा, पटना : वोटरों को मतदान के प्रति जागरूक करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाये जाते हैं. प्रशासन से लेकर राजनीतिक दलों की भी वोटरों को जागरूक करने में सक्रिय भूमिका होती है. वोट करने को लेकर साक्षरता को भी खास तवज्जो दी जाती है. लेकिन बिहार में साक्षरता दर का वोटिंग पर […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 20, 2019 5:55 AM

प्रमोद झा, पटना : वोटरों को मतदान के प्रति जागरूक करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाये जाते हैं. प्रशासन से लेकर राजनीतिक दलों की भी वोटरों को जागरूक करने में सक्रिय भूमिका होती है. वोट करने को लेकर साक्षरता को भी खास तवज्जो दी जाती है. लेकिन बिहार में साक्षरता दर का वोटिंग पर कोई खास प्रभाव नहीं दिखने को मिला है. तीसरे चरण में 23 अप्रैल को जिन पांच लोकसभा क्षेत्र सुपौल, अररिया, मधेपुरा, खगड़िया व झंझारपुर में चुनाव होना है.

वहां 2014 के लोकसभा चुनाव में साक्षरता दर व वोटिंग प्रतिशत अलग दिखा. मधेपुरा में साक्षरता दर 41़ 69 प्रतिशत के बावजूद वोटिंग 59़ 96 प्रतिशत रहा. वहीं खगड़िया में साक्षरता दर 83़ 36 प्रतिशत साक्षरता दर रहने पर भी वोटिंग 59़ 49 प्रतिशत हुआ था.
साक्षरता दर का असर नहीं: तीसरे चरण में जिन लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव होना है. वहां 2014 के लोकसभा चुनाव में साक्षरता दर का वोटिंग प्रतिशत से खास तालमेल नहीं दिखा. कोसी इलाके के सुपौल लोकसभा क्षेत्र में साक्षरता दर 48़ 49 प्रतिशत होने के बावजूद वोटिंग 63़ 62 प्रतिशत हुआ था. वहीं अररिया में साक्षरता दर 72़ 40 प्रतिशत होने पर भी वोटिंग 61़ 48 प्रतिशत हुआ था.
मधुबनी व दरभंगा के हिस्से से बना झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र में लगभग 84 प्रतिशत साक्षरता दर रहने पर भी मात्र 56़ 42 प्रतिशत वोटिंग हुआ. सुपौल से कांग्रेस की रंजीत रंजन, खगड़िया से लोजपा के चौधरी महबूब अली कैसर, झंझारपुर से राजद के मंगनी लाल मंडल, अररिया से राजद के मो तस्लीमुद्दीन(अभी उनके बेटे सरफराज आलम) व मधेपुरा से राजद के पप्पू यादव चुनाव जीते थे.
काम पर मिलता रहा है वोट
बिहार में चुनाव में प्रत्याशियों को वोट मिले इसके लिए कई समीकरणों का ध्यान रखा जाता है. इसके बाद ही वोटर अपने चाहनेवाले प्रत्याशियों को वोट करते हैं. चुनाव में राजनीतिक चेतना, उम्मीदवार को लेकर रूचि, मुद्दा आधारित काम व बुनियादी सवालों को लेकर संघर्ष करनेवाले दल, जाति, धर्म आदि कई फैक्टर देखा जाता है.
वोटिंग को लेकर साक्षरता का कोई मायने मतलब नहीं रह जाता है. कम पढ़े-लिखे वोटर ज्यादा वोटिंग करते हैं. अपने को बुद्धिजीवि कहनेवाले वोट डालने में कभी-कभी पीछे रह जाते हैं.
विशेषज्ञ के विचार
ए एन सिन्हा सामाजिक संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ डी एम दिवाकर ने कहा कि बिहार में अभी भी वोटिंग उम्मीदवार का चयन, सामाजिक दायित्व, मुद्दा आधारित व बुनियादी सवाल, जाति,धर्म,भावना आदि पर होता है.
इलाके के लोग इस बात पर गौर करते हैं कि राजनीतिक लाभ क्या मिला. इसमें साक्षरता की कोई खास भूमिका नहीं रहती है. चुनाव में कम पढ़े-लिखे वोटर की तादाद अधिक देखी जाती है. वोटर पहले से अधिक सजग है.
वह किसी भी दल से नाराज नहीं होकर अपने फायदे के अनुसार काम करता है. फायदा लेकर भी किसे वोट करेगा वह राजनीतिक दल को आकलन करने के लिए छोड़ देता है.
इस बार मुकाबला
2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए व महागठबंधन के प्रत्याशियों के बीच मुख्य मुकाबला है.सुपौल में कांग्रेस के रंजीत रंजन व जदयू के दिलेश्वर कामत, खगड़िया में लोजपा के चौधरी महबूब अली कैशर व वीआइपी के मुकेश सहनी, अररिया में राजद के सरफराज आलम व भाजपा के प्रदीप सिंह व झंझारपुर में जदयू के रामप्रीत मंडल व राजद के गुलाब यादव के बीच टक्कर है. मधेपुरा में राजद के शरद यादव, जदयू के दिनेशचंद्र यादव व जापलो से पप्पू यादव के बीच त्रिकोणात्मक संघर्ष है.

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