शहाबुद्दीन को पटना HC का झटका, सरकारी खर्च पर मुकदमा लड़ने पर कोर्ट ने लगायी रोक

पटना : पटना हाईकोर्ट ने सीवान से राजद के पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन को झटका देते हुए निचली अदालत द्वारा उनके पक्ष में दिये गये उक्त आदेश को निरस्त कर दिया. जिसमें कहा गया था कि पूर्व सांसद के विरुद्ध दायर आपराधिक मामलों में उनकी ओर से पैरवी करने हेतु सरकारी खर्चे पर अधिवक्ता मुहैया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 16, 2017 5:03 PM

पटना : पटना हाईकोर्ट ने सीवान से राजद के पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन को झटका देते हुए निचली अदालत द्वारा उनके पक्ष में दिये गये उक्त आदेश को निरस्त कर दिया. जिसमें कहा गया था कि पूर्व सांसद के विरुद्ध दायर आपराधिक मामलों में उनकी ओर से पैरवी करने हेतु सरकारी खर्चे पर अधिवक्ता मुहैया कराया जाये. अदालत ने इस मामले पर नये सिरे सुनवाई करते हुए दिये गये आदेश पर पुनर्विचार करने का निर्देश निचली अदालत को दिया है.

जस्टिस विरेंद्र कुमार की एकलपीठ ने राज्य सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त निर्देश दिया. गौरतलब है कि सीवान के बाहुबली पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन ने अपने विरुद्ध मुकदमे को सरकारी खर्च पर लड़ने की याचिका सीवान की अदालत में दायर किया था. जिस पर अदालत ने सुनवाई के पश्चात राज्य सरकार को सरकारी खर्च पर पूर्व सांसद को अधिवक्ता मुहैया कराने का निर्देश दिया था.

निचली अदालत के उक्त आदेश को चुनौती देते हुए राज्य सरकार की ओर से पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी. राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि 14 जून 2013, 18 जुलाई 2013 को एडिशनल सेशंस जज फर्स्ट कम स्पेशल जज, सीवान जेल कोर्ट ने विधि सेवा प्राधिकार के तय मापदंडों को दरकिनार करते हुए एसटी नं. 88/12, 419/16 में अधिवक्ता अभय कुमार रंजन को सरकारी खर्चे पर पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन का अधिवक्ता नियुक्त किया था. जो विधिक सेवा प्राधिकार की धारा 11 का उल्लंघन है.

उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39ए में सभी के लिए न्याय सुनिश्चित किया गया है और गरीबों तथा समाज के कमजोर वर्गों के लिए नि:शुल्क कानून सहायता की व्यवस्था की गयी है. संविधान के अनुच्छेद 14 और 22(1) के तहत राज्य का यह उत्तरदायित्व है कि वह सबके लिए समान अवसर सुनिश्चित करे. समानता के आधार पर समाज के कमजोर वर्गों को सक्षम विधि सेवाएं प्रदान करने के लिए एक तंत्र की स्थापना करने के लिए वर्ष 1987 में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम पास किया गया.

इसी के तहत राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) का गठन किया गया. इसका काम कानूनी सहयता कार्यक्रम लागू करना और उसका मूल्यांकन एवं निगरानी करना है. साथ ही, इस अधिनियम के अंतर्गत कानूनी सेवाएं उपलब्ध कराना भी इसका काम है. मुफ्त कानूनी सहायता पाने के पात्र व्यक्तियों में महिलाएं और बच्चे, अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के सदस्य, औद्योगिक श्रमिक, बड़ी आपदाओं, हिंसा, बाढ़, सूखे, भूकंप और औद्योगिक आपदाओं के शिकार लोग, विकलांग व्यक्ति, हिरासरत में रखे गये लोग, ऐसे व्यक्ति जिनकी वार्षिक आय 50,000 रुपये से अधिक नहीं है, बेगार या अवैध मानव व्यापार के शिकार लोग आते हैं.

मुफ्त कानूनी सेवाओं में किसी कानूनी कार्यवाही में कोर्ट फीस और देय अन्य सभी प्रभार अदा करना, कानूनी कार्यवाही में वकील उपलब्ध कराना, कानूनी कार्यवाही में आदेशों आदि की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करना, कानूनी कार्यवाही में अपील और दस्तावेज का अनुवाद और छपाई सहित पेपर बुक तैयार करना आदी शामिल है.

राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन अपने विरुद्ध दायर आपराधिक एवं अन्य मामलों की पैरवी हेतु अधिवक्ता रखने में पूर्ण सक्षम हैं. ऐसे में सरकारी खर्चें पर अधिवक्ता उपलब्ध कराये जाने का आदेश दिया जाना सही नहीं है. अदालत को यह भी बताया गया कि पूर्व सांसद मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने हेतु तय श्रेणी में नहीं आते हैं.