CM नीतीश की तथाकथित छवि और असफल समीक्षा बैठक को लेकर तेजस्वी ने की दिल की बात

पटना : बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादवनेमंगलवार को अपने दिल की बातश्रृंखलाके तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार सरकार पर हमला बोला है. तेजस्वी ने दिल की बात केतहतकहा है कि विगत दो माह से बिहार निरंतर गलत कारणों से सुर्खियों में छाया हुआ है. रातों रात सत्ता में बने रहने और सृजन जैसे […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 26, 2017 3:22 PM

पटना : बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादवनेमंगलवार को अपने दिल की बातश्रृंखलाके तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार सरकार पर हमला बोला है. तेजस्वी ने दिल की बात केतहतकहा है कि विगत दो माह से बिहार निरंतर गलत कारणों से सुर्खियों में छाया हुआ है. रातों रात सत्ता में बने रहने और सृजन जैसे घोटालों में फंसी अपनी गर्दन बचाने एवं जनादेश काकत्ल करने के बाद से बिहार के हित में एक भी सकारात्मक कार्य नहीं हुआ है. तेजस्वी ने सोशल मीडिया पर अपने दिल की बात में चर्चा की है कि ऐसा प्रतीत होता है कि सारा प्रशासन और पूरी सरकार सिर्फ एक लक्ष्य को लेकर चल रही है कि कैसे एक व्यक्ति का महिमा मंडन किया जाये. सारे कामों का श्रेय उसी आत्म मुग्ध व्यक्ति को ही दिया जाये और उसकी हर विफलता का ठीकरा दूसरों के माथे फोड़ दिया जाये.

तेजस्वीने आगे लिखा है कि बिहार में अपराध अपने चरम पर है तो उसका दोष मुख्यमंत्रीपुलिसमहानिदेशक को देते है. माननीय मुख्यमंत्री जी जनता यह भी जानती है कि डीजीपीकानून व्यवस्था पर आपको ही रिपोर्ट करते है. आप अपनी नाकामयाबी का सेहरा अपने सिर बांधिये. डीजीपी को बलि बकरा बनाकर आप अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते. अफसरों के अच्छे काम का क्रेडिट आप लूटते हैं तो उनकीखराब परफारमेंश की जवाबदेही भी आपकी है. तेजस्वी ने कहा है कि आप इतने लंबे समय से राज्य के मुख्यमंत्री हैं फिर भी सरकारी भ्रष्टाचार और अफसरशाही व्यवस्था का अभिन्न अंग बन चुका है. आम जनता का कोई भी काम बिना चढ़ावा दिये संभव होना एक स्वप्न नजर आता है. वहीं शीर्ष सरकारी तंत्र के नजदीकियों का आनंद उठाने वाले लोग चाहे दुनिया का कोई अपराध,गबन या भ्रष्टाचार कर लें, उन पर कोई भी आंच आने का सवाल ही नहीं उठता. इसके उलट केंद्र और राज्य सरकार उन्हें बचाने के प्रयास में ही जुट जाते हैं.

तेजस्वी ने भागलपुर के घोटाले की चर्चा करते हुए कहा है कि सृजन कांड को अपने संरक्षण में चलते रहते देना, जांच के प्रयासों को बार-बार दबा देना और अब केंद्र और राज्य की मिलीभगत से घोटाले की जांच के नाम पर हो रही धांधली इसका जीता जागता उदाहरण है. यह जगजाहिर है कि नीतीश कुमार जी अपनी झूठी तथाकथित छवि बनाए रखने के लिए किस प्रकार मीडिया रिपोर्टोंऔर लेखों की एडिटिंग करते हैं. विज्ञापन देने नहीं देने के नाम पर क्या-क्या होता है मीडिया के सभी तटस्थ साथी जानते है. मुख्यमंत्री स्वयं को मुख्य भूमिका में दिखाने और सभी मंत्रालयों के काम में अपनी छाप का अहसास करवाने के लिए अपनी अध्यक्षता में तथाकथित समीक्षा बैठक का आयोजन करते हैं. जब लगातार अपराध में बढ़ोतरी हो रही है तो किस लक्ष्य को लेकर गृह विभाग की समीक्षा बैठक होती है?

तेजस्वी ने नीतीश की बैठकों पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि इन समीक्षा बैठकों से जब सृजन घोटाला पर लगाम नहीं लग पाया तो ऐसी बैठकों का क्या औचित्य? क्या कभी इन समीक्षा बैठकों में मुख्यमंत्री ने सृजन कांड में बार-बार जाँच के लिए आ रहे आवेदनों पर विचार विमर्श किया? चूहों के कारण बाढ़ आ जाती है और चूहे लाखों शराब की बोतलें खाली कर देते हैं, क्या कभी ऐसे विकराल भयावह चूहों की महिमा पर इन समीक्षा बैठकों में चर्चा हुई? सैंकड़ों करोड़ की बटेश्वर गंगा पम्प परियोजना अपने उद्घाटन के पहले ही बन्दरबाँट और भ्रष्टाचार की पोल खोल देती है, पर किसी तथाकथित समीक्षा बैठक में वह उपयोगिता और ईमानदारी नहीं थी जो इसपर लगाम लगा सके। बिहार में डेढ़ साल से शराबबंदी है फिर भी प्रतिदिन लाखों लीटर शराब की डिलिवरी हो रही है, शराब को जागरूक जनता के सहयोग से पकड़वाया जाता है. पहले बाढ़ की रोकथाम और उससे संभावित नुकसान को कम करने के प्रयासों के प्रति सरकारी और प्रशासनिक उदासीनता और बाद में बाढ़ पीड़ितों के राहत व बचाव में बरती गयी व्यापक लापरवाही ने सिद्ध कर दिया कि सरकारी इच्छाशक्ति सिर्फ खोखली बयानबाजी और मीडिया में किसी भी तरह बने रहने तक ही सीमित है.

तेजस्वी ने बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हुए लिखा है कि रोज- रोज हत्या, लूट-मार-काट, तोड़-फोड़ की खबरें आ रही हैं. सृजन महाघोटाले पर खुद अभियुक्त ही अपनी पीठ थपथपा रहे हैं. तथाकथित जांच का ढकोसला चल रहा है. छोटी मछलियों को पकड़ मुख्य अभियुक्तों को भगा दिया गया है और सबूत मिटाना और लीपापोती करके मामले को दबाया जा रहा है. हजारों हजार करोड़ के नहर परियोजना उद्घाटन के पहले कागज के ढेर की तरह बह जाते हैं और सारा महकमा यहां-वहां दोषारोपण करके अपना पल्ला झाड़ते नजर आता है.

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