Subhash Chandra Bose का पटना से भी है गहरा नाता, शांति निकेतन में मेहमान बन कर कई बार ठहरे
महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे. आज सुभाष चंद्र बोस की जयंती है. देशवासी उन्हें नेताजी के नाम से संबोधित करते हैं. सुभाष चंद्र बोस का पटना से गहरा लगाव रहा.
सुबोध कुमान नंदन, पटना
महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे. आज सुभाष चंद्र बोस की जयंती है. देशवासी उन्हें नेताजी के नाम से संबोधित करते हैं. सुभाष चंद्र बोस का पटना से गहरा लगाव रहा. बोस ने आजादी के पूर्व पटना के बांकीपुर, दानापुर, खगौल के कच्ची तालाब और मंगल तालाब (पटना सिटी) आदि जगहों पर जनसभाएं की. राज्य सरकार की ओर से सुभाष चंद्र बोस की स्मृति को जीवंत रखने के लिए गांधी मैदान (गांधी मैदान थाना के पास) के पास उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित की गयी है. इस प्रतिमा का अनावरण वर्ष 1992 में 21 अक्तूबर को तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद यादव ने किया था.
26 अगस्त 1939 को सुभाष बाबू ने सिमली मुरारपुर में की थी सभा
26 अगस्त 1939 को सुभाष चंद्र बोस को आमंत्रित कर पटना के लोगों ने उनका अभूतपूर्व स्वागत किया गया था. उस दिन लोगों का उत्साह देखते ही बनता था. इस क्षेत्र में न इतनी अधिक आबादी थी और न सुविधाएं, तब 20 हजार लोगों की स्वतः स्फूर्त भीड़ का उमड़ पड़ना एक आश्चर्यजनक घटना तो थी ही. वह सुभाष बोस की लोकप्रियता का प्रतीक था. महिलाओं ने जहां सुभाष बाबू की आरती उतारी तो युवकों ने पुष्पवर्षा और जय-जयकार किया. वृद्धों ने उनके ललाट पर चंदन -रोली का टीका लगाकर आशीर्वाद दिया. उस दिन सुभाष बाबू ने पटना की धरती पर पहली बार कदम रखा था. गर्दन से नाक तक फूल-मालाओं से लदे सुभाष बोस ने सिमली मुरारपुर के देवी स्थान के पास लगभग 15 मिनट तक सभा को संबोधित किया था. बोस के पटना आगमन से चार दिन पूर्व सिमली से एक विशाल और शानदार जुलूस निकाला गया था. सिमली मुरारपुर से चलकर चौक तक पहुंचने में इसे घंटों लग गये थे. सड़क के दोनों और हजारों स्त्री-पुरुष और बच्चों की भीड़ थी.
बांकीपुर मैदान में हुई थी सभा
बिहार बंगाली समिति के अध्यक्ष डॉ कैप्टन दिलीप सिन्हा ने बताया कि बांकीपुर मैदान (अब गांधी मैदान) में 29 अगस्त 1939 को सभा का आयोजन था. सभा की अध्यक्षता स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने की थी. सर्व प्रथम स्वागताध्यक्ष ने सुभाष बाबू का नागरिक अभिनन्दन किया और मानपत्र प्रदान किया. भाषण के दौरान सुभाष चंद्र बोस ने नयी संस्था फारवर्ड ब्लाक के निर्माण को कारण और उसके कार्यक्रम पर प्रकाश डाला. उन्होंने साम्राज्य के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की और जनता को आह्वान किया की इस आजादी की लड़ाई में आगे आये. वे रात्रि में बांकीपुर में फ्रेजर रोड स्थित शांति निकेतन में मेहमान बन कर ठहरा करते थे. यह घर विख्यात बैरिस्टर पीआर दास का था.
सभा में कुछ लोगों ने किया था प्रदर्शन
सभा में कुछ लोगों ने उनके विरुद्ध काले झंडा के साथ प्रदर्शन किया था. जब वे भाषण करने उठे तो किसी ने उन्हें अपमान किया. अपमान करते हुए उसने बुलंद आवाज में कहा कि बंगाल में अपमान का बदला यह बिहार में है. इस घटना पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद बहुत दुखी हुए थे. उन्होंने जनता से अपील करते हुए कहा था कि फिर ऐसी घटना नहीं होनी चाहिए. यह देश के लिए दुर्भाग्य की बात है. महात्मा गांधी ने इस घटना की कड़ाई से भर्तसना की थी. स्वामी सहजानंद सरस्वती के राजनीतिक कद को समझने के लिए सुभाष चंद्र बोस का यह कथन महत्वपूर्ण है कि साबरमती आश्रम में मैंने खादी धोती पहने कई सन्यासी को देखा, लेकिन भारत का सच्चा सन्यासी मुझे पटना के बिहटा स्थित सीताराम आश्रम में मिला.