मुंगेर सरस्वती विद्या मंदिर मुंगेर में गुरुवार को गुरु पूर्णिमा पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया. उसका उद्घाटन प्रधानाचार्य संजय कुमार सिंह, उप प्रधानाचार्य अमन कुमार सिंह, बालिका खंड की प्रभारी प्रधानाचार्या राखी सिन्हा ने संयुक्त रूप से महर्षि वेदव्यास की तस्वीर पर पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्वलित कर किया. प्रधानाचार्य ने कहा कि जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गुरु का आशीर्वाद आवश्यक है. गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं. गुरु के प्रति श्रद्धा, भक्ति और विश्वास से ही जीवन सफल होता है. गुरु ज्ञान के साथ जीवन दर्शन भी देते हैं. इसलिए भारत हमेशा से विश्वगुरु रहा है. हम गुरु परंपरा में रहकर ही आगे बढ़ सकते हैं. उपप्रधानाचार्य ने कहा कि गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है. गुरु हमें ज्ञान के साथ-साथ साहस, धैर्य और अच्छे कर्म की भी शिक्षा देते हैं. गुरु शिष्य के अंधकार को दूर कर परमानंद की अनुभूति कराते हैं. गुरु हमारे पथ प्रदर्शक हैं. आचार्य डॉ काशीनाथ मिश्र एवं आचार्य गोपालकृष्ण ने कहा कि जब लोग अज्ञानता के आवरण से विकल होते हैं और कुछ नहीं दिखता. ऐसे समय में ईश्वर के रूप में महर्षि वेद व्यास जैसे मुनि लोगों का मार्ग प्रशस्त करते हैं. ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों गुरु के ही रुप हैं. आचार्य मुकेश कुमार सिन्हा ने ”गुरु देव दया करके मुझको अपना लेना” गीत गाकर वातावरण को भक्तिमय बना दिया. मौके पर शिशु, बाल, किशोर, तरुण भारती के छात्र-छात्राओं ने भजन एवं महर्षि वेदव्यास के कृति पर प्रकाश डालते हुए उनके बताए गए मार्गो पर चलने का संकल्प लिया. छात्र शौर्य शर्मा, द्वीप शर्मा, आदित्य राज, शाश्वत, आयुष रंजन, नैतिक राज, जीवांशु कुमार, आदर्श, देव राज, प्रतीक आनंद, उज्ज्वल आनंद, मेजर साहब, अतीक्ष कुमार ने गुरु से संबंधित भजन एवं प्रेरक प्रसंग सुनाये. —————————————————- बॉक्स ————————————————— गुरु पूर्णिमा उत्सव का भव्य आयोजन मुंगेर : सरस्वती शिशु मंदिर बेकापुर में गुरु पूर्णिमा गर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसकी शुरुआत सरस्वती की वंदना से हुई. इसके पश्चात छात्र-छात्राओं ने गीत और भाषण प्रस्तुत कर गुरुजनों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की. विद्यालय के प्रधानाचार्य संतोष आनंद ने कहा कि जीवन में गुरु आवश्यक है, गुरु के बिना मोक्ष संभव नहीं है. किन्तु आज के समय में एक गुरु को आत्मसात करना सहज और सरल नहीं है. क्योंकि आज की मानसिकता और पूर्व की मानसिकता में बहुत अंतर है. आज हमें यह समझने की आवश्यकता है. प्राचीन समय से गुरु शिष्य परंपरा चली आ रही है. गुरु और शिष्य का एक अन्योनाश्रय संबंध है और आगे भी रहेगा. गुरु द्वारा दी गई शिक्षा संस्कारित, ज्ञान वर्धन के साथ साथ व्यावहारिक बनाने का भी कार्य करती है. यदि गुरु के बताए मार्ग को हम अपनाते है तो आज के गुरु पूर्णिमा की यही सार्थकता होगी. स्थापना काल के वरिष्ठ आचार्य विष्णुदेव पाठक, विनेश कुमार शर्मा और विनेश को विद्यालय के प्रधानाचार्य के साथ ही विद्यालय के पूर्व छात्र निर्मल जैन, प्रेम कुमार वर्मा, भावेश जैन, शशि शंकर, दीपक जैन ने चरण धोकर, चंदन लगाकर पुष्प गुच्छ के साथ अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया.
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