Jehanabad : गणेश-लक्ष्मी की पूजा कर लोगों ने मांगी सुख-समृद्धि
जिले में हर्षोल्लास के साथ पारंपरिक तरीके से दीपावली का पर्व मनाया गया. जिला मुख्यालय सहित सभी प्रखंडों के पूजा पंडालों में माता लक्ष्मी की आराधना की गई,
जहानाबाद.
जिले में हर्षोल्लास के साथ पारंपरिक तरीके से दीपावली का पर्व मनाया गया. जिला मुख्यालय सहित सभी प्रखंडों के पूजा पंडालों में माता लक्ष्मी की आराधना की गई, जबकि लोग अपने घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को भी सजाकर पूजा-अर्चना में शामिल हुए. लोगों ने गणेश-लक्ष्मी की पूजा कर सुख व समृद्धि की कामना की. पूजा पंडालों में माता लक्ष्मी की प्रतिमाओं को आकर्षक ढंग से सजाया गया था और एलइडी बल्ब, रोलेक्स व अन्य सजावट से उनका स्वरूप और भी मनोहारी दिखायी दे रहा था. शहर की सड़कों, डिवाइडर व घरों की बालकनी भी दीप और रोशनी से जगमगा रही थी. दुकानदारों ने अपने प्रतिष्ठानों पर केले के थंभ और दीपक से प्रवेश द्वार सजाया. दीपावली के अवसर पर लोग एक-दूसरे को मिठाइयां बांटकर शुभकामना देते रहे और विभिन्न व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के कर्मियों को भी मिठाइयां दी गयी. बच्चों और बड़े सभी ने फुलझड़ी, अनार, बम, चकरी और अन्य पटाखों के साथ पर्व का आनंद लिया.
गोपालकों ने की गोवर्धन पूजा : दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं. इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा संबंध दिखायी देता है. गोवर्धन पूजा में गोधन अर्थात गायों की पूजा की जाती है. शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा. गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है. देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं. इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है. ऐसे गो सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है. गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की. जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाए उसकी छाया में सूखपूर्वक रहे. सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी, तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा. गोवर्धन पूजा के संबंध में एक लोकगाथा प्रचलित है.
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