बरनार डैम योजना : जलाशय के बनने से जिले के चार से पांच प्रखंड होंगे लाभान्वित, 22226 हेक्टेयर भूमि की होगी सिंचाई

सोनो प्रखंड मुख्यालय से करीब 19 किलोमीटर दूर बटिया के कटहराटांड़ के निकट जंगल सीमा पर बड़े पहाड़ों के बीच बरनार नदी पर यह बरनार डैम को बनाया जाना है

By PANKAJ KUMAR SINGH | October 4, 2025 9:37 PM

विनय कुमार मिश्र, सोनो जमुई जिला के चकाई विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत सोनो प्रखंड मुख्यालय से करीब 19 किलोमीटर दूर बटिया के कटहराटांड़ के निकट जंगल सीमा पर बड़े पहाड़ों के बीच बरनार नदी पर यह बरनार डैम को बनाया जाना है. करीब 283 मीटर लंबे इस डैम की ऊंचाई पहले तो करीब 76 मीटर थी, परंतु अब इसकी ऊंचाई थोड़ी कम की गयी है. नए सिरे से आधुनिक व्यवस्था के बीच बनने वाला यह डैम बिहार का पहला कंक्रीट डैम होगा. पूर्व के आंकड़े पर गौर करें तो इसका जल ग्रहण क्षेत्र 102 वर्ग मील है. इस जलाशय के बनने से जिले के चार से पांच प्रखंड मुख्य रूप से लाभान्वित होंगे और 22226 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी. इलाके के 55770 एकड़ बालूबुर्द भूमि कृषि योग्य हो जायेगी.

वर्ष 1974 में बरनार जलाशय परियोजना की बनी सोच, 1976 में निर्माण हुआ शुरू

कटहराटांड़ के समीप पहाड़ी जंगल से निकलने वाली बरनार नदी पर बनने वाले इस महत्वाकांक्षी परियोजना की जरूरत वर्ष 1969 में पड़े अकाल के बाद महसूस की गयी थी. 1974 में इसके निर्माण को लेकर तैयारियां शुरू हुई. तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र व स्थानीय नेता श्री कृष्ण सिंह का ड्रीम प्रोजेक्ट रहे इस परियोजना की स्वीकृति करवाने में चंद्रशेखर सिंह, डीपी यादव और तत्कालीन सिंचाई मंत्री दीपनारायण सिंह की महती भूमिका रही थी. केदार पांडेय और बिंदेश्वरी दुबे के मुख्य मंत्रित्व काल में बांध का निर्माण कार्य 1976 से शुरू हुआ और 1988 को गैमन इंडिया कंपनी से इकरारनामा किया गया. डैम का निर्माण कार्य धीमी गति से आगे बढ़ा और सत्ता परिवर्तन होते ही इस महत्वाकांक्षी सिंचाई परियोजना के कार्य पर 1991-92 के बाद ग्रहण लगना शुरू हो गया और 1995 तक में बंद हो गया. इस महत्वपूर्ण परियोजना के निर्माण कार्य के बंद होते ही क्षेत्र के लोगों की उम्मीदें और सपने भी दम तोड़ते चले गये.

तीन दशकों से बनता रहा चुनावी मुद्दा, किसानों के आंदोलन से भी नहीं बना था काम

क्षेत्र के इस बेहद महत्वाकांक्षी योजना के बंद होने के बाद बरनार जलाशय सिर्फ चुनावी मुद्दा बनकर रह गया था. हर चुनाव में इसकी गूंज सुनाई पड़ती, लेकिन चुनाव खत्म होते ही वादे भूल जाने लगे. एक दशक पूर्व युवा जनप्रतिनिधियों द्वारा इस पर गंभीरता दिखाई गयी लेकिन तब तक मामला वन विभाग की पेचीदगियों में फंस गया. वन विभाग ने बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र के निर्माण कार्य को पुनः शुरू न करने की बात करते हुए बची खुची उम्मीदों पर पानी फेर दिया. वन विभाग द्वारा कड़ी शर्त रखी गयी. डूब क्षेत्र में आने वाले पेड़ो की क्षति और जमीन की भरपाई की शर्त ने इस डैम पर ऐसे काले बादल घेरे जिसके छंटने की कोई उम्मीद नहीं बची थी. दशकों तक किसानों ने हलधर कपिलदेव के नेतृत्व में आंदोलन किये, लेकिन निर्माण आगे नहीं बढ़ सका. बीते कुछ वर्षों में जनप्रतिनिधियों ने सरकार को इस बहुप्रतीक्षित परियोजना की अहमियत और जरूरत को अच्छे तरीके से बताया. इसके बाद वन विभाग की अड़चनों को दूर करने में संबंधित विभाग, जनप्रतिनिधि और स्थानीय प्रशासन जुट गये. बाधाएं दूर होने लगी, जनप्रतिनिधि और समाजसेवियों के प्रयास ने रंग लाया. परिणामतः नीतीश कुमार ने इसके निर्माण का वादा किया.

प्रगति यात्रा के दौरान सीएम ने दिखाई थी रुचि

प्रगति यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री के जमुई आगमन पर उन्हें इस डैम की जरूरत को बताया गया. जिसपर मुख्यमंत्री ने इस डैम के प्रति रुचि दिखाई थी. कैबिनेट में स्वीकृति के बाद बीते 3 अप्रैल को उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी, मुख्य सचिव व विभागीय प्रमुख सचिव के साथ डैम निर्माण स्थल का हवाई सर्वेक्षण किया. इसके एक दिन बाद ही सिंचाई प्रमंडल झाझा के कार्यपालक अभियंता दीपक प्रधान के नेतृत्व में कई विभागीय पदाधिकारियों की एक टीम डैम निर्माण के लिए प्रस्तावित स्थल पर पहुंचकर प्री कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी की विधिवत शुरुआत की. इस एक्टिविटी के दौरान महाराष्ट्र के पुणे से आयी टीम ने आधुनिक तकनीक से लैस बड़े ड्रोन और सेटेलाइट के माध्यम से डूब क्षेत्र, डिस्ट्रीब्यूशन प्वाइंट, बायां व दायां केनाल वगैरह का ड्रोन से सर्वे का कार्य प्रारंभ किया था.

समय के साथ बढ़ती गयी परियोजना की प्राक्कलित राशि

वर्ष 1976 में जब इस परियोजना को प्रारंभ किया गया तब इसे 803.86 लाख रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति दी गयी थी. 1982 में इस कार्य हेतु 12960 लाख रुपये का पुनरीक्षित प्राक्कलन तैयार कर जल आयोग को भेजा गया था. 1998 में पुनरीक्षित प्राक्कलन 23043 लाख रुपये के आधार पर जल संसाधन विभाग ने दिसंबर 1998 को 21622.57 लाख रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति दिया था. सूत्रों की मानें तो 2005 में उक्त बांध का प्राक्कलन तीन अरब 66 करोड़ और 2012 में इसकी प्राक्कलित राशि तकरीबन आठ अरब रुपये हो गयी, जबकि इस वर्ष 2025 में इसके निर्माण हेतु लगभग 2579.37 करोड़ की राशि को प्रस्तावित किया गया है जिसे कैबिनेट से मंजूरी मिली है.

डैम की ऊंचाई और तकनीक में हो सकता है थोड़ा बहुत बदलाव

70-80 के दशक में बरनार डैम निर्माण के लिए जो प्रारूप, तकनीक और योजना बनाई गयी थी उसमें संभव है कि अब कुछ बदलाव देखने को मिले. वरीय पदाधिकारी और इंजीनियर की मानें तो यह कंक्रीट डैम बनेगा और संभव है कि डैम की ऊंचाई और तकनीक में कुछ बदलाव किए जाएं. पूर्व में बने प्राक्कलन में लगभग 282.70 मीटर लंबे डैम की ऊंचाई 76.75 मीटर रखी गयी थी, लेकिन अब इसकी ऊंचाई को थोड़ा कम किया जायेगा. डैम से निकलने वाले पानी और इसके डिस्ट्रीब्यूशन के लिए पूर्व में खुला केनाल बनाया जाना था जिसका कार्य भी काफी हद तक हो चुका था, लेकिन अब कवर केनाल बनाया जायेगा. यहां तक कि मेन केनाल से साइड डिस्ट्रीब्यूशन हेतु भी कवर केनाल यानी पाइप द्वारा ही पानी को भेजा जायेगा. पूर्व में बाएं मुख्य नहर का जलस्राव 13.536 घन मीटर प्रति सेकेंड (क्यूमेक) और दाएं नहर का जलस्राव 6.371 घन मीटर प्रति सेकेंड (क्यूमेक) था. संभव है कि वर्तमान में जब निर्माण कार्य प्रारंभ होगा और कवर नहर बनाया जायेगा तब जलस्राव के इन आंकड़ों में भी कोई बदलाव देखने को मिले. कवर केनाल के लिए भी सर्वे कार्य किया जा चुका है.

डैम में लगाये जायेंगे उच्च गुणवत्ता वाले मैटेरियल, होगा आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल

विभाग के वरीय पदाधिकारी की मानें तो डैम के निर्माण में उच्च गुणवत्ता वाले मैटेरियल का ही उपयोग होगा साथ ही अब इस कंक्रीट डैम निर्माण के दौरान आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल होगा. इसके लिए जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम स्थल का दौरा करने और रुड़की व पुणे से टीम आकर स्टडी कर अपनी रिपोर्ट देने की बात कही गयी थी. निर्माण के दौरान जिस मैटेरियल का उपयोग किया जायेगा उसकी टेस्टिंग के लिए सेंटर मैटेरियल टेस्टिंग यूनिट आयेगा. लगाए जाने वाले मैटेरियल के उच्च गुणवत्ता की जांच के बाद ही कार्य में इसका उपयोग हो सकेगा. बताया जा रहा है कि वर्तमान में इस डैम के निर्माण की जिम्मेदारी दक्षिण भारत की प्रतिष्ठित कंपनी नागार्जुन कंस्ट्रक्शन कंपनी को दिया गया है.

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