hajipur news. उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद नहीं हुआ जीर्णोद्धार, विलुप्त होने के कगार पर प्रभाकर पुष्करिणी
समाहरणालय के समीप सिविल कोर्ट परिसर में स्थित यह सरोवर दशकों से प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है और अपने जीर्णोद्धार की राह देख रहा है, सदियों पुराने इस बौधकालीन सरोवर की सुधि लेने वाला कोई नहीं
प्रतिनिधि, हाजीपुर . शहर का एक ऐतिहासिक बौद्धकालीन सरोवर अपनी पहचान खोता जा रहा है और विलुप्त होने के कगार पर है. जिला मुख्यालय में स्थित प्रभाकर पुष्करिणी अपने अस्तित्व का संकट झेल रहा है. उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी इसके जीर्णोद्धार के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा सका. समाहरणालय के समीप सिविल कोर्ट परिसर में स्थित यह सरोवर दशकों से प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है और अपने जीर्णोद्धार की राह देख रहा है. सदियों पुराने इस सुंदर सरोवर की सुधि लेने वाला कोई नहीं. जंगल-झाड़ से भर चुकी प्रभाकर पुष्करिणी कूड़ा-कचरा जमा करने की जगह बन गयी है.
70 के दशक में हुआ था बौद्धकालीन सरोवर का सौंदर्यीकरण
वर्तमान में सिविल कोर्ट का कारगिल परिसर, जो करीब तीन दशक पूर्व तक मंडल कारा का परिसर हुआ करता था, के निकट लगभग 50 डिसमिल भूखंड में स्थित बौद्धकालीन सरोवर का जीर्णोद्धार 1970 के दशक में तत्कालीन जिलाधिकारी प्रभाकर झा ने कराया था. अधिवक्ताओं का कहना है कि तत्कालीन डीएम की पहल और प्रयास से जब सरोवर का सौंदर्यीकरण हुआ, तो जिला मुख्यालय में एक सुंदर और सुकूनदायक जगह बनी. उचित देखभाल और रखरखाव के अभाव में आज यह सरोवर गंदगी और पर्यावरण प्रदूषण का जरिया बन गया है. पुष्करिणी में जमे कचरे के कारण यहां आने वाले न्यायार्थी एवं अधिवक्ताओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है. सरोवर की बदहाली पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रो. अजीत कुमार, गजेंद्र कुमार, राजेश रंजन, राहुल कुमार समेत अन्य लोगों ने कहा कि यदि प्रभाकर पुष्करिणी का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण नहीं कराया गया, तो इस ऐतिहासिक सरोवर का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा.डीएम को आवश्यक कार्रवाई करने कोर्ट ने दिया था
आदेश
प्रभाकर पुष्करिणी के संरक्षण और संवर्धन के लिए पटना हाई कोर्ट ने जिला प्रशासन को आदेश भी दिया. इसके बावजूद प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया. पुष्करिणी की दुर्दशा को लेकर व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ता मुकेश रंजन ने हाई कोर्ट में लोकहित याचिका दायर की. सरोवर के जीर्णोद्धार के लिए पिछले कई वर्षों तक नगर और जिला प्रशासन से गुहार लगाने के बाद जब कोई सुनवाई नहीं हुई, तो हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया. जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता ने बताया कि वर्ष 2015 में नगर कार्यपालक पदाधिकारी, 2016 में अनुमंडल लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी और 2017 में जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के समक्ष द्वितीय अपील दायर करने के बावजूद सरोवर का जीर्णोद्धार नहीं हुआ, तो बाध्य होकर उच्च न्यायालय की शरण ली. हाई कोर्ट ने सीडब्ल्यूजेसी वाद संख्या 1465/18 की सुनवाई के बाद 15 मार्च 2019 को पारित न्यायादेश में जिलाधिकारी को आवश्यक कार्रवाई करने का आदेश दिया. कोर्ट के आदेश के बाद छह वर्ष बीत गये, लेकिन इस दिशा में अब तक कोई कदम नहीं उठाया जा सका है.इजाजत मिले तो नगर परिषद बदल सकती है सूरत
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