Pitru Paksha 2022: गयाजी में पिंडदान से कैसे मिलती हैं पूर्वज को मुक्ति, जानें श्राद्ध और तर्पण का रहस्य?

Pitru Paksha 2022 : पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है. ऐसे तो देश में कई स्थानों पर पिंडदान किया जाता है, लेकिन बिहार के फल्गु तट पर बसे गया में पिंडदान करने का अत्यधिक महत्व होता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 10, 2022 7:48 AM

Pitru Paksh 2022: पितृपक्ष इस बार 10 सितंबर से शुरू हो रहा है. पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है. पितृपक्ष 10 सितंबर से 25 सितंबर तक रहेगा. इस दौरान पूर्वज की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है. मान्यता है कि गयाजी जाकर पिंडदान करने पर पितरों को मोक्ष मिल जाता है. पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है. ऐसे तो देश में कई स्थानों पर पिंडदान किया जाता है, लेकिन बिहार के फल्गु तट पर बसे गया में पिंडदान करने का अत्यधिक महत्व होता है. भगवान राम और माता सीता ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था.

हर साल पिंडदान करने गया में पहुंचते है लाखों लोग

गया में पिंडदान करने की विशेष मान्यता है. गया में पहले विभिन्न नामों की 360 वेदियां थीं, जहां पिंडदान किया जाता था. अब सिर्फ 48 ही वेदियां बची हैं. इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं. गया में पिंडदान करने के लिए देश-विदेश से लाखों लोग हर साल पितृपक्ष में पहुंचते है.

गया में श्राद्ध का महत्व

गया को भगवान विष्णु का नगर माना जाता है. यह मोक्ष की भूमि भी कहलाती है. इस बात की चर्चा विष्णु पुराण और वायु पुराण में की गयी है. विष्णु पुराण के अनुसार, गया में पिंडदान करने पर पूर्वज को मोक्ष मिल जाता है और वे सीधे स्वर्ग चले जाते है. माना जाता है कि गया में पितृ देवता के रूप में स्वयं भगवान विष्णु मौजूद है. इसलिए इस जगह को पितृ तीर्थ के नाम से जाना जाता है. गया को मोक्षस्थली भी कहा जाता है.

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गया में श्राद्ध करने की क्या है मान्यताएं

भस्मासुर के वंश में गयासुर नाम का एक राक्षस था. उसने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान पाया था कि उसके दर्शन से पाप मुक्त हो जाएंगे. इस वरदान के मिलने के बाद स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी. लोग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होने लगे. इससे बचने के लिए देवताओं ने यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग गयासुर से की. गयासुर ने अपना शरीर देवताओं के यज्ञ के लिए दे दिया. जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया. तबसे इस जगह को गया के नाम से जाना जाता है. यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान के लिए गया पहुंचते हैं.

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