पास में नहीं थे चाय पीने के पैसे,दर-दर भटकते पहुंचा गांव

मेराज अंसारीराजपुर : लॉकडाउन के बाद देश भर में मजदूरों की स्थिति दयनीय हो गयी है.कंपनी बंद है और घर आने के लिए साधन भी नहीं है. जेब में एक पैसा तक नहीं है. ऐसे में मजदूर अलग-अलग राज्यों से अपने क्षेत्र में पैदल चलने के लिए मजबूर हो गये हैं. प्रभात खबर अखबार से […]

By Prabhat Khabar | April 2, 2020 3:32 AM

मेराज अंसारीराजपुर : लॉकडाउन के बाद देश भर में मजदूरों की स्थिति दयनीय हो गयी है.कंपनी बंद है और घर आने के लिए साधन भी नहीं है. जेब में एक पैसा तक नहीं है. ऐसे में मजदूर अलग-अलग राज्यों से अपने क्षेत्र में पैदल चलने के लिए मजबूर हो गये हैं. प्रभात खबर अखबार से ऐसे ही दो मजदूरों ने अपनी पीड़ा जाहिर की जिनके पास खाने के लिए पैसे तक नहीं थे, लेकिन समाजसेवियों और अन्य लोगों की मदद से वे अपने घरों तक पहुंचे हैं. इनके पैरों में छाले पड़ गये हैं लेकिन गांव पहुंचने की यह खुशी इनकी पीड़े को कम कर रही है. इनमें से एक राजपुर प्रखंड के मंगरांव गांव के मलई अंसारी और इटाढ़ी के मदन डेहरा गांव के मजदूर मनउर अंसारी है. पेश है इनकी आपबीती, इनकी जुबानी में.

दिल्ली में काम करने वाले मजदूर मनउर अंसारी ने बताया कि पिछले दस वर्षों से वहां काम करता हूं. कभी मैंने नहीं सोचा था कि इस तरह की समस्या होगी. अचानक जब लॉकडाउन के बाद सभी गाड़ियां बंद हो गयी तो मैं काफी सोच में पड़ गया. 10 मार्च को कंपनी के तरफ से जो मजदूरी मिली थी. उसमें से हमने मकान का किराया,राशन का बकाया के बाद शेष राशि अपने घरवालों को भेज दिया. तब तक कंपनी बंद हो जाने के बाद मेरे पास एक भी रुपये नहीं बचा था. कंपनी की तरफ से भी कुछ मिलने वाला नहीं था. ऐसी स्थिति में मैं वहां से पैदल ही गांव के लिए रवाना हो गया. बीच रास्ते में पुलिस वालों ने मदद की.

लगभग 100 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद पुलिस की मदद से मैं एक ट्रक में बैठकर वाराणसी आया. इस ट्रक में भी बहुत से लोग थे. बीच रास्ते में कुछ एक समाजसेवियों के द्वारा ट्रक रोककर मुझे और अन्य लोगों को खाना खिलाया गया. 29 मार्च को वाराणसी पहुंचा. यहां से पैदल चलना शुरू कर दिया. मंगरॉव में बुला अंसारी के घर मेरा ससुराल था. इसलिए हम पैदल चलकर यहां चले आये. पैदल चलने से पैरों में छाले पड़ गये हैं. क्वारंटीन सेंटर पर अभी तक कोई मेडिकल सहायता नहीं मिली है.मां के प्यार ने पैदल ही गांव आने को कर दिया

विवशइलाहाबाद से पैदल चलकर आये मेराज अंसारी ने बताया कि वहां किसी वकील का निजी गाड़ी चलाने का काम करते हैं. लॉकडाउन के कारण मेरी मां ने फोन किया कि घर चले आओ. इसलिए मां के प्यार ने मुझे यहां तक पैदल दूरी तय कर ला दिया. मेरे साथ भी सैकड़ों की तादाद में लोग पैदल आ रहे थे. शायर घाट के पास कर्मनाशा नदी को पार कर राजस्थान से पैदल चलकर आने वाले मजदूर भी बक्सर के पास बोक्सा जाने के लिए पैदल ही चले आ रहे थे.

इन लोगों ने भी बताया कि काम बंद होने से राजस्थान से ही पैदल चलकर आये हैं. अब अपने राज्य और क्षेत्र में आने से खुशी है. हजारों किलोमीटर पैदल चलने की पीड़ा पर अपने क्षेत्र में आने से मरहम लग गया है. मेराज कहता है कि रास्ते में ऐसे कई लोग मिले. जिन्होंने मानवता की मिसाल पेश की है. अन्य राज्यों से पैदल चलने वाले मजदूरों का हौंसला भी मेरे लिए हौसला अफजाई की दवा बनी रही

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