साधु के रूप में रावण ने छल पूर्वक किया सीता का हरण

मार्ग में अगस्त ऋषि से मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए पंचवटी में निवास करते हैं. वहां श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण को सुंदर उपदेश देते हैं.

By AMLESH PRASAD | September 27, 2025 10:27 PM

बक्सर, श्री रामलीला समिति के तत्वावधान में किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर चल रहे 22 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के 14वें दिन शनिवार को श्रीधाम वृंदावन से पधारी सुप्रसिद्ध रामलीला मण्डल श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय व्यास जी के निर्देशन में रामलीला में शूर्पणखा नासिका भंग व सीताहरण प्रसंग का मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि श्रीराम लक्ष्मण व सीता जी सती अनसुइया जी से मिलते हुए आगे बढ़ने पर सरभंग ऋषि मिलते हैं, वहां उनका उद्धार करते हुए आगे प्रस्थान करते हैं. मार्ग में अगस्त ऋषि से मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए पंचवटी में निवास करते हैं. वहां श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण को सुंदर उपदेश देते हैं. उसी समय रावण की बहन सूर्पणखा पंचवटी पर घूमने आती है और दोनों भाइयों के सौंदर्य को देखकर मोहित हो जाती है. वह अपना सुंदर सा रूप बनाकर दोनों भाइयों के समक्ष जाती है और खुद से विवाह करने का प्रस्ताव रखती है. दोनों भाइयों के मना करने के बाद भी वह विवाह करने के लिए हठ करने लग जाती है तब श्री लक्ष्मण जी शूर्पनखा की नाक काट देते हैं. शूर्पणखा का नाक कट जाने के बाद वह खर दूषण व त्रिसरा के पास विलाप करते हुए जाती है. खर दूषण श्रीराम से युद्ध करने आते हैं और युद्ध में प्रभु श्रीराम उनका वध कर देते हैं. वध के बाद सूर्पणखा भयभीत होकर अपने भाई रावण के पास जाकर सारी बात बताती है. रावण के आदेश पर मारीच सोने का हिरण बनाकर पंचवटी में जाता है. सीता जी सोने का हिरण देख मोहित हो जाती हैं और प्रभु श्रीराम से सोने के हिरण का खाल लाने की जिद करने लगती है. हिरण बना मारीच श्रीराम को वन मे दूर भटकाकर ले जाता है. इधर रावण साधु के रूप में सीता से भिक्षा लेने आता है और छल से सीता का हरण कर लेता है. रास्ते में सीता अपने आभूषण गिरा देती हैं. मार्ग में जटायु रावण को रोकता है, लेकिन रावण उसके पंख काट देता है. इधर राम लक्ष्मण सीता को खोजते हुए जाते हैं तो जटायु रास्ते में घायल अवस्था में मिलता है. जटायु राम को बताता है कि सीता का हरण रावण किया है.

कृष्णलीला के भक्त प्रहलाद प्रसंग में दिखाया गया कि हिरणकश्यप नामक दैत्य घोर तप करता है. उसके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट होकर वरदान के लिए वचन देते हैं. तब हिरण्यकश्यप वरदान मांगते हुए कहता है कि मैं न दिन में मरूं, न रात को, न आकाश में न पाताल में, न कोई हथियार काट सके, न आग जला सके, न ही मैं पानी में डूबकर मरूं, मैं सदैव जीवित रहूं. ब्रम्हा जी ने कहा तथास्तु. इधर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद जन्म से ही विष्णु की भक्ति में रम जाता है. यह बात हिरणकश्यप को पता लगी तो उसने अपने पुत्र को भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ने को दबाव बनाता है. क्योंकि हिरण कश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था. लाख प्रयास के बाद भी भक्त प्रहलाद श्री हरि की भक्ति में रमते जाते हैं. जिसके कारण हिरण कश्यप ने प्रह्लाद को मारने के अनेक प्रयास किये परंतु जब सफल ना हुआ, तो उसकी बहन होलिका ने अपने भाई से कहा आप क्यों परेशान हो हमें ब्रह्मा का वरदान है, कि आग हमें जला नहीं सकती. प्रह्लाद को गोद में लेकर धधकती आग की चिता पर बैठ जाती है, परंतु भक्त प्रहलाद बच जाते हैं और होलिका आग में जलकर राख हो जाती है.

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