पुष्प वाटिका में हुई जानकी व श्रीराम की आंखें चार
दिन में श्रीकृष्ण लीला एवं रात में श्रीराम लीला का मंचन श्री धाम वृंदावन के सुप्रसिद्ध श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय व्यास जी के निर्देशन में संपन्न हुआ.
बक्सर. श्री रामलीला समिति के तत्वावधान में किला मैदान में चल रहे 22 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के सातवें दिन शनिवार को रामलीला में नगर दर्शन व पुष्प वाटिका प्रसंग का मंचन किया गया, जबकि श्रीकृष्णलीला में मीराचरित्र लीला को जीवंत किया गया. जिसे देख दर्शक आत्म विभोर हो गए. दिन में श्रीकृष्ण लीला एवं रात में श्रीराम लीला का मंचन श्री धाम वृंदावन के सुप्रसिद्ध श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय व्यास जी के निर्देशन में संपन्न हुआ. श्रीराम के सौंदर्य पर मोहित हुए जनकपुरवासी रामलीला के प्रसंग में दिखाया जाता है कि मुनि विश्वामित्र से प्रभु श्री राम जनकपुर की शोभा देखने की इच्छा जाहिर करते हैं. मुनि से अनुमति मिलने पर अनुज लक्ष्मण के साथ श्रीराम जनकपुर नगर भ्रमण को निकलते हैं. जहां दोनों भाइयों के जनकपुर पहुंचते ही उन्हें देखने के लिए जनकपुर वासी काम-धाम छोड़ दौड़ पड़ते हैं और प्रभु श्रीराम के सांवला-सलोना और आकर्षक रूप देख सभी मोहित हो जाते हैं. जनकपुर वासियों की आंखें दोनों भाइयों पर ठहर जाती है. उनकी नेत्र सुख की अभिलाषा बढ़ती जाती है. हर किसी को महसूस हो रहा है कि जानकी के योग्य तो यही वर है. वहां इनके सौंदर्य को लेकर अष्ट सखियां अपास में संवाद करती हैं और श्री राम व लक्ष्मण के रंग रूप का बखान कर फूले नहीं समताी हैं. एक सखी कहती है कि लगता है करोड़ों कामदेव की छवि को जीता है, तो दूसरी कहती है कि हंस के बालकों के समान इनकी जोड़ी है. तीसरी सखी कहती है कि महाराज जनक को धनुष यज्ञ छोड़ जानकी का विवाह इसी सांवले वर से कर देना चाहिए. एक सखी आशंकित होते हुए कहती है कि महाराज का धनुष बहुत कठोर है और यह बालक बहुत कोमल हैं. जिसको लेकर सभी सखियां दुविधा में पड़ जाती हैं. अन्य सखी इस शंका को दूर करते हुए कहती है कि जिनके चरण रज पाते ही पत्थर की अहिल्या जब नारी बन गई तो इस शिव धनुष की विशात ही क्या है. सखियां दोनों भाइयों पर पुष्प वर्षा करती हैं. नगर भ्रमण के बाद दोनों भाई गुरु विश्वामित्र के पास लौटते हैं. सुबह होने पर दोनों भाई फुलवारी जाते हैं, इस समय गिरिजा पूजन के लिए जानकी का आगमन होता है. वह गिरजा स्तुति कर अपने लिए योग्य वर मांगती है और सखियां जानकी से राजकुमारों के रंग रूप का वर्णन करती है. सीता आश्चर्यचकित हो इधर-उधर देखती हैं. जानकी गिरजा स्तुति करती है और उनसे वर मांगती है कि मेरे मनोरथ को आप अच्छी तरह से जानती हैं, तभी आकाशवाणी होती है कि तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी. गिरीजा पूजन के पश्चात सीता राजमहल लौट जाती है. इधर श्री राम विश्वामित्र के पास लौटकर पुष्प लाने में देरी का कारण बताते हैं. श्री राम चकई, चकवा, और सूर्य उदय के बारे में मुनि विश्वामित्र से जानकारी लेते हैं. मीरा ने श्रीकृष्ण को चेहरा दिखाने से कर दिया इंकार दिन में मंचित कृष्णलीला के मीराबाई प्रसंग में दिखाया गया कि मीरा बाई पूर्व जन्म में बृज की श्यामा नामक गोपी होती है. जिसका विवाह बृज में ही रहने वाले सबल नामक ग्वाला से होता है. एक बार सबल जब श्यामा गोपी को ससुराल से लेकर आ रहा था तभी मार्ग में उन्हें कृष्ण मिल जाते हैं और मार्ग में रोककर श्यामा गोपी को अपना मुख दिखाने को कहते हैं. परंतु गोपी उन्हे अपना चेहरा दिखाने से यह कह कर मना कर देती है कि तुम वही कृष्ण हो जो गोपियों के यहां दही की चोरी करते हो इसलिए अपना चेहरा नहीं दिखाउंगी. तब कृष्ण ने क्रोध करते हुए कहा कि आज तुम अपना चेहरा मुझे नहीं दिखा रही हो तो एक दिन ऐसा आयेगा कि तुम हमारा मुख देखने को तरस जाओगी. इधर बृजवासी इंद्र की पूजा कर रहे थे श्री कृष्ण इंद्र की पूजा रोककर गोवर्धन की पूजा करवाते हैं. यह देख इन्द्र क्रोध में मूसलाधार बारिश करवाते हैं जिससे सारे बृजवासी चिंतित हो जाते हैं. तब श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर धारण करते हुए वृजवासियों को सुरक्षा प्रदान करते हैं. यह देखकर गोपी श्यामा श्री कृष्ण के समीप आकर क्षमा मांगती है, परंतु श्री कृष्ण अपना चेहरा नहीं दिखाते हैं और श्यामा से कहते हैं कि जब तुम अगले जन्म में मीरा बनकर आओगी तब मैं तुमसे एक संत के यहां मिलूंगा. दूसरी तरफ दिखाया गया कि राजस्थान के मेंड़ता गांव में मीरा बाई का जन्म होता है. कुछ समय बाद मीरा के गांव में संत रैदास जी सत्संग करने आते हैं. मीरा अपनी मां के साथ सत्संग में जाती है. वहां संत के पास गिरधर गोपाल की मूर्ति देखकर आकर्षित हो जाती है. वह बाबा से गोपाल की मूर्ति को मांगने लगती हैं, परन्तु बाबा गिरधर गोपाल देने से मना कर देते हैं.
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