सूर्योपासना का महापर्व छठ व्रत की शुरुआत 25 से
सनातन धर्मावलंबियों का सबसे प्रमुख पर्व छठ व्रत इस वर्ष 25 अक्टूबर से शुरू होने जा रहा है. व्रत को लेकर जिले के श्रद्धालु तैयारी में जुट गए हैं.
बिहारशरीफ. सनातन धर्मावलंबियों का सबसे प्रमुख पर्व छठ व्रत इस वर्ष 25 अक्टूबर से शुरू होने जा रहा है. व्रत को लेकर जिले के श्रद्धालु तैयारी में जुट गए हैं. सनातन धर्म में कार्तिक महीने को सबसे पवित्र महीना माना जाता है. यह महीना श्री हरि विष्णु के नाम समर्पित है. यह महीना व्रत- तप की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. इसीलिए सूर्योपासना का महापर्व छठ व्रत कार्तिक महीने में मनाया जाता है. छठ व्रत के दौरान भगवान भास्कर तथा छठी मैया की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व है. इस व्रत में व्रतियों द्वारा 36 घंटे का निर्जला उपवास रखा जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार छठ व्रत की उपासना और व्रत करने से संतान को दीर्घायु तथा उत्तम स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. परिवार में सुख-शांति बनी रहती है. इस संबंध में पंडित श्रीकांत शर्मा आचार्य ने बताया कि भगवान भास्कर साक्षात देवता हैं. इन्हीं के द्वारा पूरी श्रृष्टि का संचालन होता है तथा समस्त जीवों की रक्षा होती है. भारत में आदिकाल से ही भगवान सूर्य की उपासना होते रही है. हमारे वेद- उपनिषदों में भी भगवान सूर्य को साक्षात देवता मानते हुए उनकी उपासना के महत्व बताए गए हैं. 25 अक्टूबर को नहाय-खाय के साथ व्रत की शुरुआत:- छठ पूजा की शुरुआत 25 अक्टूबर दिन शनिवार को नहाय खाय की रस्म के साथ शुरू होगा. यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि होती है. इस बार नहाय खाय का पर्व 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा. इस दिन स्नान करने के बाद कुल देवी और सूर्य देव की पूजा करने का विधान है. नहाय-खाय के दिन व्रतियों के द्वारा प्रसाद के रूप में चावल-दाल और लौकी की सब्जी पकाई जाती है. इस प्रसाद को सूर्य देव तथा छठी मैया को अर्पित करने के बाद छठ व्रती तथा घर- परिवार के लोगों के द्वारा सेवन किया जाता है . 26 अक्टूबर को होगा खरना:- नहाय-खाय के अगले दिन यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को लोहंडा (खरना) का पर्व मनाया जाता है. इस बार 26 अक्टूबर को खरना मनाया जायेगा. इस दिन छठी मैया की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है. छठ व्रती स्नान आदि से निवृत होकर पूरी पवित्रता से खरना का प्रसाद तैयार करते हैं. खरना के प्रसाद में चावल तथा चने की दाल और चावल की खीर, रोटी, रवा,केला आदि का प्रसाद बनाया जाता है. छठ व्रती सबसे पहले भगवान भास्कर तथा छठी माता को प्रसाद अर्पित करते हैं. इसके बाद छठव्रती स्वयं प्रसाद ग्रहण कर बाद में अपने परिवार तथा सगे संबंधियों को प्रसाद देते हैं. खरना पूजा के बाद लगातार 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है. 27 अक्टूबर को सायंकालीन अर्घ्य:- छठ व्रत के तीसरे दिन 27 अक्टूबर को छठ व्रतियों के द्वारा भगवान सूर्य को सायंकालीन अर्घ्य प्रदान किया जायेगा. इस अवसर पर नदी- तालाबों के घाटों पर हजारों की संख्या में छठ व्रती तथा श्रद्धालु अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर उनकी उपासना करेंगे. अगले दिन 28 अक्टूबर को छठ व्रतियों के द्वारा उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जायेगा. हिंदी भाषी क्षेत्रों में छठ व्रत लोक आस्था का महापर्व कहलाता है.
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