सुबह की सैर में अब सियासी चहलकदमी

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर जिले में राजनीतिक गतिविधियों ने नया रंग-रूप ले लिया है.

By SANTOSH KUMAR SINGH | October 19, 2025 9:00 PM

बिहारशरीफ. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर जिले में राजनीतिक गतिविधियों ने नया रंग-रूप ले लिया है. उम्मीदवारों ने अब सुबह की सैर को ही जनसंपर्क का माध्यम बना लिया है. शहर के प्रमुख पार्कों और मैदानों में अब नेताओं और मतदाताओं के बीच सीधा संवाद कायम हो रहा है. शहर के प्रमुख स्थानों पर नजारा बदल गया है. गांधी मैदान, सुभाष पार्क में सुबह-सुबह राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गयी है. डीएम-एसपी आवास क्षेत्र में सैर के दौरान कार्यकर्ता आपस में प्रत्याशियों को लेकर चर्चाएं करने लगे है. हिरण्य पर्वत, 17 नंबर, चोराबगीता में प्रचार की गूंज सुनाई पड़ने लगी है. एक स्थानीय उम्मीदवार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सुबह का समय लोगों से रूबरू होने के लिए बेहतरीन मौका होता है. इस दौरान बातचीत ज्यादा स्वाभाविक और प्रभावी होती है. यह जनसंपर्क का सहज तरीका है. स्थानीय निवासी रंजन कुमार बताते हैं कि पिछले एक सप्ताह से हर सुबह किसी न किसी नेता से मुलाकात हो जाती है. वे हाथ मिलाते हैं, बातचीत करते हैं और अपनी योजनाओं के बारे में बताते हैं. इस नए तरीके के कई फायदे देखे जा रहे हैं. मतदाताओं से सीधा और अनौपचारिक संपर्क. पारंपरिक रैलियों से अलग दृष्टिकोण. लोगों के बीच अपनापन बढ़ाने का अवसर खोज रहे हैं. ऑफलाइन के साथ सोशल मीडिया पर भी जोर:- ऑफलाइन प्रचार के साथ-साथ ऑनलाइन गतिविधियां भी तेज हुआ है. व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर नेताओं की सक्रियता हुए हैं. यूट्यूब और एक्स पर नियमित अपडेट कर रहे हैं. सोशल मीडिया और दैनिक दिनचर्या में व्यक्तिगत संबंधों को मजबूत करने की कोशिश करते देखे जा रहे है. एक राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि यह नई पीढ़ी के मतदाताओं तक पहुंचने की सोची-समझी रणनीति है. शहरी क्षेत्रों में इसका विशेष प्रभाव देखने को मिल रहा है. इस नए तरीके ने कई पारंपरिक सियासी रिवाजों को बदल दिया है. सुबह की सैर अब सियासी मुलाकातों का समय, फिटनेस और राजनीति का अनूठा मेल, युवा मतदाताओं के साथ बेहतर तालमेल है. हालांकि कुछ मतदाता इसे सिर्फ चुनावी दिखावा मानते हैं, जबकि अधिकांश इस कोशिश को सकारात्मक देख रहे हैं. बिहारशरीफ की सुबह की सैर अब सिर्फ सेहत के लिए नहीं, बल्कि लोकतंत्र के नए रंगों से भी सजने लगी है. नेता और मतदाता – दोनों ही इस नए चलन में एक दूसरे के और करीब आ रहे हैं.

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