नालंदा विश्वविद्यालय बना भारत–वियतनाम सांस्कृतिक सेतु का केंद्र

वियतनाम बुद्धिस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट के वाइस रेक्टर परम पूज्य डॉ. थिच ताम डुक ने भारत और वियतनाम के बीच चल रहे शैक्षणिक और आध्यात्मिक सहयोग को एक सशक्त सेतु बताया है

By SANTOSH KUMAR SINGH | October 10, 2025 9:44 PM

राजगीर. वियतनाम बुद्धिस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट के वाइस रेक्टर परम पूज्य डॉ. थिच ताम डुक ने भारत और वियतनाम के बीच चल रहे शैक्षणिक और आध्यात्मिक सहयोग को एक सशक्त सेतु बताया है। यह न केवल पारस्परिक समझ को गहरा करेगा, बल्कि बौद्ध दर्शन के वैश्विक प्रसार और शांति, करुणा व संवाद की भावना को भी प्रोत्साहित करेगा. नालन्दा विश्वविद्यालय में ””””””””””””””””भारत–वियतनाम बौद्ध विरासत: पुनरावलोकन और संभावनाएं विषयक दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में शुक्रवार को उन्होंने यह कहा. सम्मेलन का आयोजन नालन्दा विश्वविद्यालय के बुद्धिस्ट वीमेन रिसर्च सेण्टर और वियतनाम बुद्धिस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा किया गया है. कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. राजेश्वर मुखर्जी के मंगलाचरण से हुआ. इसमें भारत, वियतनाम और अन्य देशों के प्रतिनिधि, भिक्षु – भिक्षुणी एवं शामिल हैं. उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय को ‘भारत–वियतनाम बौद्ध विरासत’ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन के लिए बधाई दी. उन्होंने कहा कि यह आयोजन भारत और वियतनाम के बीच गहरे ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत करेगा. सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि भारत में वियतनाम दूतावास के उप मिशन प्रमुख त्रान थान तुंग ने वियतनाम के पर्यटन क्षेत्र की व्यापक संभावनाओं पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भारत और वियतनाम के बीच बढ़ता पर्यटन सहयोग दोनों देशों की सांस्कृतिक निकटता को और सुदृढ़ करेगा. तुंग ने दोनों देशों के बीच हवाई संपर्क की सुलभता को सहयोग विस्तार का महत्वपूर्ण माध्यम बताया. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान और जनसंपर्क बढ़ाने से पारस्परिक समझ, मैत्री और आर्थिक संबंधों को नई ऊंचाइयाँ मिलेंगी. मुख्य वक्ता राजदूत रंजीत राय ने वियतनाम की हाल की आर्थिक प्रगति को भारत और समूचे एशिया क्षेत्र के लिए सकारात्मक और प्रेरणादायक संकेत बताया. उन्होंने कहा कि वियतनाम ने संतुलित विकास, उद्योग विस्तार और क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से वैश्विक स्तर पर अपनी सशक्त पहचान बनाई है. राजदूत राय ने यह भी उल्लेख किया कि वियतनामी संस्कृति और जीवन दर्शन भारत की प्राचीन परंपराओं, मूल्यों और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के अत्यंत निकट हैं. उन्होंने दोनों देशों के बीच बढ़ते सांस्कृतिक, शैक्षणिक और आर्थिक सहयोग को क्षेत्रीय स्थिरता, शांति और सतत प्रगति के लिए महत्वपूर्ण बताया. डीन, एस.एच.एस. प्रोफेसर अभय कुमार सिंह ने विश्वविद्यालय के शैक्षणिक वातावरण को प्रेरणादायक बताते हुए कहा कि यहाँ के छात्र सांस्कृतिक और बौद्धिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं. डीन, एस.बी.एस.पी.सी.आर. प्रो जी. मिश्रा ने अपने उद्बोधन में भारत और वियतनाम के धार्मिक एवं सांस्कृतिक संबंधों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह संवाद प्राचीन परंपरा की निरंतरता का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संवादों के माध्यम से अपनी प्राचीन ज्ञान परंपरा को आधुनिक वैश्विक परिप्रेक्ष्य से जोड़ते हुए शांति, समझ और साझा विकास की दिशा में सार्थक योगदान दे रहा है. सम्मेलन के दो दिनों में बौद्ध विरासत, सांस्कृतिक कूटनीति, शांति स्थापना और आधुनिक समाज में बौद्ध दर्शन की उपयोगिता जैसे विषयों पर विचार-विमर्श किया जाएगा. इन चर्चाओं का उद्देश्य शोध सहयोग को बढ़ावा देना और दोनों देशों के बीच शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक साझेदारी को मजबूत करना है. डॉ. राजीव रंजन चतुर्वेदी ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है