नालंदा शांति और अध्यात्म का दीपस्तंभ : शेरिंग टोबगे

बुधवार को नालंदा विश्वविद्यालय में भूटान के प्रधानमंत्री दशो शेरिंग टोबगे, उनकी धर्मपत्नी तथा उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल का शानदार स्वागत किया गया।

By SANTOSH KUMAR SINGH | September 3, 2025 9:46 PM

राजगीर. बुधवार को नालंदा विश्वविद्यालय में भूटान के प्रधानमंत्री दशो शेरिंग टोबगे, उनकी धर्मपत्नी तथा उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल का शानदार स्वागत किया गया। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सचिन चतुर्वेदी ने प्रधानमंत्री, प्रथम महिला और प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए उनके आगमन को ऐतिहासिक क्षण बताया. इस अवसर पर विद्यार्थियों और प्रधानमंत्री के बीच संवाद को प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की गई. इस प्रतियोगिता में 50 से अधिक प्रश्न प्राप्त हुए. चयनित प्रश्न प्रधानमंत्री से पूछे गए. उन्होंने उत्साह एवं आत्मीयता से उत्तर दिया. कुलपति ने अपने संबोधन में नालंदा विश्वविद्यालय की “एकत्व दर्शन” की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह प्रकृति के साथ सामंजस्य, विकास और स्थिरता के बीच संतुलन तथा शांति और संघर्ष-रहित सहअस्तित्व का मार्ग प्रशस्त करता है. उन्होंने इसे संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर्यावरण के लिए जीवनशैली आह्वान से जोड़ा. प्रो. चतुर्वेदी ने भूटान के सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता दर्शन को नालंदा की शैक्षणिक परंपरा से गहराई से जुड़ा बताया. साथ ही भूटान की माइंडफुलनेस सिटी पहल की तुलना नालंदा की ध्यान आधारित शिक्षा परंपरा से की. उन्होंने कहा कि नालंदा शांति, ज्ञान और पारिस्थितिक चेतना का जीवंत प्रतीक है. भूटान के प्रधानमंत्री का दर्शन इस सामंजस्य से गहराई से मेल खाता है. भूटान के प्रधानमंत्री दशो शेरिंग टोबगे ने अपनी धर्मपत्नी और प्रतिनिधिमंडल के साथ नालंदा व राजगीर आने पर प्रसन्नता व्यक्त की. उन्होंने भारत सरकार, बिहार सरकार और विश्वविद्यालय को स्नेहपूर्ण आतिथ्य के लिए धन्यवाद दिया. अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि अल-अजहर, बोलोनिया, ऑक्सफ़ोर्ड और पेरिस जैसे विश्वविद्यालयों से बहुत पहले नालंदा महाविहार लगभग दो सहस्राब्दियों तक विश्व का प्रमुख शिक्षा केंद्र रहा. यह केवल विश्वविद्यालय नहीं बल्कि विद्या और अध्यात्म का नगर था, जहाँ दस हजार से अधिक छात्र और विद्वान निवास कर अध्ययन-अध्यापन करते थे. उन्होंने वर्तमान नालंदा विश्वविद्यालय को उसी गौरवशाली परंपरा का संवाहक बताया. छात्रवृत्ति, शैक्षणिक आदान-प्रदान तथा सांस्कृतिक साझेदारी को मज़बूत करने पर बल दिया. प्रधानमंत्री ने नालंदा विश्वविद्यालय को नवंबर में भूटान में आयोजित होने वाले वैश्विक शांति प्रार्थना महोत्सव में भाग लेने का निमंत्रण भी दिया. उन्होंने कहा कि नालंदा केवल अतीत का विश्वविद्यालय नहीं है, बल्कि शांति, एकता और अध्यात्म का शाश्वत दीपस्तंभ है, जो आज भी दुनिया को प्रेरित करता है. अपने संबोधन में उन्होंने यह भी कहा कि भूटान विश्व का एकमात्र वज्रयान बौद्ध देश है. नालंदा ने हमारी परंपराओं को आकार देने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है. भविष्य में नालंदा और भूटान का सहयोग इस बंधन को और प्रगाढ़ बनाएगा. प्रधानमंत्री की यात्रा का समापन छात्रों के साथ संवाद से हुआ, जिसने नालंदा की ज्ञान और वैश्विक आदान-प्रदान की परंपरा को पुनर्जीवित किया.

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