अब रोजगार और भ्रष्टाचार हैं चुनावी बिसात के नये पासे

तीन दशक से चली आ रही राजनीतिक कैसेट अब बदलने लगी है. जिले की जनता अब उस पुराने रेकॉर्ड को सुनने को तैयार नहीं है, जिसमें सिर्फ जंगलराज का राग अलापा जाता रहा.

By SANTOSH KUMAR SINGH | October 31, 2025 10:21 PM

बिहारशरीफ. तीन दशक से चली आ रही राजनीतिक कैसेट अब बदलने लगी है. जिले की जनता अब उस पुराने रेकॉर्ड को सुनने को तैयार नहीं है, जिसमें सिर्फ जंगलराज का राग अलापा जाता रहा. अब चुनावी मैदान में रोजगार, भ्रष्टाचार और अतिक्रमण जैसे जमीनी मुद्दे हावी हैं और यह बदलाव यहां के नतीजों की दिशा बदल रहा है. एनडीए दशकों से जंगलराज को ही अपना प्रमुख चुनावी हथियार बनाए हुए था, जबकि महागठबंधन हर बार एक नया एजेंडा लेकर आता रहा. लेकिन अब मतदाताओं ने खुद ही एजेंडा तय करना शुरू कर दिया है. विश्लेषकों का कहना है कि अब मतदाता विकास और रोजगार के साथ भ्रष्टाचार, अफसरशाही और सरकारी जमीनों पर बढ़ते अतिक्रमण जैसे मुद्दों पर सीधे तौर पर सरकारों से सवाल कर रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि सत्ताधारी दल के नेता और प्रत्याशी इन नए और संवेदनशील मुद्दों पर खुलकर बोलने से बच रहे हैं. वहीं, जनता अब पहले जैसी नहीं रही. वह न सिर्फ पुराने वादों को याद रखती है, बल्कि नए विकल्प तलाशने में भी पीछे नहीं हट रही. साफ है कि नालंदा की सियासत अब एक नए दौर में प्रवेश कर चुकी है. यहां की जनता अब केवल भय या भावनाओं के आधार पर वोट नहीं देती. उसकी नजर अब सीधे उन मुद्दों पर है जो उसके रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करते हैं. ऐसे में, वही दल सफल होगा जो जंगलराज के पुराने नैरेटिव से आगे निकलकर जनता की रोजी-रोटी की चिंता को समझेगा और उसका समाधान पेश करेगा. हिलसा और इस्लामपुर में बदलाव था संकेत

इस बदलाव का असर हाल के दो चुनावों में साफ देखने को मिला, जब हिलसा और इस्लामपुर जैसी सीटें सत्ताधारी जदयू के हाथ से निकलकर राजद के खाते में चली गईं. यह केवल सीटों का हस्तांतरण नहीं, बल्कि जनमत के बदलाव का स्पष्ट संकेत था. इस बार चुनावी समीकरण और भी जटिल हुए हैं. अब चुनावी मैदान में एक मजबूत तीसरा मोर्चा भी उभर रहा है, जिससे एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए ही मुकाबला त्रिकोणीय और कठिन हो गया है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर एनडीए ने सिर्फ जंगलराज के पुराने राग पर भरोसा किया और जनसरोकार के मुद्दों की अनदेखी की, तो इस बार परिणाम उनके लिए चौंकाने वाले हो सकते हैं.

नालंदा में साल दर साल, कैसे बदले चुनावी मुद्दे (एक नजर में)

साल- प्रमुख मुद्दे व रणनीति परिणाम

1995- एनडीए: लालू शासन को जंगलराज करार. राजद: सामाजिक न्याय और पिछड़ों की राजनीति. राजद का दबदबा

2000- विपक्ष: घोटाले और अव्यवस्था. राजद: एमवाइ समीकरण का सहारा. राजद ने बचायी सत्ता

2005- एनडीए: जंगलराज के खिलाफ जोरदार अभियान. बदलाव: एनडीए की सत्ता में वापसी

2010- एनडीए: सुशासन और विकास. राजद: बचाव की मुद्रा. एनडीए का दबदबा

2015- भाजपा: जंगलराज रिटर्न्स. गठबंधन: आरक्षण और मोहन भागवत के बयान को मुद्दा. महागठबंधन की जीत

2020- एनडीए: जंगलराज का भय. राजद: बेरोजगारी और रोजगार. युवाओं में राजद का प्रभाव बढ़ा

2025- एनडीए: जंगलराज बनाम विकास. महागठबंधन: हर परिवार को एक नौकरी, हर घर में महिला को रोजगार. फिलहाल, मैदान गर्म.

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