Bihar news: पटना HC ने दो अलग-अलग मामले में BSEB पर 15 लाख का जुर्माना लगाया, क्या है मामला पढ़े पूरी खबर

पटना हाईकोर्ट (patna high court )ने दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बिहार बोर्ड पर कुल पंद्रह लाख रुपये का जुर्माना लगाया. कोर्ट ने बोर्ड को कड़ी फटकार लगाते हुए जुर्माने की राशि को पीड़ित छात्र के खाते में जमा कराने के आदेश दिए.

By Prabhat Khabar Print Desk | July 29, 2022 12:45 PM

पटना हाईकोर्ट (patna high court) ने मैट्रिक परीक्षा पास करने के 6 साल बाद भी मार्कशीट नहीं दिए जाने के मामले को गंभीरता से लेते हुए बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ( BSEB ) पर 5 लाख का अर्थदण्ड लगाया है. कोर्ट ने बोर्ड को अर्थदण्ड की राशि को याचिकाकर्ता के बैंक खाते में भेजने के निर्देश दिए. न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा की एकलपीठ ने सरस्वती कुमारी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया है.

स्कूल की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहा था छात्र

याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया कि 29 मई 2016 को उसने मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास किया था. बोर्ड द्वारा प्रमाण पत्र 28 अप्रैल, 2016 को तैयार किया गया और अंतिम प्रमाण पत्र 29 मई, 2019 को तैयार कर हस्ताक्षरित किया गया था. सचिव द्वारा प्रमाण पत्र और अंक-पत्र पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद बोर्ड ने प्रमाण पत्र को छात्रों को देने पर रोक लगा दिया था.

कोर्ट ने बोर्ड को लगाई फटकार

बोर्ड की ओर से बताया गया कि जिस स्कूल में छात्र पढ़ रहे थे उस स्कूल ने बोर्ड को पंजियन राशि जमा नहीं किया था. इसी वजह से उन्हें प्रमाण पत्र नहीं दिया गया है. कोर्ट ने बोर्ड की इस दलील को गम्भीरता से लेते हुए कहा कि किसी दूसरे की गलती का खामियाजा कोई भी छात्र को कैसे दी गई. बोर्ड के इस कार्य से छात्र का जीवन बर्बाद हो जाएगा. कोर्ट ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए बोर्ड पर भारी भरकम जुर्माना लगाया.

एक अन्य मामले में लगाया 10 लाख का अर्थदंड

हाई कोर्ट (Patna HC)की इसी एकलपीठ ने 8 साल तक याचिकाकर्ता के इंटर परीक्षा के परिणाम को रोके रखे जाने पर बिहार विद्यालय परीक्षा समिति पर 10 लाख रुपये का अर्थदण्ड लगाया. न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा की एकलपीठ ने गौरी शंकर शर्मा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि बोर्ड के उदासीन रवैये के कारण एक छात्रा का उज्ज्वल भविष्य खराब हो गया. बता दें कि याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसकी बेटी ने वर्ष 2012 में इंटर की परीक्षा दी थी, लेकिन साल 2020 तक परीक्षा के आठ साल बीत जाने के बाद भी उसका परिणाम बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा घोषित नहीं किया गया. इसके बाद विवश होकर याचिकाकर्ता को कोर्ट की शरण में आना पड़ा.

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