Flood in Bihar : इसी चौकी पर खाते हैं और यहीं सोते हैं, यहीं शौच के लिए भी हैं विवश

घरों में बाढ़ का पानी घुसा हुआ है. सिर ढकने के लिए प्लास्टिक तान रखा है. सामुदायिक किचन से भोजन मिल जाता है, लेकिन शुद्ध पेयजल नसीब नहीं हो रहा. बाढ़ के पानी से ही प्यास बुझाते हैं.

By Prabhat Khabar | July 31, 2020 12:10 PM

कुशेश्वरस्थान : बाढ़ की राजधानी कहे जाने वाले इस क्षेत्र के लोगों की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. घरों में बाढ़ का पानी घुसा हुआ है. सिर ढकने के लिए प्लास्टिक तान रखा है. सामुदायिक किचन से भोजन मिल जाता है, लेकिन शुद्ध पेयजल नसीब नहीं हो रहा. बाढ़ के पानी से ही प्यास बुझाते हैं. इधर जलस्तर में एक बार फिर तेजी से वृद्धि होने लगी है. इससे प्रखंड के सभी पंचायतों की स्थिति भयावह हो गयी है. घरों में पानी रहने पर कई लोग चौकी पर चौकी लगा रहने के लिए मजबूर हैं.

घर में बाढ़ के पानी में चौकी पर बैठे फकदोलिया निवासी महेन्द्र राय ने बताया कि बाबू हमरा सबके देखय लेल क्यो नहि आयल. बाढिक पाइन घरमे घुसल छै. एहि चौकी पर खाई छी आ सुतै छी. शौच के लेल नाव नै भेटै छै, तखन एही चौकी पर शौचक लेल विविश भ जाइ छी.

वहीं कुशेश्वरस्थान के मखनाही महादलित टोला पर लोगों के घरों में पानी रहने के कारण पड़ोस में दूसरी मंजिल पर रह रहे पीड़ित सुबोध मल्लिक बताते हैं कि घरों में ही चौकी लगाकर रह रहे हैं. चापाकल डूब जाने के कारण बाढ़ के पानी में ही खाना बनाना पड़ता है. सुबोध ने बताया कि रविवार को जब आकाश में हेलिकॉप्टर देखा तो आस जगी, लेकिन वह भी निराश में बदल गयी. राहत का पैकेट जिसे मिला, वह लिया. नाव नहीं रहने के कारण हमलोग तो घरों में ही कैद रह गये हैं. इस समय हमलोग सिर्फ भगवान पर ही आस लगाए बैठे हैं.

बाढ़ से सबसे अधिक तबाही भरैंन मुसहरी महादलित टोल, चौकियां, लक्ष्मिनिया, कुंजभवन, बसबरिया में है. लोग बेघर हो कमला बलान पूर्वी व पश्चिमी तटबंध पर छोटी सी झोपड़ी बनाकर परिवार के साथ रहते हैं. जिनके पास मवेशी है, वे मवेशी को लेकर उसी झोपड़ी में समय गुजारते हैं. पीड़ितों का कहना है कि अंचल से महज एक प्लास्टिक मिला है.

सामुदायिक कीचन से भोजन मिल जाता है. बारिश होने और बिजली कड़कने पर झोपड़ी में सबसे अधिक डर लगता है. मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाते हैं. जब बारिश होती है, तो खाना बनाना भी मुश्किल हो जाता है. उस स्थिति में चूरा फांककर समय गुजारना पड़ता है. पदाधिकारी आते हैं और सिर्फ आश्वासन देकर चले जाते हैं.

posted by ashish jha

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