bhagalpur news. जब तक मनुष्य परिग्रह व संग्रह से मुक्त नहीं होगा, तब तक नहीं मिलेगी शांति
आकिंचन्य का अर्थ है अपरिग्रह. परिग्रह का ढेर बढ़ता जाता है और मनुष्य की इच्छा भी उसे और बढ़ाने की बढ़ती जाती है.
श्री चंपापुर दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र में दशलक्षण महापर्व के नौवें दिन उत्तम आकिंचन धर्म को लेकर हुई पूजा-अर्चना
आकिंचन्य का अर्थ है अपरिग्रह. परिग्रह का ढेर बढ़ता जाता है और मनुष्य की इच्छा भी उसे और बढ़ाने की बढ़ती जाती है. जब तक मनुष्य परिग्रह व संग्रह से मुक्त नहीं होगा, तब तक शांति नहीं मिलेगी. परिग्रह शोभा नहीं, बोझा है. परिग्रह, समस्त चिंताओं की जड़ है. सब पापों की जड़ परिग्रह है. उक्त बातें नयी दिल्ली से आये ललित बेनाड़ा ने शुक्रवार को कही. मौका था चंपापुर दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र, नाथनगर कबीरपुर में दशलक्षण महापर्व के नौवें दिन उत्तम आकिंचन्य धर्म को लेकर पूजा-अर्चना का. सिद्धक्षेत्र में विराजमान भगवान वासुपूज्य की पद्मासन प्रतिमा की श्रद्धालुओं ने भक्ति पूर्वक पूजा-अर्चना की. श्री बेनाड़ा ने बहा कि परिग्रह जीव को सुख नहीं देता है. दूसरों को खुशी देना धर्म है. गलती की स्वीकृति अर्थात पुनः गलती ना होने देना है. उन्होंने कहा कि गुरु का सानिध्य विकार क्लेश को समाप्त करता है. विश्व कल्याण की भावना प्रत्येक धर्म का मूल है. मंगलाचरण शांतिधारा पूरी भक्ति भाव से की गयी.अनंत चतुर्दशी महोत्सव, उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की आराधना सह वासुपूज्य निर्वाण महोत्सव आजसिद्धक्षेत्र मंत्री सुनील जैन ने ने बताया कि शनिवार को अनंत चतुर्दशी के पावन अवसर पर भगवान वासुपूज्य का निर्वाण महोत्सव, उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म आराधना सह दशलक्षण महापर्व समापन समारोह होगा. भगवान वासुपूज्य निर्वाण महोत्सव के लिए 12 किलोग्राम के विशेष निर्वाण लाडू तैयार किये जा रहे हैं. स्वर्ण कलश, रजत कलश के साथ 1008 कलशों से मस्तकाभिषेक किया जायेगा. संपूर्ण कार्यक्रम संध्या 4.15 श्री चंपापुर दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र के जल मंदिर में आयोजित होंगे. इसे लेकर साज सज्जा एवं अन्य तैयारियां की गयी हैं .
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