मरही माई धाम : महर्षि भृगु की तपोभूमि और आस्था का केंद्र

इसकी परिधि में आने मात्र से भक्तों को होती है शांति और सुकून की अनुभूति

By SUJIT KUMAR | November 24, 2025 4:38 PM

इसकी परिधि में आने मात्र से भक्तों को होती है शांति और सुकून की अनुभूति

1ए-नीलम पत्थर की मां सिंगवाहिनी

1बी- मरही स्थान कुंड

मणिकांत पांडेय, गोह

गोह प्रखंड के भुरकुंडा गांव स्थित मरही माई धाम सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि महर्षि भृगु की प्राचीन तपोभूमि है. यह स्थल सदियों से आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र रहा है. माना जाता है कि इसकी परिधि में आने मात्र से भक्तों को शांति और सुकून की अनुभूति होती है. मरही धाम दो मुख्य कारणों से श्रद्धालुओं के बीच विशेष आस्था का स्थान है. पहला मां सिंहवाहिनी की दुर्लभ प्रतिमा और दूसरा चमत्कारी भृगु कुंड. मरही धाम का इतिहास महर्षि भृगु से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि भृगु ऋषि अपनी पत्नी के साथ इसी स्थान पर निवास करते थे. उन्होंने अपनी साधना के लिए यहां एक पवित्र कुंड का निर्माण कराया था. उसी कुंड के नाम पर इस क्षेत्र को भुरकुंडा कहा जाने लगा. आचार्य वेंकटेश द्विवेदी के अनुसार, वैदिक काल में यह स्थान देवताओं के गुरुकुल जैसा था. यहां भृगु ऋषि उन्हें ज्योतिष और कर्मकांड की शिक्षा देते थे. मरही धाम प्राचीन सनातन परंपरा की गौरवशाली विरासत का प्रतीक है, जो समय के साथ और मजबूत हुई है.

दुर्लभ नीलम पत्थर की मां सिंहवाहिनी

मरही धाम के गर्भगृह में मां सिंहवाहिनी (दुर्गा) की अत्यंत दुर्लभ और आकर्षक प्रतिमा स्थापित है. यह प्रतिमा साधारण पत्थर की नहीं, बल्कि नीलम जैसी दुर्लभ पत्थर की बनी है. नवरात्र सहित विशेष अवसरों पर इस प्रतिमा का दिव्य शृंगार किया जाता है. भक्तों का विश्वास है कि मां सिंहवाहिनी यहां साक्षात विराजमान हैं और सच्ची मनोकामना रखने वाले की मनःकामना अवश्य पूर्ण करती हैं. मनोकामना पूर्ण होने पर यहां बलि देने की परंपरा भी है. हालांकि, अब कई स्थानों पर प्रतीकात्मक बलि की प्रथा को बढ़ावा मिल रहा है.

रोगनाशक भृगु कुंड का चमत्कार

मंदिर परिसर के निकट स्थित प्राचीन भृगु कुंड (या ब्रह्म कुंड) का जल रोगनाशक माना जाता है. मान्यता है कि इस जल को पीने या स्नान करने से कई प्रकार के रोग और कष्ट दूर हो जाते हैं. दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आकर कुंड के जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.

बीरबल और देवी चंडी की कथा

स्थानीय लोककथाओं में मरही धाम का संबंध मुगलकालीन नवरत्न बीरबल से भी जोड़ा जाता है. एक कथा के अनुसार, चरवाहा रहते हुए बीरबल यहां आया करते थे और इसी स्थान पर उन्हें देवी चंडी का आशीर्वाद मिला था. यह कथा आज भी ग्रामीणों द्वारा श्रद्धा के साथ सुनाई जाती है, जो धाम की चमत्कारिक मान्यता को और प्रबल बनाती है.

विकास की दरकार, महोत्सव से उम्मीद

अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के बावजूद मरही धाम आज भी सरकारी उपेक्षा का शिकार है. मंदिर के विकास और सौंदर्यीकरण की मांग लंबे समय से की जा रही है. हालांकि, हाल के वर्षों में धाम समिति द्वारा मरही महोत्सव की शुरुआत की गयी है, ताकि इसे पर्यटन मानचित्र में विशेष पहचान मिल सके. मरही धाम औरंगाबाद की वह अनुपम धरोहर है, जहां महर्षि भृगु की तपोस्थली पर मां सिंहवाहिनी आज भी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर रही हैं. यहां स्थित भृगु कुंड रोगनाशक जल का पवित्र स्रोत बना हुआ है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है