आजादी के बाद भारत का पहला ओलंपिक गोल्ड, 200 साल राज करने वाले अंग्रेजों को ही चटाई थी धूल

India Won First Medal After Independence: 12 अगस्त 1948, लंदन में आजाद भारत की हॉकी टीम ने इंग्लैंड को 4-0 से हराकर पहला ओलंपिक स्वर्ण जीता. विभाजन की चुनौतियों, मुश्किल हालात और युवा खिलाड़ियों के जज्बे से लिखी यह जीत सिर्फ खेल नहीं, बल्कि तिरंगे की पहली ऐतिहासिक उड़ान थी.

By Aditya Kumar Varshney | August 12, 2025 7:30 PM

India’s First Olympic Gold After Independence:  12 अगस्त 1948, आजाद  भारत का पहला साल पूरा होने से बस तीन दिन पहले, लंदन में भारतीय हॉकी टीम इतिहास रचने के लिए तैयार थी. 15 अगस्त 1947 को लगभग 200 साल के ब्रिटिश शासन का अंत हुआ था. हमारे वीर स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और संघर्ष के बाद भारत ने आजादी की मीठी हवा में सांस ली थी.

अब देश एक नए सुनहरे भविष्य का सपना देख रहा था. उसी समय, देश से हजारों मील दूर, भारतीय हॉकी के कुछ युवा सितारे मैदान पर आग लगाने को तैयार थे. एक नई, स्वतंत्र भारतीय टीम ब्रिटेन को उसके घर में हराने के इरादे से उतरी थी. लेकिन इस जीत तक का रास्ता आसान नहीं था.

विभाजन का असर, नई टीम की तैयारी

आजादी के साथ आई विभाजन की त्रासदी ने हॉकी टीम को भी प्रभावित किया. पाकिस्तान बनने के बाद कई दिग्गज खिलाड़ी नियाज खान, शाहरुख मोहम्मद, अजीज मलिक और अली शाह दारा जो 1936 ओलंपिक जीतने वाली टीम का हिस्सा थे, पाकिस्तान चले गए. ऐसे में भारत को ज्यादातर नए खिलाड़ियों के साथ एक युवा टीम बनानी पड़ी. टीम की कप्तानी किशन लाल के हाथों में थी, जबकि उपकप्तान बने के.डी. सिंह ‘बाबू’.

टीम में एक बड़ा सितारा भी था, जो शुरुआत में आंतरिक विवादों के कारण शामिल नहीं हुआ बलबीर सिंह सीनियर. 1932 के गोल्ड पदक विजेता डिकी कार के प्रयास से बलबीर को टीम में जगह मिली. खिलाड़ियों को एकजुट करने और बेहतर तालमेल के लिए टीम ने मुंबई में प्रशिक्षण किया. इस वजह से भारतीय टीम इंग्लैंड देर से पहुंची और जहाज की बजाय विमान से भेजी गई. लेकिन खेल शुरू होते ही भारत ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को ध्वस्त करना शुरू कर दिया.

भारत की धमाकेदार शुरुआत

भारत पूल ‘ए’ में ऑस्ट्रिया, स्पेन और अर्जेंटीना के साथ था. पहले मैच में भारत ने ऑस्ट्रिया को 8-0 से हराया, हालांकि बलबीर इस मैच में नहीं खेले. दूसरे मैच में अर्जेंटीना के खिलाफ बलबीर को मौका मिला और उन्होंने धमाकेदार शुरुआत की. अकेले बलबीर ने 6 गोल दागे और भारत ने 9-1 से जीत दर्ज की. इस प्रदर्शन के बाद टीम का आत्मविश्वास चरम पर था.

इसके बाद मौसम और मैदान की स्थिति ने टीम की परीक्षा ली. बारिश से मैदान कीचड़ में बदल गया, जिससे भारतीयों की तेजी और तकनीक का फायदा कम हो गया. बलबीर को अर्जेंटीना मैच के बाद बाहर बैठा दिया गया, यहां तक कि नीदरलैंड्स के खिलाफ सेमीफाइनल  में भी उन्हें खेलने से रोक दिया गया. इसके बावजूद भारत ने स्पेन को 2-0 और नीदरलैंड्स को 2-1 से हराकर फाइनल में जगह बना ली.

इंग्लैंड के खिलाफ ऐतिहासिक फाइनल

फाइनल का मुकाबला उस इंग्लैंड से था, जिसने लगभग 200 साल भारत पर राज किया था. और अब, उसी के घर में, लंदन के वेम्बली स्टेडियम में, भारत उसे चुनौती देने उतरा था.

यूके में पढ़ रहे कुछ भारतीय छात्रों ने भारतीय उच्चायुक्त वी.के. कृष्ण मेनन से बलबीर को फाइनल में खिलाने की माँग करते हुए प्रदर्शन किया. आखिरकार, टीम प्रबंधन ने बलबीर को फाइनल में मौका दिया. इंग्लैंड को उम्मीद थी कि बारिश उनके लिए फायदेमंद होगी, जबकि भारत को गर्म मौसम की चाहत थी. फाइनल से एक दिन पहले लंदन में बारिश हुई, लेकिन भारतीय टीम ने बुद्धिमानी से स्टड वाले जूते पहनने का फैसला किया ताकि फिसलन भरे मैदान पर बेहतर पकड़ बनाई जा सके.

अंत में भारत ने इंग्लैंड को 4-0 से हराया, जिसमें बलबीर ने दो गोल दागे. यह जीत सिर्फ एक ओलंपिक गोल्ड नहीं थी, बल्कि एक आजाद भारत का पहला ओलंपिक गोल्ड पदक था. पहली बार भारत का तिरंगा ओलंपिक में सबसे ऊपर लहराया. बलबीर सिंह सीनियर ने बाद में कहा “यह गर्व का पल था कि हमने इंग्लैंड को हराया. यह रोमांचक था. और अब दुनिया ने हमारे झंडे को सलाम किया.”

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