रोहित शर्मा को टीम से बाहर करने के लिए लाया गया है खतरनाक टेस्ट! पूर्व क्रिकेटर का सनसनीखेज दावा
Bronco Test introduced to push Rohit Sharma out of the team: बीसीसीआई ने खिलाड़ियों की फिटनेस जांचने के लिए ब्रॉन्को टेस्ट लागू किया है, जिसमें 1200 मीटर शटल रन शामिल है. इसका उद्देश्य एरोबिक क्षमता और रिकवरी दक्षता मापना है. पूर्व बल्लेबाज मनोज तिवारी का आरोप है कि यह टेस्ट रोहित शर्मा को टीम से बाहर करने की रणनीति है.
Bronco Test introduced to push Rohit Sharma out of the team: भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने एशिया कप से पहले अपने खिलाड़ियों के फिटनेस को मापने के लिए एक नए टेस्ट को लागू कर दिया. ब्रोंकोटेस्ट जो रग्बी खिलाड़ियों की फिटनेस को चेक करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है. ब्रोंकोटेस्ट में खिलाड़ियों को पाँच सेट में क्रमशः 20 मीटर, 40 मीटर और 60 मीटर की शटल रन करनी पड़ती है. इस तरह कुल दूरी 1200 मीटर हो जाती है. इस दौड़ को पूरा करने में लगा समय खिलाड़ी की एरोबिक क्षमता और रिकवरी की दक्षता को दर्शाता है. यह फिटनेस टेस्ट उस समय लाया गया जब कई खिलाड़ियों, खासकर तेज गेंदबाजों को भारत बनाम इंग्लैंड टेस्ट सीरीज के दौरान फिटनेस से जुड़ी समस्याएँ हुईं. इसका मकसद खिलाड़ियों में फिटनेस का उच्च स्तर बनाए रखना और उनकी एरोबिक क्षमता को बेहतर करना है. इसके अपने फायदे नुकसान हो सकते हैं, लेकिन पूर्व भारतीय बल्लेबाज मनोज तिवारी (Manoj Tiwary) का मानना है कि BCCI ने यह टेस्ट इसलिए लागू किया है ताकि रोहित शर्मा वर्ल्ड कप 2027 से पहले ही क्रिकेट से संन्यास ले लें.
2027 वनडे वर्ल्ड कप तक आते-आते, भारत के मौजूदा वनडे कप्तान रोहित शर्मा की उम्र 40 साल से ज्यादा हो चुकी होगी. खेल गलियारों में माना जाता है कि भारत के 50 ओवरों के कप्तान सबसे फिट खिलाड़ी नहीं हैं, लेकिन उनके प्रदर्शन इतने शानदार रहे हैं कि उन्हें बाहर बिठाना किसी के लिए आसान नहीं है. मनोज का मानना है कि इसी वजह से ब्रोंकोटेस्ट लाया गया है. उन्होंने क्रिकट्रैकर से बात करते हुए कहा, “मुझे लगता है कि विराट कोहली को 2027 वर्ल्ड कप की योजनाओं से बाहर रखना बहुत मुश्किल होगा. लेकिन मुझे शक है कि वे रोहित शर्मा को इस योजना में नहीं देख रहे. देखिए, मैं भारतीय क्रिकेट में चल रही चीजों को बहुत ध्यान से देखता हूँ और मुझे लगता है कि यह ब्रोंकोटेस्ट, जो कुछ दिन पहले लागू किया गया है, वह ऐसे खिलाड़ियों के लिए है जैसे रोहित शर्मा. मुझे लगता है कि वे नहीं चाहते कि रोहित भविष्य में टीम का हिस्सा बनें और यही वजह है कि यह टेस्ट लाया गया है.”
यह किसका आइडिया है?
बंगाल के इस बल्लेबाज ने सवाल उठाया कि यह फिटनेस टेस्ट अभी क्यों लाया गया. जब से गौतम गंभीर जुलाई में भारत के नए मुख्य कोच बने हैं, तो यह ब्रोंकोटेस्ट अब क्यों लागू हुआ? आसान जवाब यह है कि टीम इंडिया के नए स्ट्रेंथ और कंडीशनिंग कोच एड्रियन ले रॉक्स जून में जुड़े और उन्होंने ज्वॉइन करने के बाद इसे लागू किया. विराट कोहली की फिटनेस बेमिसाल है, इसलिए उन्हें कोई नहीं रोकेगा. लेकिन क्या रोहित ब्रोंको टेस्ट पास कर पाएंगे? मनोज ने कहा, “आपको पता होना चाहिए कि ब्रोंकोटेस्ट भारतीय क्रिकेट में लागू किए गए सबसे कठिन फिटनेस पैरामीटर्स में से एक होगा. लेकिन सवाल यह है कि अभी क्यों? जब आपके नए कोच को पहली सीरीज मिली थी तब क्यों नहीं? यह किसका आइडिया है? किसने इसे लागू किया? किसने कुछ दिन पहले यह ब्रोंको टेस्ट लागू करवाया? इसका जवाब मेरे पास नहीं है, लेकिन मेरा मानना है कि अगर रोहित ने अपनी फिटनेस पर कड़ी मेहनत नहीं की, तो उनके लिए यह टेस्ट पार करना मुश्किल होगा और मुझे लगता है कि उन्हें इसी ब्रोंकोटेस्ट पर रोका जाएगा.”
पहले भी सीनियर्स को बाहर करने के लिए आया था टेस्ट
मनोज तिवारी ने आगे कहा कि जैसे 2011 वनडे वर्ल्ड कप के बाद सीनियर खिलाड़ियों को फिटनेस मानकों के कारण टीम से बाहर किया गया था, कुछ वैसा ही अब हो सकता है. उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि इसे फिटनेस का स्तर सबसे ऊँचा रखने के लिए लागू किया गया है, लेकिन साथ ही, यह कुछ खिलाड़ियों को बाहर करने के लिए भी है. जैसे 2011 में जब भारत चैंपियन बना था, तब गौर कीजिए, गंभीर, सहवाग, युवराज जैसे खिलाड़ी अच्छा कर रहे थे, लेकिन तभी यो-यो टेस्ट सामने आया और कई खिलाड़ी फिटनेस की वजह से बाहर हो गए. तो इसके पीछे बहुत सी बातें होती हैं. यह मेरा अवलोकन है. आगे क्या होगा, भविष्य ही बताएगा.”
अश्विन ने भी उठाए थे सवाल
भारतीय टीम के पूर्व ऑफ अश्विन ने भी इस पर सवाल उठाए हैं. उनका मानना है कि अचानक फिटनेस टेस्टिंग में बदलाव खिलाड़ियों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. उन्होंने कहा कि ट्रेनर बदलने से टेस्टिंग और ट्रेनिंग पैटर्न बदल जाते हैं, जिससे खिलाड़ियों को परेशानी और चोट का खतरा बढ़ता है. अश्विन ने जोर दिया कि नए सिस्टम खिलाड़ियों की निरंतरता को प्रभावित नहीं करने चाहिए. अश्विन ने सुझाव दिया कि नए ट्रेनर को कम से कम 6-12 महीने पुराने ट्रेनर के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि बदलाव सहज हो.
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