विश्वकप 2011: भारत ने लिखा था क्रिकेट जगत का नया अध्याय जिसके नायक थे महेंद्र सिंह धौनी

उचित समय पर उचित निर्णय. मौका था विश्वकप 2011 का, जब कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने श्रीलंका के खिलाफ फाइनल मुकाबले में खुद को नंबर पांच पर प्रमोट किया और ऐसी यादगार पारी खेली, जिसे लोग कभी नहीं भूल सकते. धौनी ने उस महामुकाबले में 79 बॉल में 91 रन बनाये थे. धौनी की इस […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 15, 2014 2:12 PM

उचित समय पर उचित निर्णय. मौका था विश्वकप 2011 का, जब कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने श्रीलंका के खिलाफ फाइनल मुकाबले में खुद को नंबर पांच पर प्रमोट किया और ऐसी यादगार पारी खेली, जिसे लोग कभी नहीं भूल सकते. धौनी ने उस महामुकाबले में 79 बॉल में 91 रन बनाये थे.

धौनी की इस पारी ने 28 साल बाद भारत को एक बार फिर विश्वकप की जीत का स्वाद चखाया. विश्वकप 2011 का मुकाबला बहुत दिलचस्प था. दोनों टीमें अपना बेस्ट देने के लिए तैयार थीं. गेंदबाजी और बल्लेबाजी दोनों को पूरी तरह मुस्तैद कर दिया गया था. श्रीलंका की टीम पूरी तरह से तैयार तो थी लेकिन न्यूजीलैंड ने क्वार्टर फाइनल में उसे जिस तरह की टक्कर दी थी, उससे वह थोड़ी घबराई हुई थी थी.

भारत ने फाइनल तक पहुंचने के लिए क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को पांच विकेट से हराया था, वही सेमीफाइनल में उसकी भिड़ंत चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान से हुई थी. फाइनल मुकाबला मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में खेला गया था. जहां टॉस जीतकर श्रीलंका ने पहले बल्लेबाजी की और भारत को 275 रन का लक्ष्य दिया. महेला जयवर्द्धने ने उस मैच में सेंचुरी बनायी थी.

जब भारत खेलने के लिए उतरा तो मलिंगा ने सहवाग को शून्य पर आउट कर दिया. उसके बाद सचिन भी 18 रन बनाकर आउट हो गये. लेकिन धौनी जिनसे उस विश्वकप की सात इनिंग में सिर्फ 150 रन बनाया था, नया इतिहास रचने को तैयार थे. जब तिलकरत्ने दिलशान ने विराट कोहली का कैच 35 रन के व्यक्तिगत स्कोर पर लपक लिया तो भारत का स्कोर 114/3 था.

लोग नर्वस भे. उस वक्त कप्तान ने एक निर्णय लिया और युवराज सिंह को रोककर खुद पांचवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए उतरे. उस वक्त क्रीज पर दूसरे एंड में गौतम गंभीर खेल रहे थे. धौनी ने उन्हें बैटिंग का मौका दिया और खुद को सेट होने का समय दिया.

शुरुआत के दस ओवर में धौनी ने एक भी बाउंड्री नहीं लगायी. वे सिर्फ एक और दो रन लेकर स्कोर कार्ड को बढ़ा रहे थे. धौनी ने अब पारी की कमान संभाल ली थी. जब गंभीर 97 रन के स्कोर पर आउट हो गये और 24 बॉल में 27 रन बनाना शेष रह गया था, तब धौनी ने अपने बल्ले के दम पर टारगेट को पांच बॉल में 12 रन पर ला दिया. जब युवराज सिंह ने एक रन लेकर स्ट्राइक धौनी को दिया, तो पूरे देश की निगाहें और उम्मीदें धौनी पर टिक गयीं.

सभी 28 साल बाद विश्वकप की जीत का स्वाद चखने को आतुर थे. ऐसे वक्त में धौनी ने उन्हें जब जीत से रूबरू कराया, तो वह बिलकुल परियों की कहानी सा सुखद था. धौनी के बल्ले से जब छक्का निकला, तो उनकी निगाहें गेंद पर थी, लेकिन नॉन स्ट्राइक पर खड़े युवराज ने जश्न मनाना शुरू कर दिया था. धौनी ने अपनी पारी में आठ चौकों और दो छह छक्कों की मदद से 91 रन बनाये थे.

मैच में जीत के बाद धौनी ने कहा था कि युवराज को रोककर खुद मैदान पर आने का निर्णय मेरे लिए चुनौतीपूर्ण था, लेकिन मैंने सोचा खुद को साबित करना जरूरी है, सो मैंने अपना निर्णय लिया. लोगों की उम्मीदें मुझपर टिकी थी, सो मैं तनाव में था. 28 साल बाद विश्वकप की जीत का स्वाद चखने के बाद भारतवासी उत्साह में थे. रिटायरमेंट की ओर अग्रसर सचिन ने जीत का जश्न बखूबी मनाया. इस जीत टीम इंडिया ने उनके नाम किया था. दो अप्रैल 2011 को भारत के क्रिकेट इतिहास में एक नया अध्याय लिखा गया, जिसके नायक थे महेंद्र सिंह धौनी.

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