Shiva Mantra: नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है यह शिव मंत्र, जानें पूरा महत्व
Shiva Mantra: मंदिरों और घरों में जब भी पूजा-अर्चना होती है, तो आरती के बाद अक्सर कर्पूरगौरं करुणावतारं मंत्र जरूर पढ़ा जाता है. यह सिर्फ एक स्तुति नहीं, बल्कि भगवान शिव को हृदय में बसाने का आह्वान है. माना जाता है कि यह मंत्र भय, नकारात्मकता और मानसिक अशांति को दूर करता है.
Shiva Mantra: जब भी हम किसी देवता की आरती करते हैं, अंत में एक विशेष मंत्र बोला जाता है—“कर्पूरगौरं करुणावतारं…”, आपने देखा होगा कि चाहे मंदिर हो या घर, यह मंत्र लगभग हर पूजा के बाद सुनाई देता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर आरती के बाद सिर्फ यही मंत्र क्यों पढ़ा जाता है?
शिव–पार्वती विवाह से जुड़ा मंत्र
दरअसल, यह स्तुति भगवान शिव को समर्पित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मंत्र शिव–पार्वती विवाह के समय भगवान विष्णु द्वारा गाया गया था. इसलिए इसे अत्यंत शुभ और शक्तिशाली माना जाता है. यह मंत्र बताता है कि भगवान शिव का असली स्वरूप कैसा है—वे कर्पूर जैसे उज्ज्वल, करुणा से भरे और संपूर्ण सृष्टि के सार हैं. वे नागों को हार की तरह धारण करते हैं और पार्वती सहित हृदय में वास करते हैं.
शिव के दिव्य स्वरूप का वर्णन
लोगों में यह भी धारणा है कि शिवजी का रूप भयंकर, अघोरी और श्मशान से जुड़ा हुआ है. लेकिन यह मंत्र यह समझाता है कि शिव का असली स्वरूप बेहद दिव्य और सौम्य है. वे सृष्टि के अधिपति हैं, जिन्हें पशुपतिनाथ कहा जाता है—यानी सभी प्राणियों के स्वामी.
आरती के बाद इस मंत्र का महत्व
आरती के बाद इस मंत्र का जप इसलिए किया जाता है क्योंकि आरती ऊर्जा का चरम क्षण होता है. उस समय शिव का स्मरण करने से मन शांत होता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है. शिव को मृत्यु के भय को दूर करने वाला माना गया है, इसलिए यह मंत्र मानसिक डर, तनाव और नकारात्मकता को दूर करता है और साधक को आत्मविश्वास देता है.
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मंत्र का सार—शिव को हृदय में बसाने का आह्वान
सीधा-सा मतलब यह है कि जब हम किसी भी देवता की आरती पूरी करते हैं, तो अंत में इस मंत्र के जरिए हम भगवान शिव का आह्वान करते हैं कि— “हे शिव! आप और माता पार्वती हमारे हृदय में बसे रहें और हमें हर भय से मुक्त करें.”
