Parivartini Ekadashi 2025: परिवर्तिनी एकादशी कल, सिर्फ उपवास ही नहीं, एकादशी पर यह 5 काम करने से मिलता है अक्षय पुण्य

Parivartini Ekadashi 2025: परिवर्तिनी एकादशी व्रत 3 सितंबर, बुधवार को रखा जाएगा. शास्त्रों के अनुसार इस दिन उपवास रखने के साथ-साथ कुछ विशेष कार्य करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है. केवल व्रत ही नहीं, बल्कि पूजा, दान, दीपदान, सत्संग और सेवा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.

By Shaurya Punj | September 2, 2025 1:31 PM

Parivartini Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को सबसे पवित्र तिथियों में गिना गया है. शास्त्रों के अनुसार यह दिन भगवान विष्णु की उपासना का सर्वोत्तम समय माना जाता है. लोग आमतौर पर उपवास करके पुण्य अर्जित करते हैं, लेकिन केवल व्रत रखने से इसका संपूर्ण फल प्राप्त नहीं होता. इसकी तिथि की शुरुआत 3 सितंबर को प्रातः 3 बजकर 53 मिनट पर होगी और समापन 4 सितंबर 2025 को सुबह 4 बजकर 21 मिनट पर होगा. उदया तिथि को मान्यता देने के कारण इस वर्ष परिवर्तिनी एकादशी का पर्व 3 सितंबर को ही मनाया जाएगा. धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि इस दिन कुछ विशेष कार्य करने से अक्षय पुण्य और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है. आइए जानते हैं वे पांच शुभ कार्य जिन्हें एकादशी पर करना जरूरी माना गया है.

भगवान विष्णु की पूजा और मंत्रजप

एकादशी के दिन श्रीहरि विष्णु की विशेष पूजा करनी चाहिए. उन्हें तुलसी पत्र, पीले वस्त्र और पंचामृत से अर्पण करें. साथ ही ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या विष्णु सहस्रनाम का जप करें. इससे भगवान की कृपा सहज ही प्राप्त होती है.

Ekadashi Vrat In September 2025: सितंबर माह में मनाई जाएगी ये दो एकादशी, जानें महत्व

दान-पुण्य का महत्व

इस तिथि पर दान का विशेष महत्व बताया गया है. जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, जल या अनाज का दान करना न केवल पुण्यदायी होता है बल्कि पितरों को भी तृप्त करता है. मान्यता है कि इससे घर-परिवार में दरिद्रता दूर होती है.

दीपदान और तुलसी पूजन

एकादशी पर तुलसी जी की पूजा करना अत्यंत मंगलकारी माना गया है. तुलसी पत्र अर्पित करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. संध्या समय दीपदान करने से घर में सुख-शांति आती है और जीवन से नकारात्मकता दूर होती है.

सत्संग और धर्मग्रंथों का पाठ

इस दिन गीता, भागवत या विष्णु पुराण का पाठ करने का विशेष महत्व है. धार्मिक प्रवचन सुनना या सत्संग में शामिल होना आत्मिक शांति देता है और मन की पवित्रता बनाए रखता है.

संयम और सेवा

एकादशी व्रत का मूल भाव केवल उपवास नहीं बल्कि संयम और सेवा भी है. इस दिन दूसरों की निंदा, अपशब्द और क्रोध से बचें. गौ-सेवा, वृक्षारोपण या जरूरतमंद की सहायता करना अत्यंत पुण्यकारी कार्य माना गया है.