Krishna Janmashtami 2025: भगवान कृष्ण के जन्म से कैसे जुड़ा है खीरे का संबंध

Krishna Janmashtami 2025: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के उत्सव में फूल, माखन, मिश्री, तुलसी के साथ एक विशेष भोग—खीरा—का महत्व बेहद खास है. धार्मिक मान्यता है कि खीरे का संबंध सीधे भगवान कृष्ण के जन्म प्रसंग से जुड़ा है. जानें इसकी पौराणिक कथा, प्रतीकात्मक महत्व और पूजा में इसकी अनिवार्यता.

By Shaurya Punj | August 13, 2025 8:03 AM

Krishna Janmashtami 2025: भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव जन्माष्टमी को पूरे देश में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन आधी रात को कान्हा जी का जन्मोत्सव संपन्न होता है और मंदिरों व घरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है. पूजा में फूल, माखन, मिश्री, पान, तुलसी के साथ एक विशेष भोग सामग्री का प्रयोग अनिवार्य माना जाता है—खीरा.

खीरे का पौराणिक संबंध

मान्यता है कि खीरे का संबंध श्रीकृष्ण के जन्म प्रसंग से जुड़ा है. भाद्रपद मास का यह मौसमी फल शीतलता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब वासुदेव जी कारागार से बालकृष्ण को यशोदा मैया के घर लेकर पहुंचे, तो उस समय खीरे का भोग अर्पित किया गया था. तभी से जन्माष्टमी के पूजन में खीरा एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गया.

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खीरे का प्रतीकात्मक महत्व

खीरे का आकार गर्भ का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि इसके बीज संतान वृद्धि और समृद्धि का संकेत देते हैं. जन्माष्टमी की रात खीरे में छोटा सा छेद कर भगवान के जन्म का प्रतीकात्मक प्रदर्शन किया जाता है. माना जाता है कि ऐसा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है.

जीवन और शुभता का प्रतीक

इस प्रकार, खीरा केवल भोग की वस्तु नहीं, बल्कि जीवन, नवजीवन और शुभता का प्रतीक है. यही कारण है कि जन्माष्टमी की पूजा खीरे के बिना अधूरी मानी जाती है.