Jitiya Vrat 2025: जितिया व्रत के दौरान माताएं क्यों करती हैं मडुआ का सेवन, जानिए इसका धार्मिक महत्व

Jitiya Vrat 2025: जितिया व्रत के दौरान मडुआ ग्रहण करने का विशेष महत्व है. माताएं व्रत के पहले दिन यानी नहाय-खाय और अंतिम दिन मडुआ का सेवन करती हैं. यह शरीर को ऊर्जा देता है. कहा जाता है कि जिस प्रकार मडुआ शरीर को पोषण और शक्ति प्रदान करता है, उसी प्रकार यह व्रत और उसमें किया गया भोजन संतान को भी स्वस्थ और दीर्घायु बनाता है.

By Neha Kumari | September 10, 2025 5:36 PM

Jitiya Vrat 2025: जितिया पर्व, जिसे देश के कई हिस्सों में जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से जाना जाता है, मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्रों में महिलाएं करती हैं. इस व्रत को माताएं अपने बच्चों की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और कल्याण के लिए करती हैं. यह व्रत तीन दिनों तक चलता है. व्रत के दौरान मडुआ (रागी या फिंगर बाजरा) को भोजन में शामिल करने का विशेष धार्मिक महत्व है.

पौराणिक कथाओं और लोक परंपराओं के अनुसार, जितिया व्रत के पहले दिन यानी “नहाय-खाय” के दिन माताएं स्नान करने के बाद पारंपरिक भोजन ग्रहण करती हैं. भोजन में मडुआ की रोटी और अन्य पौष्टिक व्यंजन शामिल होते हैं. मडुआ का उपयोग सिर्फ एक अनाज के रूप में ही नहीं, बल्कि एक धार्मिक प्रतीक के रूप में भी किया जाता है.

बच्चों की लंबी उम्र और सेहत की कामना

जितिया व्रत का मुख्य उद्देश्य संतान के स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना है. मडुआ की पौष्टिकता को इसी कामना से जोड़ा जाता है. ऐसा माना जाता है कि जिस प्रकार मडुआ शरीर को पोषण और शक्ति प्रदान करता है, उसी प्रकार यह व्रत और उसमें किया गया भोजन संतान को भी स्वस्थ और दीर्घायु बनाता है.

ताकत और ऊर्जा का स्रोत

मडुआ एक अत्यधिक पौष्टिक अनाज है. इसमें आयरन, कैल्शियम और अन्य खनिज भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. जितिया व्रत के दौरान महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, जो शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण होता है. इस कठिन व्रत को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए शरीर को ऊर्जा और शक्ति की जरूरत होती है. मडुआ की रोटी व्रत से पहले और बाद में खाई जाती है, ताकि शरीर में ऊर्जा बनी रहे और व्रती को शक्ति मिले.

सादगी और प्रकृति के करीब

मडुआ एक साधारण और प्राकृतिक अनाज है. जितिया व्रत में सादगी और प्रकृति के करीब रहने पर जोर दिया जाता है. व्रत के नियमों के अनुसार तामसिक भोजन से बचना होता है और मडुआ को सात्विक अनाज माना जाता है. यह व्रत प्रकृति और उसके वरदानों के प्रति आभार जताने का तरीका भी है.

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