कजरी तीज : सुखी दांपत्य के लिए नीमड़ी मां की पूजा

भादो मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज मनायी जाती है, जिसे कजली तीज भी कहते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि इस बार 18 अगस्त को है. कजरी तीज मुख्यत: उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार समेत हिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रमुखता से मनायी जाती है. हरियाली तीज, हरतालिका […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 17, 2019 6:15 AM
भादो मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज मनायी जाती है, जिसे कजली तीज भी कहते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि इस बार 18 अगस्त को है. कजरी तीज मुख्यत: उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार समेत हिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रमुखता से मनायी जाती है. हरियाली तीज, हरतालिका तीज की तरह कजरी तीज भी सुहागन महिलाओं के लिए अहम पर्व है. वैवाहिक जीवन की सुख और समृद्धि के लिए यह व्रत किया जाता है.
इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएं योग्य वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं. जौ, गेहूं, चने और चावल के सत्तू में घी और मेवा मिलाकर तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं.
चंद्रोदय के बाद भोजन करके व्रत तोड़ते हैं. इस दिन आटे की सात लोइयां बनाकर उन पर घी, गुड़ रखकर गाय को खिलाने के बाद भोजन किया जाता है. घर में झूले डाले जाते हैं और महिलाएं एकत्रित होकर नाचती-गाती हैं. इस अवसर पर नीमड़ी माता की पूजा करने का विधान है.
पूजन से पहले मिट्टी व गोबर से दीवार के सहारे एक तालाब जैसी आकृति बनायी जाती है (घी और गुड़ से पाल बांधकर) और उसके पास नीम की टहनी को रोप देते हैं. तालाब में कच्चा दूध और जल डालते हैं और किनारे पर एक दीया जलाकर रखते हैं. थाली में नीबू, ककड़ी, केला, सेब, सत्तू, रोली, मौली, अक्षत आदि रखे जाते हैं. फिर विधि-विधान से माता की पूजा की जाती है.
चंद्रमा को अर्घ देने की विधि : कजरी तीज पर संध्या के समय नीमड़ी माता की पूजा के बाद चांद को अर्घ देने की परंपरा है. इसके लिए चंद्रमा को जल के छींटे देकर रोली, मोली, अक्षत चढ़ाएं और फिर भोग अर्पित करें.
चांदी की अंगूठी और आखे (गेहूं के दाने) हाथ में लेकर जल से अर्घ दें और एक ही जगह खड़े होकर चार बार घूमें.वैसे तो यह व्रत सामान्यत: निर्जला रहकर किया जाता है, मगर गर्भवती स्त्री फलाहार कर सकती हैं. यदि चांद उदय होते नहीं दिख पाये, तो रात्रि में लगभग 11:30 बजे आसमान की ओर अर्घ देकर व्रत खोला जा सकता है. उद्यापन के बाद संपूर्ण उपवास संभव नहीं हो, तो फलाहार किया जा सकता है.

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