सौर तूफानों से प्रभावित होती विमान सेवा

Solar storms : अपग्रेडेशन दरअसल ए-320 विमान के संस्करणों पर निर्भर करता है. यानी अगर विमान पुराना है, तो उसके एलाक को बदलना होगा. अधिकांश विमानों के सॉफ्टवेयर

By पंकज चतुर्वेदी | December 3, 2025 8:02 AM

Solar storms : अभी इथियोपिया से उठे ज्वालामुखी के गुबार से हवाई जहाजों के संचालन में आ रहे व्यवधान का संकट चल ही रहा था कि सूर्य किरणों से उत्पन्न विकिरण से दुनियाभर में लोकप्रिय कोई साढ़े छह हजार एयर बस ए-320 के सॉफ्टवेयर गड़बड़ा गये और इनकी उड़ानें रोकनी पड़ीं. विगत 30 अक्तूबर को न्‍यूयॉर्क के लिए उड़ान भर रही जेटब्‍लू एयरलाइंस के जहाज को सूर्य विकिरण की मार पड़ी. इसके चलते जहाज में झटके लगे, वह ऊंचाई से काफी तेजी से नीचे गिरने लगा और 15 यात्री घायल हुए. इसके बाद पूरी दुनिया में कोहराम मचा और लोगों का ध्यान इस समस्या की ओर गया. फिर पता चला कि यह समस्या वस्तुत: एलिवेटर एंड एइलरॉन कंप्यूटर (एलाक) से जुड़ी है, जो विमान की पिच और रोल को नियंत्रित करता है.


एलाक सिस्टम फ्लाइट को कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह फ्लाइट के नोज एंगल को भी कंट्रोल करता है. जब विमान उड़ान भरता है, तब उसकी नोज ऊपर की ओर होनी चाहिए. जबकि लैंडिंग के दौरान नोज नीचे की तरफ होनी चाहिए. लेकिन एयरबस वाले मामले में उड़ान के दौरान विमान की नोज अचानक नीचे की तरफ आ गयी थी. एयरबस के मौजूदा समय में लगभग 11,300 ए-320 विमान संचालित हो रहे हैं. यानी विमानों के बेड़े की करीब आधी संख्या है, जिसके चलते लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. सूर्य विकिरण और विशेष रूप से सौर तूफानों के कारण एयरबस जैसे आधुनिक विमानों के संचालन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने वाली यह घटना चौंकाने वाली जरूर है, पर ऐसा पहली बार नहीं हुआ है.

वर्ष 1994 में एक तीव्र सौर तूफान ने कनाडा के एनीक-इ2 संचार उपग्रह को निष्क्रिय कर दिया था, और उसी दौरान कुछ विमानों में नेविगेशन और संचार संबंधी दिक्कतों का पता चला था. उसके बाद 2008 में क्वांटस एयरलाइंस के एयरबस ए-330 विमान में सोलर रेडिएशन के कारण एयर डाटा इनर्शियल रेफरेंस यूनिट में संभावित गड़बड़ी हुई थी, जिससे विमान अचानक नीचे झुक गया था. उस समय भी दुनियाभर की हवाई कंपनियों को बड़े पैमाने पर सॉफ्टवेयर अपग्रेड और परिचालन समायोजन करने पड़े थे. जाहिर है, यह बेहद जटिल मुद्दा है, जो अंतरिक्ष मौसम, विमानन इलेक्ट्रॉनिक्स और उड़ान सुरक्षा से जुड़ा हुआ है. सॉफ्टवेयर अपग्रेड की प्रक्रिया भी सहज और एक जैसी नहीं है.

अपग्रेडेशन दरअसल ए-320 विमान के संस्करणों पर निर्भर करता है. यानी अगर विमान पुराना है, तो उसके एलाक को बदलना होगा. अधिकांश विमानों के सॉफ्टवेयर बदलने में भले ही कुछ घंटे लगे हों, लेकिन लगभग 1,000 विमानों को सुधारने में कई सप्ताह लगेंगे. दरअसल सूर्य विकिरण का सीधा संबंध सूर्य से उत्सर्जित होने वाले उच्च ऊर्जा वाले कणों और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों से होता है. जब सूर्य पर कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमइ) या सौर ज्वाला जैसी घटनाएं होती हैं, तो इससे सौर ऊर्जावान कण (सोलर एनर्जेटिक पार्टिकल यानी एसइपी) और गैलेक्टिक कॉस्मिक किरणें (जीसीआर) उत्पन्न होती हैं. तथ्य यह है कि पृथ्वी का वायुमंडल और चुंबकीय क्षेत्र हमें इनमें से अधिकांश से बचाता है, लेकिन 28,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर उड़ने वाले वाणिज्यिक विमान इनके प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं.

इसके चलते विमानन इलेक्ट्रॉनिक्स या एवियोनिक्स सिस्टम में डाटा करप्शन हो जाता है. सिंगल इवेंट अपसेट (एसइयू) बहुत उच्च ऊर्जा वाले कण होते हैं, जो विमान के माइक्रोप्रोसेसरों और मेमोरी चिप्स से टकराते ही कुछ गड़बड़ियां पैदा कर सकते हैं. हाल की घटनाओं (जैसे एक जेटब्लू ए-320 की घटना) के विश्लेषण में यह पाया गया है कि तीव्र सोलर रेडिएशन एयरबस ए-320 परिवार के विमानों में एलाक जैसे महत्वपूर्ण फ्लाइट कंट्रोल कंप्यूटर के डाटा को दूषित कर सकता है. डाटा दूषित होने से विमान अनजाने में ही पिच डाउन (नीचे झुकने) जैसी अनियंत्रित हरकतें कर सकता है, जो उड़ान सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है. वैसे समझना होगा कि ये पृथ्वी के वातावरण के बाहर की घटनाएं हैं और इनका संबंध सूर्य के 11 वर्षीय गतिविधि चक्र से है.


सौर तूफान के कारण जीपीएस/जीएनएसएस की सटीकता में कमी आ जाती है. इनके कारण आयन मंडल में गड़बड़ी पैदा होती है और नेविगेशन के लिए अनिवार्य जीपीएस और अन्य ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम सिग्नल इसके असर से कमजोर हो जाते हैं. यहां तक कि इससे रेडियो संचार ब्लैकआउट की स्थिति बन जाती है. सौर ज्वालाओं से उत्सर्जित एक्स-रे पृथ्वी के दिन के हिस्से में हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो संचार को पूरी तरह बाधित कर देते हैं. इसके चलते लंबी दूरी की (विशेषकर ध्रुवीय और महासागरीय) उड़ानों को आसमान की ऊंचाई में राह नहीं दिखती. तीव्र सौर तूफानों के दौरान बहुत ऊंचाई पर चालक दल और यात्रियों के स्वास्थ्य के लिए विकिरण की अधिक मात्रा खतरनाक है. हालांकि यह आमतौर पर सीमित होता है और एयरलाइंस कभी-कभी सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों से बचने के लिए उड़ानों को पुनर्निर्देशित करती हैं.


भारत में हालांकि सौर विकिरण का विमानन सेवाओं पर अभी कोई सीधा असर नहीं दिखाई पड़ा है, लेकिन डीजीसीए ने भारतीय वायुयान संचालकों को तत्काल प्रभाव से आवश्यक सॉफ्टवेयर अपग्रेड करने का अनिवार्य निर्देश जारी किया है. इतना ही नहीं, इस घटना ने देश में विमानन नियामक निकायों और एयरलाइनों के बीच अंतरिक्ष मौसम के खतरों और उनके एवियोनिक्स पर संभावित असर के बारे में जागरूकता भी बढ़ायी है, जिससे भविष्य के लिए रेडिएशन प्रतिरोधी प्रणालियों के महत्व पर जोर दिया जा रहा है. यह जान लेना आवश्यक है कि सूर्य वर्तमान में अपने सौर चक्र 25 के अधिकतम चरण की ओर बढ़ रहा है, जिसके आने वाले महीनों में चरम पर पहुंचने की आशंका है. इस चरण में, सौर तूफानों और विकिरण की घटनाएं न केवल अधिक बार होने की, बल्कि तीव्र होने की आशंका है, जिससे एवियोनिक्स पर दबाव बढ़ेगा. साथ ही, हाल के दशकों में मानव जनित ग्रीनहाउस गैसों का वार्मिंग प्रभाव सूर्य की गतिविधि में मामूली बदलावों से कहीं अधिक शक्तिशाली रहा है. धरती पर बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड आयन मंडल के तापमान और संरचना को भी बदल रही है. आयन मंडल में होने वाले ये बदलाव वस्तुत: रेडियो तरंगों के संचरण को भी प्रभावित कर सकते हैं, जिससे शॉर्टवेव रेडियो संचार में बाधा आ सकती है. यह हवाई यातायात और समुद्री संचार के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है. आने वाले दिन वैश्विक विमानन उद्योग के लिए चुनौतीपूर्ण और सतर्क रहने के हैं. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)