रक्षा में आत्मनिर्भरता

भारतीय सशस्त्र सेनाओं में खरीद के साथ कई देशों को हो रहे निर्यात से यह भी इंगित होता है कि इन उत्पादों की गुणवत्ता स्तरीय है.

By संपादकीय | February 17, 2023 8:02 AM

देश के सैनिक साजो-सामान की खरीद के बजट का 75 फीसदी हिस्सा घरेलू उद्योगों के उत्पादों के लिए चिन्हित किया जायेगा. अगले महीने समाप्त हो रहे वर्तमान वित्त वर्ष 2022-23 में यह आंकड़ा 68 प्रतिशत तय किया गया था. इससे स्पष्ट होता है कि देश में रक्षा उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हो रही है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उचित ही कहा है कि इससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को बेहतर करने तथा अर्थव्यवस्था में तेजी लाने में मदद मिलेगी.

इस निर्णय का अर्थ यह है कि 2023-24 में लगभग एक लाख करोड़ रुपये के सैन्य साजो-सामान घरेलू बाजार से खरीदे जायेंगे. एक फरवरी को प्रस्तावित बजट में रक्षा आवंटन में बीते साल की तुलना में 12.95 फीसदी की बढ़ोतरी की गयी है. यह आवंटन अब 5.93 लाख करोड़ हो गया है. नये उपकरण और गोला-बारूद की खरीद के मद में बढ़ोतरी 6.57 फीसदी हुई है, जो अब 1.62 लाख करोड़ रुपये हो गया है. बीते साल यह आवंटन 1.52 लाख करोड़ रुपये था.

सरकार ने एक लंबी सूची बनायी है, जिसमें उल्लिखित चीजों को केवल देश में ही खरीदा जा सकता है. कुछ वर्षों से अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों की तरह रक्षा में आत्मनिर्भरता बढ़ाना प्रमुख प्राथमिकताओं में शामिल है. संबंधित उत्पादन में तेजी लाने के लिए सरकार ने नीतिगत सुधार करते हुए विदेशी निवेश को भी प्रोत्साहित किया है. इससे आयात पर हमारी आत्मनिर्भरता में कमी तो आ ही रही है, साथ ही रक्षा निर्यात भी बढ़ रहा है. वर्ष 2017 में भारत का कुल रक्षा निर्यात 1,520 करोड़ रुपये था, जो 2021-22 में 14 हजार करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया.

बीते दिनों एयरो इंडिया प्रदर्शनी के उद्घाटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्माण और उत्पादन की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए निवेशकों को आने का आह्वान किया है. इस प्रदर्शनी में 80 हजार करोड़ रुपये के निवेश समझौते हुए भी हैं. घरेलू बाजार में जो उत्पादन हो रहा है, उसमें सामान्य कल-पूर्जों से लेकर हेलीकॉप्टर, पनडुब्बी, युद्धपोत, टैंक, टोप, राइफल, छोटे हथियार सब शामिल हैं. भारतीय सशस्त्र सेनाओं में खरीद के साथ कई देशों को हो रहे निर्यात से यह भी इंगित होता है कि इन उत्पादों की गुणवत्ता स्तरीय है.

यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब हमारी तीनों सेनाओं के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया चल रही है. भारत की नीति अब यह है कि बहुत आवश्यक होने पर ही कोई वस्तु बाहर से खरीदी जायेगी, अन्यथा उसे देश में ही बनाने का प्रयास किया जायेगा. विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी से तकनीकों के आदान-प्रदान में भी वृद्धि हो रही है. साथ ही, कई स्टार्ट-अप भी आ रहे हैं.

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