मतदाता सूचियों का शुद्धिकरण सभी की जिम्मेदारी
voter lists : विपक्ष की आशंका एसआइआर पर तो है ही, वह अगले वर्ष ही चुनाव वाले असम में एसआइआर की घोषणा न करने पर भी आयोग से प्रश्न पूछ रहा है. प्रश्न केरल को लेकर भी है, क्योंकि पहले कहा गया था कि जहां स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं, वहां एसआइआर नहीं कराया जायेगा.
Voter-Lists : मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) की प्रक्रिया पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के बीच ही बिहार में चुनाव भी हो रहे हैं और चुनाव आयोग ने नौ राज्यों एवं तीन केंद्रशासित क्षेत्र में इसके दूसरे चरण की शुरुआत भी कर दी है. देश में एसआइआर कोई पहली बार नहीं हो रहा. वर्ष 1951 से 2004 तक आठ बार यह कवायद हो चुकी है, लेकिन याद नहीं पड़ता कि इस जरूरी प्रक्रिया पर कभी इतना राजनीतिक विवाद हुआ हो. विपक्ष एसआइआर को सत्तारूढ़ भाजपा के हित में मतदाताओं के नाम काटने की साजिश बता रहा है. बिहार में जिस तरह 65 लाख मतदाताओं के नाम कटे, वह मामला तो सर्वोच्च न्यायालय तक गया. जिस तरह जीवित लोगों के नाम मृत बता कर काटे गये या फिर नाम काटने का कारण बताने और काटे गये नामों का विवरण देने की बाध्यता से चुनाव आयोग ने इनकार करना चाहा, उससे भी संदेह और सवाल गहराये.
बाद में शीर्ष अदालत के निर्देश पर चुनाव आयोग ने मतदाताओं की पहचान के लिए मान्य दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड को शामिल किया और नाम काटे गये मतदाताओं का विवरण भी सार्वजनिक किया. पर तब तक उसके और विपक्षी दलों के बीच अविश्वास की खाई चौड़ी हो गयी. इस अविश्वास का भी परिणाम है कि एसआइआर के दूसरे चरण की घोषणा के साथ ही विपक्ष चुनाव आयोग और केंद्र सरकार पर हमलावर है. बिहार में एसआइआर के विरोध में विपक्ष का सबसे बड़ा तर्क था कि चुनाव से चंद महीने पहले क्यों? अब दूसरे चरण में जिन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में एसआइआर की प्रक्रिया शुरू हुई है, उनमें से पांच में अगले साल चुनाव हैं.
विपक्ष की आशंका एसआइआर पर तो है ही, वह अगले वर्ष ही चुनाव वाले असम में एसआइआर की घोषणा न करने पर भी आयोग से प्रश्न पूछ रहा है. प्रश्न केरल को लेकर भी है, क्योंकि पहले कहा गया था कि जहां स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं, वहां एसआइआर नहीं कराया जायेगा. दोनों प्रश्नों के उत्तर मुख्य चुनाव आयुक्त ने दिये हैं. उन्होंने कहा है कि असम में एसआइआर के लिए अलग से स्पेशल ऑर्डर जारी किया जायेगा, जबकि केरल में स्थानीय निकाय चुनाव की अधिसूचना अभी तक जारी नहीं की गयी है. इसके बावजूद विपक्ष का संदेह बरकरार है, तो विवाद के मूल में अविश्वास और दलगत राजनीति ही है.
मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन होने के मद्देनजर बिहार में एसआइआर प्रक्रिया पर उठे संदेह और सवालों का जवाब तो चुनाव आयोग को देना है, पर पूरे प्रकरण में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स सरीखे संगठनों की सक्रियता क्या विपक्ष को भी कठघरे में खड़ा नहीं करती?
चुनाव आयोग सार्वजनिक रूप से स्वीकार न भी करे, पर एसआइआर के दूसरे चरण की घोषणा और प्रक्रिया साफ संकेत है कि उसने बिहार के अनुभव से सबक सीखे हैं. बिहार से संदेश गया कि पात्र मतदाताओं को मताधिकार सुनिश्चित करने का अपना दायित्व चुनाव आयोग ने पूरी तरह मतदाताओं पर ही डाल दिया. विभिन्न कारणों से नाम काटने से पहले मतदाताओं को नोटिस देने की प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया गया. शीर्ष अदालत में दिये गये तर्कों से संदेश गया कि संवैधानिक संस्था के नाते चुनाव आयोग स्वयं को किसी के भी प्रति जवाबदेह नहीं मानता. एसआइआर के दूसरे चरण के लिए घोषित प्रक्रिया से अलग ही संकेत मिलता है. ज्ञानेश कुमार ने बार-बार कहा कि करीब 51 करोड़ मतदाताओं वाले दूसरे चरण में एसआइआर की कवायद का एक ही उद्देश्य है कि कोई भी योग्य मतदाता छूटे नहीं और कोई अयोग्य मतदाता सूची में रह न जाये.
इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए 5.33 लाख बीएलओ, राजनीतिक दलों के सात लाख 64 हजार बीएलए, 10,448 इआरओ/एइआरओ और 321 जिला निर्वाचन अधिकारी जिम्मेदार होंगे. बीएलओ न सिर्फ घर-घर गणना फॉर्म उपलब्ध करायेंगे, बल्कि 2002-04 की एसआइआर सूची से घरवालों का नाम भी मैच करेंगे. पुराने एसआइआर का देशभर का डाटा चुनाव आयोग की वेबसाइट पर देखा जा सकेगा. गणना फॉर्म सभी मतदाताओं को भरना होगा, पर उसके साथ दस्तावेज नहीं लगाने होंगे. पुराने एसआइआर से मैच न करनेवाले मतदाताओं को नोटिस जारी किये जायेंगे, जबकि ड्राफ्ट सूची में नाम शामिल न होने पर मतदाताओं को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए निर्धारित 12 दस्तावेजों से एक देना होगा.
अनुपस्थित, मृत या डुप्लीकेट मतदाताओं के नाम आयोग की वेबवसाइट पर प्रकाशित किये जायेंगे, ताकि गलती की स्थिति में लोग आपत्तियां दर्ज कराते हुए अपील कर सकें. जिन मतदाताओं या जिनके माता-पिता का नाम 2002-04 की सूची में है, उन्हें दस्तावेज देने की जरूरत नहीं. नये मतदाता के लिए भरा जानेवाला फॉर्म-6 बीएलओ घर जा कर लेंगे. ऑनलाइन आवेदन करनेवाले मतदाताओं का सत्यापन भी बीएलओ घर जा कर करेंगे. एसआइआर की प्रक्रिया सघन है और आम मतदाताओं को जटिल भी लग सकती है. ऐसे में आयोग के बीएलओ के साथ ही राजनीतिक दलों के बीएलए की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. इससे मतदाताओं का काम आसान होने के साथ ही मतदाता सूचियों का शुद्धिकरण भी दलगत राजनीति का शिकार होने से बच जायेगा. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)
