एसआइआर पर विपक्ष के आरोप गलत
SIR : पूर्व मतदाता सूची से 65 लाख लोगों का नाम हट जाना पहली दृष्टि में सामान्य बात नहीं. किंतु नहीं भूलिए कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में है. न्यायालय ने अभियान पर रोक नहीं लगायी और स्पष्ट किया कि निर्वाचन आयोग का यह विशेषाधिकार है कि वह मतदाता सूचियों का विशेष पुनरीक्षण कैसे और कब करे.
SIR : बिहार में चुनाव आयोग द्वारा किये जा रहे विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण अभियान (एसआइआर) का सभी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन किया जाना चाहिए था. पर स्थिति इसके विपरीत है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की इस अभियान के विरुद्ध वोट अधिकार यात्रा चल रही है, जिसमें गठबंधन के घटक शामिल हैं. सबसे डरावना आरोप यह है कि चुनाव आयोग जानबूझकर भाजपा का मत बढ़ाने और विपक्ष के मतों में कटौती करने के कुछ उद्देश्यों के कारण ऐसा कर रहा है.
पूर्व मतदाता सूची से 65 लाख लोगों का नाम हट जाना पहली दृष्टि में सामान्य बात नहीं. किंतु नहीं भूलिए कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में है. न्यायालय ने अभियान पर रोक नहीं लगायी और स्पष्ट किया कि निर्वाचन आयोग का यह विशेषाधिकार है कि वह मतदाता सूचियों का विशेष पुनरीक्षण कैसे और कब करे. वास्तव में अभी तक न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं की राहत के लिए केवल हटाये गये 65 लाख लोगों के नाम सार्वजनिक करने का आदेश दिया और चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट पर उसे डाल दिया.
हटाये गये 65 लाख नामों में लगभग 22 लाख मृत, 36 लाख स्थायी रूप से स्थान बदलने वाले और सात लाख नाम फर्जी बताये गये हैं. पहले प्रचार था कि मुस्लिम प्रभाव वाले सीमांचल के जिलों में सबसे ज्यादा नाम काटे जायेंगे. आश्चर्यजनक रूप से राजधानी पटना से सबसे अधिक 3.95 लाख नाम हटे हैं. एक अगस्त को जारी ड्राफ्ट सूची में से गायब मतदाताओं को अपनी आपत्ति दर्ज करने का समय दिया गया. शीर्ष अदालत के आदेश के बाद प्रदेश मतदान अधिकारी ने आधार कार्ड तथा बताये गये 11 दस्तावेजों में से कोई एक लेकर संबंधित केंद्र पर आने की सूचना जारी की है. तो देखना होगा कि अंतिम सूची में कितने मतदाताओं के नाम जुड़ते और हटते हैं.
एसआइआर का विरोध करने के बावजूद कोई राजनीतिक दल अभी तक एकमुश्त बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को सामने नहीं ला पाया, जिनके नाम जानबूझकर काट दिये गये हों. वोट अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी से मुलाकात करने वाली रोहतास के नौहट्टा ब्लॉक के चकला गांव की रंजू देवी नामक महिला ने कहा था कि उनके परिवार के सभी छह लोगों के नाम मतदाता सूची से हटा दिये गये हैं. पता चला कि सभी के नाम सूची में हैं. उन्होंने बाद में कहा कि उन्हें गलत जानकारी दी गयी. समाचारपत्रों में रंजू कह रही है कि उन्हें उनका वार्ड सचिव यात्रा में लेकर गया था. उन्हें राहुल गांधी से मिलवाया तथा कहा कि उनके परिवार के सदस्यों के नाम सूची से हटा दिये गये. उसके बाद जिला प्रशासन के अधिकारी आये और उन्होंने ग्राफ वोटर लिस्ट में सभी के नाम दिखाये. यह एक उदाहरण अपने आप बहुत कुछ कह देता है.
वास्तव में सर्वोच्च न्यायालय में अभी तक सभी जाने- माने अधिवक्ताओं ने चुनाव आयोग के एसआइआर पर रोक लगाने के हरसंभव तर्क दिये. वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रस्ताव दिया कि 2003 की सूची को, जिसमें पिछले आम चुनाव से प्राप्त अतिरिक्त जानकारी शामिल हो, आगामी बिहार चुनाव के लिए मतदाता सूची के रूप में इस्तेमाल किया जाये और दिसंबर, 2025 में एक वर्ष की अवधि में एक नयी एसआइआर आयोजित की जाये. पीठ ने इससे असहमति जताते हुए स्पष्ट किया कि मतदाता सूचियां स्थिर नहीं रह सकतीं. सटीकता बनाये रखने के लिए समय-समय पर उनमें संशोधन किया जाना चाहिए. वरिष्ठ अधिवक्ता शंकरनारायणन और वरिष्ठ अधिवक्ता कल्याण बनर्जी के जरिये पश्चिम बंगाल ने भी कहा कि बिना परामर्श के एसआइआर शुरू किया जाना चिंताजनक है. न्यायालय ने यह कहा कि पश्चिम बंगाल की चुनौती बिहार मामले के नतीजे का इंतजार कर सकती है.
न्यायालय की पूरी बहस और टिप्पणियों को देखने के बाद एसआइआर के बारे में हम-आप आसानी से निष्कर्ष निकाल सकते हैं. अगर अलग-अलग राज्यों की मतदाता सूचियों में गड़बड़ियों का मामला उठाया जा रहा है, तो उसमें सुधार का रास्ता क्या हो सकता है? चुनाव आयोग ने तय किया कि पूरे देश में मतदाता पुनरीक्षण अभियान चलाना है. आयोग द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार इसके लिए 2,800 से ज्यादा बैठकें हुईं, जिनमें अलग-अलग राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल हुए. बीएलओ यानी मतदान स्तरीय अधिकारी के साथ राजनीतिक दलों के बीएलए या बूथ लेवल एजेंटों की नियुक्तियां हुईं. उनके थोड़े-बहुत प्रशिक्षण के भी कार्यक्रम हुए. कोई भी पात्र मतदाता मतदाता सूची में स्थान पाने से वंचित न रहे, यह जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है.
यह राजनीतिक दलों और जागरूक नागरिकों का भी दायित्व है कि सतर्कतापूर्वक सहयोग कर ऐसे लोगों का नाम सूची में डलवायें. अगर उसमें गड़बड़ियां हैं, तो सुधार की कोशिश होनी चाहिए. किंतु चुनाव आयोग को ही किसी पार्टी के लिए काम करने वाला एजेंट घोषित करना अनुचित है. एक संवैधानिक संस्था के सम्मान और गरिमा की रक्षा हम सब का दायित्व है. बिहार में सभी राजनीतिक दलों ने अपने बीएलए नियुक्त किये. जमीन पर वे सक्रिय हैं, तो उनके पास पूरी सूचना होनी चाहिए. मतदाता सूची में अपवादस्वरूप कुछ त्रुटियां हो सकती हैं. अभी तक किसी विधानसभा क्षेत्र से कोई बीएलए या बीएलए का समूह ऐसी सूची लेकर सामने नहीं आया, जिनसे माना जा सके कि चुनाव आयोग जानबूझकर लोगों का नाम काटने के लिए मतदाता पुनरीक्षण अभियान चला रहा है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)
