आइटी क्षेत्र में छंटनी का मौजूदा दौर लंबा नहीं होगा

Layoffs in IT Sector : एलटीआइ माइंडट्री जैसी कई मध्यमवर्गीय आइटी कंपनियों ने भी हजारों कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया. अकेले 2023 में अनुमानित 2.62 लाख तकनीकी पेशेवरों ने नौकरी खोयी.

By प्रभात सिन्हा | August 21, 2025 5:30 AM

Layoffs in IT Sector : सूचना प्रौद्योगिकी (आइटी) क्षेत्र में पिछले दो वर्षों से भी ज्यादा समय से छंटनी का सिलसिला जारी है. हाल ही में देश की सबसे बड़ी आइटी संस्था टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने अपने कुल कार्यबल का लगभग दो फीसदी, यानी करीब 12,000 कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा की. छंटनी की यह पहली घटना नहीं है, 2023 में भी इंफोसिस, विप्रो, टीसीएस और टेक महिंद्रा जैसी प्रमुख कंपनियों ने प्रतिस्थापन बहाली रोक कर और छंटनी के जरिये 67,000 से अधिक नौकरियों में कटौती की थी.

एलटीआइ माइंडट्री जैसी कई मध्यमवर्गीय आइटी कंपनियों ने भी हजारों कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया. अकेले 2023 में अनुमानित 2.62 लाख तकनीकी पेशेवरों ने नौकरी खोयी. आइबीएम, सिस्को, एसएपी, इंटेल, ट्विटर (एक्स) और अनगिनत स्टार्टअप्स ने लागत कम करने के नाम पर बड़े पैमाने पर कटौती की. वर्ष 2023 में एक महीने में ही एक लाख से अधिक नौकरियां खत्म हो गयी थीं. इस साल जून तक दुनियाभर में आइटी क्षेत्र में 80,000 से अधिक लोग बेरोजगार हुए हैं.


इस संकट की जड़ें महामारी में की गयी जरूरत से ज्यादा भर्ती में छिपी हैं. कोविड के समय बढ़ती डिजिटल मांग को देखते हुए कंपनियों ने बड़े पैमाने पर बहाली की थी, पर बाद में उनके पास जरूरत से ज्यादा कर्मचारी हो गये. बढ़ती मुद्रास्फीति और ब्याज दरों ने उपभोक्ता खर्च घटाया, जिससे अमेरिका और यूरोप में मंदी की आशंकाएं बढ़ीं. शेयर बाजार गिरने से कंपनियों के मूल्यांकन घटे और उन्होंने लाभ बचाने के लिए तकनीकी निवेश में कमी और छंटनी को चुना. इस बीच यूक्रेन युद्ध, यूरोप में ऊर्जा संकट और चीन की सुस्ती ने वैश्विक मंदी को और गहरा किया. भारत में स्टार्टअप फंडिंग 2023 की पहली छमाही में पिछले वर्ष की तुलना में 70 फीसदी से अधिक गिर गयी और कोई नया यूनिकॉर्न सामने नहीं आया. एआइ और स्वचालन भी इस बदलाव के अहम कारक बने. चैटजीपीटी, जेमिनी और डीपसीक जैसे जेनरेटिव एआइ टूल्स के उपयोग से प्रोग्रामिंग, टेस्टिंग और सपोर्ट जैसे कई कार्य स्वचालित हो चुके हैं.


भारत का आइटी क्षेत्र आज 55 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है और जीडीपी में सात-आठ फीसदी योगदान करता है. यह भी कि यहां छंटनी का पैमाना अमेरिका-यूरोप की तुलना में कम है. सिलिकॉन वैली जैसी 25-50 फीसदी कटौती करने के बजाय भारतीय कंपनियां भर्ती रोकने, ऑफर स्थगित करने और प्रदर्शन आधारित निकासी जैसे नरम तरीकों से कर्मचारियों की संख्या घटाती हैं. इसका सर्वाधिक असर मध्यम और वरिष्ठ स्तर के कर्मचारियों पर पड़ा है. वहीं एंट्री लेवल नौकरियां अपेक्षाकृत सुरक्षित रहीं, हालांकि कैंपस हायरिंग धीमी कर दी गयी. अमेरिका में 2022 के अंत से अब तक 80,000 से अधिक भारतीय आइटी पेशेवर बेरोजगार होकर भारत लौट चुके हैं.

इससे स्थानीय नौकरी बाजार पर अतिरिक्त दबाव पड़ा है. आइटी उद्योग लंबे समय से भारतीय अर्थव्यवस्था का स्तंभ रहा है. अच्छी तनख्वाह पाने वाले आइटी पेशेवर बेंगलुरु, पुणे, हैदराबाद, चेन्नई और गुरुग्राम जैसे शहरों की आर्थिक धड़कन हैं. यदि छंटनी का दौर लंबा खिंचता है, तो इन शहरों के रियल एस्टेट बाजार में सुस्ती आ सकती है, वाहन और इलेक्ट्रॉनिक सामान की मांग घट सकती है और रिटेल व हॉस्पिटेलिटी क्षेत्र को नुकसान झेलना पड़ सकता है.


इस संकट से निपटने के लिए आइटी पेशेवर बड़े पैमाने पर क्लाउड, एआइ/एमएल, डेटा साइंस और साइबर सिक्योरिटी जैसे क्षेत्रों में कौशल सीख रहे हैं. कुछ आइटी सेवा प्रदाता आवर्ती मूल्य पर बेचे जाने वाले सॉफ्टवेयर, उपकरण, प्लेटफॉर्म जैसे स्वयं की बौद्धिक संपदा उत्पादित कर राजस्व व रोजगार के नये स्रोत बना रहे हैं. वरिष्ठ कर्मचारी उत्पाद प्रबंधन, टेक सेल्स, फ्रीलांसिंग, परामर्श और स्टार्टअप्स की ओर बढ़ रहे हैं. आइटी कंपनियां भी अपने ढांचे को पुनर्गठित कर उत्पादकता, स्वचालन और विविधीकरण पर ध्यान दे रही हैं. आर्थिक सर्वेक्षण, 2024-25 ने स्टेम (विज्ञान, तकनीक, अभियंत्रण और गणित) में कौशल अंतर कम करने की सिफारिश की है.

प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना के तहत पांच साल में 10 लाख युवाओं को व्यावहारिक अनुभव दिलाने का लक्ष्य है. स्किल इंडिया मिशन और नैसकॉम फ्यूचर स्किल्स जैसे प्लेटफॉर्म युवाओं को एआइ, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, नवीकरणीय ऊर्जा और उभरते स्टार्टअप क्षेत्रों में नये अवसर दे रहे हैं. भारत सरकार ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (जीसीसी) को बढ़ावा दे रही है, जिससे देश में उच्च-स्तरीय शोध, डिजाइन और अभियंत्रण संबंधित नौकरियां पैदा होंगी. इसका असर यह है कि भारत केवल सेवाओं का गढ़ नहीं रहेगा, वैश्विक नवाचार का भी केंद्र बनेगा. स्पष्ट है कि मौजूदा दौर लंबी गिरावट का नहीं, पुनरोदय का है. विदेशों में और भारत में डिजिटल रूपांतरण, क्लाउड व एआइ की मांग कायम है. जैसे ही ब्याज दरें थमेंगी, विश्वास लौटेगा, तकनीकी भर्ती फिर से जीवंत होगी और भारतीय आइटी उद्योग मजबूत, सक्षम और भविष्य के लिये तैयार होकर उभरेगा. हाल की छंटनी ने उद्योग को जागरूक किया है कि नये कौशल और मॉडल अपनाने वाली कंपनियों व पेशेवरों की नौकरियां ज्यादा सुरक्षित और टिकाऊ रहेंगी. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)