राफेल की आमद

तकनीक के तीव्र विकास तथा युद्ध की रणनीतियों में लगातार बदलाव की वजह से आधुनिकीकरण को प्राथमिकता देने की बड़ी जरूरत है.

By संपादकीय | July 30, 2020 4:33 AM

अत्याधुनिक लड़ाकू विमान राफेल का भारतीय वायु सेना के बेड़े में शामिल होना सैन्य क्षमता के लिए एक मील का पत्थर है. चीन की हालिया आक्रामकता तथा पाकिस्तानी सेना की शरारतों को देखते हुए इन विमानों की आमद वर्तमान और भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने में बहुत मददगार होगी. उम्मीद है कि जल्दी ही और विमान भी वायु सेना की मारक क्षमता में योगदान दे सकेंगे. मजबूत सैनिक क्षमता युद्ध या किसी तरह के हमले का जवाब देने के लिए तो जरूरी है ही, इससे पड़ोसी देशों के साथ रणनीतिक व कूटनीतिक समझौते करने में भी सहयोग मिलता है. बीते कुछ समय से सेना के तीनों अंगों के लिए हथियारों, विमानों, हेलीकॉप्टरों तथा अन्य साजो-सामान की खरीद की प्रक्रिया तेज गति से चल रही है.

जल्दी ही रूस से मिग और सुखोई विमानों का आना भी तय है. नौसेना भी अपने बेड़े के लिए लड़ाकू विमानों के उड़ने-उतरने की सुविधाओं से लैस तीसरा युद्धपोत हासिल करने की कोशिश में है. दूसरा युद्धपोत पहले से ही खरीदा जा चुका है, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से वह अब सितंबर में बेड़े में शामिल हो पायेगा. उल्लेखनीय है कि चीन के साथ तनातनी भले ही वास्तविक नियंत्रण पर देश की उत्तरी और पूर्वी सीमा पर है या पाकिस्तान के साथ तनाव उत्तरी व पश्चिमी सीमा पर व्याप्त है, लेकिन दोनों ही देशों के साथ युद्ध की स्थिति में समुद्री क्षेत्र की हलचलों की बड़ी भूमिका हो सकती है.

इतिहास स्पष्ट इंगित करता है कि भारत कभी आक्रमणकारी देश नहीं रहा है और न ही भविष्य में आक्रांता बनने का उसका कोई इरादा है, लेकिन चीन और पाकिस्तान जैसे आक्रामक पड़ोसियों की उपस्थिति के कारण हमें अपनी सैन्य क्षमता को निरंतर बढ़ाने की आवश्यकता है. राफेल का महत्व इसलिए भी है कि अनेक दशकों के बाद पहली बार रणनीतिक रूप से आवश्यक युद्धकों को वायु सेना में शामिल किया गया है. हालांकि हमारी सैन्य शक्ति बहुत मजबूत है और इस कारण सेना के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया की गति सामान्य रखी जा सकती थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने बीते कुछ सालों में रक्षा के क्षेत्र में बहुत सुधार किये हैं.

इसका परिणाम यह हुआ है कि साजो-सामान की खरीद और पहले से तैनात हथियारों, विमानों, युद्धपोतों तथा संचार प्रणाली के मरम्मत व रख-रखाव के काम में बड़ी तेजी आयी है. तकनीक के तीव्र विकास तथा युद्ध की रणनीतियों में लगातार बदलाव की वजह से आधुनिकीकरण को प्राथमिकता देने की बड़ी जरूरत है. चीन और पाकिस्तान ने जिस पैमाने पर हथियारों व साजो-सामान का जुटान हालिया सालों में किया है, उसे देखते हुए भारत को भी अपनी क्षमता को बढ़ाना जरूरी हो गया है. राफेल युद्धकों का आना इसी का एक उदाहरण है. यह पड़ोसी देशों के लिए एक संदेश भी है कि वे भारत के संयम की परीक्षा न लें.

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