ओलिंपिक का प्रवेश द्वार है कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी

Commonwealth Games : कॉमनवेल्थ गेम्स में 70 से अधिक देश भाग लेंगे. इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह खेल प्रतिस्पर्धा काफी बड़े पैमाने पर आयोजित की जायेगी. ऐसे में इस खेल आयोजन को सफल बनाने के लिए जो भी व्यवस्था की जायेगी, वह उच्च स्तरीय होनी चाहिए, ठीक वैसी जैसी ओलिंपिक के दौरान होती है.

By मीर रंजन नेगी | October 23, 2025 8:15 AM

Commonwealth Games : कॉमनवेल्थ गेम्स की ग्लोबल गवर्निंग बॉडी के एग्जीक्यूटिव बोर्ड ने अहमदाबाद को 2030 के कॉमनवेल्थ गेम्स के मेजबान शहर के तौर पर सिफारिश की है. इस सिफारिश पर औपचारिक मुहर 26 नवंबर को ग्लासगो में होने वाली कॉमनवेल्थ स्पोर्ट की जनरल असेंबली मीटिंग में लगेगी. इस तरह लगभग यह तय हो गया है कि 2030 में इस अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन का मेजबान भारत होगा. मेरी नजर में, इस खेल की मेजबानी मिलना, 2036 में ओलिंपिक की मेजबानी करने के भारत के प्रयासों का प्रवेश द्वार है. यह भारत के बढ़ते आत्मविश्वास, क्षमता और प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है. यह इस बात का भी संकेत है कि विश्व पटल पर खेलों के एक पावर हाउस के रूप में हम उभर रहे हैं. इससे ओलिंपिक की मेजबानी करने का हमारा जो सपना है, उसे एक नया आयाम मिलेगा, एक नयी दिशा मिलेगी. सच कहें, तो यह 2036 के ओलिंपिक की मेजबानी की दावेदारी की तरफ एक मजबूत कदम है.


कॉमनवेल्थ गेम्स में 70 से अधिक देश भाग लेंगे. इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह खेल प्रतिस्पर्धा काफी बड़े पैमाने पर आयोजित की जायेगी. ऐसे में इस खेल आयोजन को सफल बनाने के लिए जो भी व्यवस्था की जायेगी, वह उच्च स्तरीय होनी चाहिए, ठीक वैसी जैसी ओलिंपिक के दौरान होती है. इस तरह की खेल सुविधाएं- जिन्हें सस्टनेबल स्पोर्ट्स इकोसिस्टम कहते हैं- विशेषकर जो हमारे युवा वर्ग हैं, उन्हें खेलों से जुड़ने के लिए प्रेरित करेगा. इस इकोसिस्टम के तहत जब हमारे युवा खिलाड़ी तैयार होकर निकलेंगे, तो उन्हें बहुत लाभ मिलेगा. क्योंकि सच तो यही है कि अपने देश में बहुत कम जगह पर ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की अवसंरचनाएं मौजूद हैं.

दूसरी बात, जब भी इस तरह के आयोजन होते हैं, तो देश में खेलों को लेकर एक जुनून पैदा होता है और इससे देश की खेल संस्कृति को मजबूती मिलती है, जो अंतत: बेहतर खिलाड़ियों के उभरने और सफल खेल आयोजन के रूप में परिणत होती है. उदाहरण के लिए, ओलिंपिक खेलों में जब सायना नेहवाल और पीवी सिंधु ने पदक जीते, तो देश की लड़कियों के बीच बैडमिंटन खेलने का माहौल बन गया. जबकि इससे पहले तक बैडमिंटन को लेकर लड़कियों के बीच इस तरह का जुनून नहीं था. जब देश में इतनी बड़ी अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धा आयोजित की जायेगी, तो उम्मीद है कि उसके लिए तैयारियां भी उसी स्तर पर होंगी. इनसे अनगिनत लोगों को रोजगार तो मिलेगा ही, बड़ी संख्या में आगंतुकों के आने से अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी. हालांकि इसमें सरकार को बहुत पैसे खर्च करने पड़ेंगे, पर इससे देश की प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी.


जहां तक खिलाड़ियों की बात है, तो अपने देश में, अपने लोगों के सामने खेलने का अपना अलग ही आनंद होता है. हालांकि, यह भी सच है कि जो होम टीम होती है, उसके अपने लाभ तो होते ही हैं, पर हानि भी होती है. अपने घर में खेलने का दबाव बहुत होता है. तो यहां आपको अपना सर्वश्रेष्ठ देना होगा और इसके लिए मानसिक मजबूती की जरूरत होगी. ऐसे में कोच व खिलाड़ी दोनों को मानसिक मजबूती के लिए काम करना होगा. कोच और खिलाड़ियों को प्रशिक्षण को लेकर भी पूरी सावधानी बरतनी होगी. आजकल ऐसी ट्रेनिंग होती है, जिसमें खिलाड़ियों के चोटिल होने का खतरा कई बार बहुत बढ़ जाता है. कई बार कोच अपने स्टूडेंट पर यह दबाव बनाते हैं कि वह थोड़ी देर और प्रैक्टिस कर ले, इस चक्कर में भी कई बार खिलाड़ी चोटिल हो जाते हैं. इससे उन्हें बचना होगा.

इस तरह के आयोजन कोच के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. इस दौरान उन्हें दूसरे अंतरराष्ट्रीय स्तर के कोच के साथ संवाद करने का अवसर मिलता है, उनके अनुभव से सीखने को मिलता है. यह एक कोच को दूसरे कोच की मानसिकता को समझने का भी अवसर होता है, जिसका लाभ उन्हें खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करते समय मिलता है. कॉमनवेल्थ गेम्स में अपने देश में खेलते हुए खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के खेल के तरीके, उनकी रणनीतियों को समझकर अपने खेल को बेहतर बना सकते हैं और ओलिंपिक जैसे खेलों के महाकुंभ में अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकते हैं. हालांकि एक तथ्य यह भी है कि जो खिलाड़ी कॉमनवेल्थ 2030 में खेलेंगे, उनमें से 70-80 प्रतिशत खिलाड़ी ओलिंपिक 2036 में नहीं खेल पायेंगे, क्योंकि उनकी उम्र अधिक हो चुकी होगी. लेकिन, जो युवा खिलाड़ी हैं, जो उभरते हुए खिलाड़ी हैं, वे निश्चित तौर पर इससे प्रेरित होंगे, उन्हें दूसरे देश के महान खिलाड़ियों से बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलेगा.


यहां सरकार की जवाबदेही भी काफी बढ़ जाती है. समय पर उच्च स्तरीय अवसंरचनाओं का निर्माण करना कोई हंसी-खेल नहीं है. इसके लिए युद्धस्तर पर तैयारी करनी होगी. तैयारी में किसी तरह की कोई कमी न रहे, इसकी निगरानी करनी होगी. जब हम ऐसा करेंगे तभी जाकर सच्चे अर्थों में 2036 ओलिंपिक की मेजबानी की दावेदारी कर पाने में सक्षम हों पायेंगे, क्योंकि ओलिंपिक में 200 से अधिक देश भाग लेते हैं. इस आयोजन के लिए सुरक्षा व्यवस्था भी चाक-चाैबंद होनी चाहिए. इसमें तनिक भी चूक देश की प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिला देगी.
(बातचीत पर आधारित)(फिल्म ‘चक दे इंडिया’ लेखक के जीवन पर आधारित है.)