मुद्रास्फीति की चुनौती

मुद्रास्फीति की चुनौती

By संपादकीय | December 29, 2020 9:56 AM

इस वर्ष महामारी और मंदी के संकट के साथ महंगाई की समस्या भी बड़ी गंभीर रही. अब अर्थव्यवस्था में सुधार के स्पष्ट संकेत दिखने लगे हैं, लेकिन मुद्रास्फीति में कमी के आसार नहीं हैं. उपभोक्ता मुद्रास्फीति की दर लगातार छह फीसदी से अधिक होने का मतलब यह है कि लोगों की जेब पर भार बढ़ रहा है.

दर का यह स्तर रिजर्व बैंक के निर्धारित लक्ष्य से बहुत अधिक है. कई जानकारों का मानना है कि अगले साल आर्थिक वृद्धि की दर बढ़ाने से अधिक बड़ी चुनौती मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की हो सकती है. कुछ विशेषज्ञ यह भी सुझाव दे रहे हैं कि बाजार में नगदी की बड़ी मात्रा को कम करने के लिए रिजर्व बैंक को जल्दी कदम उठाना चाहिए. संतोष की बात है कि महामारी नियंत्रित होती प्रतीत हो रही है तथा उत्पादन, मांग और रोजगार में सकारात्मक संकेत हैं.

लेकिन इस वर्ष अर्थव्यवस्था वृद्धि की दर ऋणात्मक रहने तथा उसे समुचित स्तर पर पहुंचने में कुछ समय लगने के कारण राष्ट्रीय आय के साथ लोगों की आमदनी में भी कमी बनी रहेगी. ऐसे में महंगाई का बरकरार रहना परेशानी की वजह बन सकता है. हमारे देश की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा गरीब और निम्न आय वर्ग से है. रोजमर्रा की चीजों की कीमतों में मामूली बढ़त भी उनके बजट पर असर डाल सकती है.

कोरोना संकट से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर सबसे अधिक असर पड़ा है. मुद्रास्फीति अगर काबू में नहीं आयी, तो ये सेवाएं महंगी होती जायेंगी. आर्थिकी के गति पकड़ने के साथ रोजगार के अवसर पैदा होने की उम्मीद है, पर बेरोजगारी दर के अधिक होने से ये अवसर निकट भविष्य में पर्याप्त नहीं होंगे. बेरोजगारी में और आमदनी घटने की हालत में महंगाई की मार असहनीय हो सकती है. फसलों की आमद से अनाज, सब्जियों, दुग्ध उत्पादों आदि की कीमतें घट सकती हैं, लेकिन अन्य वस्तुओं के बारे में ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती है.

सरकारी कल्याण योजनाओं और राहत कार्यक्रमों से लोगों को एक हद तक मदद मिल रही है. आगामी बजट से भी लोगों को बड़ी आशाएं हैं. लेकिन एक आशंका यह भी है कि मुद्रास्फीति कम करने की कोशिश में अगर बाजार से नगदी की मौजूदा बड़ी मात्रा को कम किया गया, तो आर्थिक वृद्धि भी प्रभावित हो सकती है क्योंकि नगदी कम होने से मांग पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है. उम्मीद है कि सरकार और रिजर्व बैंक की ओर से मुद्रास्फीति की चुनौती से निपटने के लिए शीघ्र ही निर्णायक कदम उठाये जायेंगे.

फिलहाल यह कोशिश होनी चाहिए कि कायदे-कानूनों का उल्लंघन कर महंगाई बढ़ाने और मुनाफा कमाने पर रोक लगे. जरूरी चीजों के दाम वाजिब होने चाहिए. यह चुनौती इसलिए गंभीर है कि एक तरफ अर्थव्यवस्था भी उथल-पुथल से गुजर रही है और दूसरी तरफ मुद्रास्फीति की दर भी अधिक है. स्थिति ठीक होने में समय अधिक लग सकता है.

Posted By : sameer Oraon

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