विशेष : संवेदनाओं में भीगी फिल्म ‘पथेर पांचाली’ के 70 वर्ष
70 years of Pather Panchali : दो मई, 1921 को कलकत्ता के गड़पार रोड मोहल्ले में जन्मे सत्यजीत रे की मृत्यु 23 अप्रैल, 1992 को कलकत्ता के ही बेल व्यू नर्सिंग होम में हुई. तब सत्यजीत रे सत्तर साल के थे और बहुत बीमार थे. राय मोशाय ने कोई 36 फिल्में बनायीं. इनमें ज्यादातर फीचर, कुछ लघु और कुछ डॉक्यूमेंट्री हैं. पर उनकी बनायी पहली क्लासिक फिल्म 'पथेर पांचाली' का कोई तोड़ नहीं है.
-जयनारायण प्रसाद-
70 years of Pather Panchali : मूवी कैमरे के जरिये भी एक अच्छी कहानी कही जा सकती है. यह बात ऑस्कर विजेता फिल्मकार सत्यजीत रे ने हमें सिखायी थी. उनकी बनायी पहली बांग्ला फिल्म ‘पथेर पांचाली’ (पथ का गीत, द सांग ऑफ द रोड) ने देखते ही देखते राय मोशाय को ‘ग्लोबल’ बना दिया. ‘पथेर पांचाली’ 1955 में बनी थी और वह भी सिर्फ सत्तर हजार रुपये में. इस क्लासिक फिल्म को भले ही बहुत सराहना मिली, पर जब इसका निर्माण शुरू हुआ, तब परिस्थितियां बहुत मुश्किल थीं. वर्ष 1952 में फिल्म बननी शुरू हुई और 1955 में बनकर तैयार हुई. यह फिल्म पहली बार कलकत्ता के बसुश्री सिनेमा हॉल में 26 अगस्त, 1955 को रिलीज हुई थी. क्लासिक फिल्म ‘पथेर पांचाली’ को बनाना सत्यजीत रे के लिए एक सपने को साकार करने की लड़ाई थी.
दो मई, 1921 को कलकत्ता के गड़पार रोड मोहल्ले में जन्मे सत्यजीत रे की मृत्यु 23 अप्रैल, 1992 को कलकत्ता के ही बेल व्यू नर्सिंग होम में हुई. तब सत्यजीत रे सत्तर साल के थे और बहुत बीमार थे. राय मोशाय ने कोई 36 फिल्में बनायीं. इनमें ज्यादातर फीचर, कुछ लघु और कुछ डॉक्यूमेंट्री हैं. पर उनकी बनायी पहली क्लासिक फिल्म ‘पथेर पांचाली’ का कोई तोड़ नहीं है. दुनियाभर की ‘वर्ल्ड क्लासिक फिल्मों’ की फेहरिस्त में यह बांग्ला मूवी भी शामिल है. इस फिल्म में वैश्विक अनुभूति से लेकर संवेदनाएं आपको जगह-जगह दिखाई दे जाती हैं, जो सरहद पार बैठे दर्शकों को भी सहज भाव से आकर्षित करती हैं. इस फिल्म को पूरा करने के लिए सत्यजीत रे ने कोई जतन उठा नहीं रखा. पत्नी विजया राय के गहने बेचे, उनकी पॉलिसियां बेचीं. अपने दुर्लभ गानों के रिकार्ड्स बेचे, इसके बावजूद जब ‘पथेर पांचाली’ पूरी नहीं हुई, तब पश्चिम बंगाल सरकार आगे आयी. राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय ने फिल्म की कहानी सुनी और उसके कुछ अंश देखे. सब कुछ देखने-सुनने के बाद उन्होंने सत्यजीत रे से इसका अंत बदलने को कहा, पर वे अड़े रहे.
कहते हैं कि ‘पथेर पांचाली’ का अंत बदलने को लेकर सत्यजीत रे कुर्सी से उठ खड़े हुए थे. मुख्यमंत्री ने दूसरे दिन राय को अपने चैंबर में फिर बुलाया और कहा, ‘बैठो! उस दिन मैं तुम्हारी भावना को परख रहा था. घर जाओ, खाओ और सो जाओ. हमारी सरकार तुम्हारी फिल्म को फाइनेंस करेगी.’ बाद में फिल्म को पश्चिम बंगाल सरकार के ग्रामीण विकास विभाग से आर्थिक मदद दी गयी. उसके बाद ‘पथेर पांचाली’ ने वैश्विक स्तर पर जो धूम मचायी, वह फिल्म इतिहास का अब एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है. मशहूर ब्रिटिश पत्रिका ‘साइट एंड साउंड’ ने सत्यजीत रे को एशिया के टॉप 10 निर्देशकों में शुमार किया. इस फिल्म को ढेर सारे पुरस्कार मिले. विदेशी फिल्म महोत्सवों में गोल्डन लायन, गोल्डन बियर तथा दो सिल्वर बियर मिले. इसके साथ ही रे को 1978 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की मानद उपाधि तथा 1992 में ‘ऑनरेरी एकेडमी’ पुरस्कार मिला. उसी वर्ष उन्हें ‘भारत रत्न’ से भी नवाजा गया.
मोटे तौर पर देखें, तो मानवीय जटिलताएं, सामाजिक विरूपण और आम आदमी का संघर्ष सत्यजीत रे की फिल्मों का सार व कथ्य रहा है. उन्होंने फिल्म बनाने के अतिरिक्त, बांग्ला में बच्चों के लिए कहानियां और जासूसी उपन्यास भी लिखे हैं. उनकी फिल्म ‘सोनार केल्ला’ और ‘फेलुदा सीरीज’ बंगाल के घर-घर में आज भी काफी लोकप्रिय हैं. बंगाल में बच्चे इसे चाव से देखते और पढ़ते हैं. उन्होंने अपनी मातृभाषा में ढेर सारी फिल्में तो बनायीं ही, हिंदी में भी दो फिल्में बनायीं. एक ‘शतरंज के खिलाड़ी’ (1977) और दूसरी दूरदर्शन के लिए ‘सद्गति’ (1981). दोनों फिल्में प्रेमचंद की रचनाओं पर आधारित थीं. फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में हिंदी संवाद सत्यजीत रे, शमा जैदी और जावेद सिद्दीकी ने लिखे थे. जबकि ‘सद्गति’ में संवाद सत्यजीत रे और प्रेमचंद के सुपुत्र अमृत राय का था. ‘शतरंज के खिलाड़ी’ तो विदेशों में भी काफी सराही गयी. एक सौ तेरह मिनट की इस फिल्म का नृत्य निर्देशन बिरजू महाराज ने किया था. साउंड डिजाइन नरिंदर सिंह ने किया था और बंसीचंद्र गुप्त ने आर्ट डायरेक्शन. वहीं इसमें म्यूजिक सत्यजीत रे ने दिया था. संजीव कुमार (मिर्जा सज्जाद अली), सईद जाफरी (मीर रौशन अली), अमजद खान (वाजिद अली शाह), रिचर्ड एटनबरो (जनरल आउट्रम), शबाना आजमी (खुर्शीद), फरीदा जलाल (नफीसा), विक्टर बनर्जी (अली नकवी खान, प्रधानमंत्री), फारुख शेख (अकील), टॉम अल्टर (कैप्टन वेस्टर्न) और लीला मिश्रा (सिरिया) के किरदार में थीं. अब इनमें से ज्यादातर कलाकार जीवित नहीं हैं. स्वयं इस फिल्म के निर्देशक सत्यजीत रे भी.
‘सद्गति’ एक टेलीफिल्म थी. इस फिल्म में ओमपुरी (दुखी चमार), स्मिता पाटिल (झुरिया, दुखी की पत्नी), ऋचा मिश्रा (धनिया, दुखी की बेटी), मोहन अगाशे (घासी राम), गीता सिद्धार्थ (लक्ष्मी, घासी राम की पत्नी) और भैयालाल हेदाव (गोंड) ने खास भूमिका निभायी थी. राय मोशाय की इस टेलीफिल्म में सोमेंदु राय की फोटोग्राफी और अशोक बोस का कला निर्देशन देखने लायक है. बावन मिनट की इस फिल्म का म्यूजिक सत्यजीत रे ने दिया था.
