पहनावा थोपना समझदारी नहीं

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in जाने माने युवा लेखक नीलोत्पल मृणाल को हाल में दिल्ली के राजीव गांधी चौक, जो कभी कनॉट प्लेस कहलाता था, वहां एक रेस्तरां में जाने से इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि उनके कंधे पर गमछा था. साहित्य कला अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नीलोत्पल मृणाल झारखंड-बिहार से हैं. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 18, 2019 6:15 AM
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
जाने माने युवा लेखक नीलोत्पल मृणाल को हाल में दिल्ली के राजीव गांधी चौक, जो कभी कनॉट प्लेस कहलाता था, वहां एक रेस्तरां में जाने से इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि उनके कंधे पर गमछा था. साहित्य कला अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नीलोत्पल मृणाल झारखंड-बिहार से हैं. इस घटना की सोशल मीडिया पर भारी आलोचना हो रही है. इसे इस क्षेत्र की पहचान की लड़ाई से जोड़ कर देखा जा रहा है. उनके समर्थन में बड़ी संख्या में युवावर्ग और साहित्यकार सामने आये हैं. सभी लोगों ने एक स्वर से इस घटना के विरोध में आवाज बुलंद की है. जाने-माने कवि कुमार विश्वास ने कहा- कनॉट प्लेस अंग्रेजों की मानसिकता वाली जगह है.
आजादी के बाद यहां अभिजात्य वर्ग के लोग बस गये. सरकार सुनिश्चित करे कि इस तरह की घटनाएं दुबारा न हों. मैं निजी रूप से उस रेस्तरां के मालिक को चेतावनी देता हूं कि वह इसके लिए सार्वजनिक रूप से क्षमा याचना करें, अन्यथा वह नीलोत्पल को लेकर गमछा डाल कर पांच और बड़े लेखकों को लेकर वहां खाना खाने चले आयेंगे. यह एक घटना मात्र नहीं है, बल्कि मानसिकता का मामला है.
मैं इसे केवल एक क्षेत्र विशेष की लड़ाई नहीं मानता. दरअसल, हम एक ओर अंग्रेजों की गुलामी की प्रथाओं से मुक्त होने की कोशिश कर रहे हैं, पर हमारा एक वर्ग अब भी उसी विचार से जकड़ा है. हमारे अनेक विश्वविद्यालयों ने दीक्षांत समारोहों में गाउन के स्थान पर भारतीय परिधान कुर्ता-पायजामा, साड़ी आदि को स्वीकार किया है.
आइआइटी जैसे संस्थान भी इसे अपना रहे हैं. आइआइटी रुड़की, मुंबई और कानपुर ने पारंपरिक भारतीय पोशाक साड़ी और कुर्ता-पायजामा को अपने दीक्षांत समारोह में शामिल किया है. जेएनयू में भी दीक्षांत समारोह में विद्यार्थियों ने साड़ी और कुर्ता पहना है.
हाल के दौर में पहनावे को लेकर सबसे ज्यादा निशाना पश्चिम बंगाल से सांसद नुसरत जहां को बनाया गया है. नुसरत जहां ने निखिल जैन से शादी की है. नुसरत जहां ने पबं की बशीरहाट सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव कर 3.5 लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की. संसद में शपथ के दौरान मांग में सिंदूर और हाथों में चूड़ी पहनने पर उन पर सवाल उठाया गया, जिसका उन्होंने करारा जवाब दिया.
उन्होंने कहा कि वह भारत के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करती हैं. वह मुसलमान हैं और सभी धर्मों का सम्मान करती हैं. कुछ समय पहले पुजारियों ने उज्जैन के महाकाल मंदिर में पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती के वस्त्रों पर सवाल उठा दिया था. उनसे कहा गया था कि वह साड़ी पहन कर ही मंदिर में दर्शन कर सकती हैं. उमा भारती भगवा अचला धोनी धारण कर महाकाल मंदिर के गर्भगृह में पहुंची थीं.
यह गरिमामयी परिधान है और संत परंपरा के अनुरूप है, पर हमारे पुजारी लकीर के फकीर हैं. उमा भारती कुशल राजनीतिज्ञ भी हैं और उन्होंने इसे बहुत अच्छी तरह से संभाला. उमा भारती ने ट्वीट किया- मुझे साड़ी पहनना बहुत पसंद है और मुझे और खुशी होगी यदि पुजारीगण मुझे अपनी बहन समझ कर मंदिर प्रवेश के पहले साड़ी भेंट कर दें. मैं बहुत सम्मानित अनुभव करूंगी. उज्जैन अखाड़ा परिषद के पूर्व महामंत्री अवधेशपुरी महाराज ने उनके समर्थन में कहा कि मंदिर के पुजारियों का उमा भारती सहित किसी भी संत की वेशभूषा पर सवाल उठाना गलत है. उमा भारती एक साध्वी हैं. इसलिए उनकी वेशभूषा पर की गयी टिप्पणी सनातन संत परंपरा की मर्यादा के प्रतिकूल और अनाधिकार चेष्टा है.
महिलाओं के पहनावे पर सरकारी विभाग भी निर्देश देने से पीछे नहीं रहे हैं. 2016 में हरियाणा सरकार ने सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को जींस पहनने करने को कहा था. स्वदेशी का जोर-शोर से प्रचार करने वाले बाबा रामदेव की कंपनी भी जींस बनाती है. उन्होंने समझ लिया है कि भले ही जींस पश्चिमी परिधान है, पर कामकाज की जरूरतों के मद्देनजर यह सुविधाजनक पोशाक है. वैसे ऐसे आदेश जारी करने वाला हरियाणा अकेला राज्य नहीं है.
तमिलनाडु सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए ड्रेस कोड निर्धारित करने की कोशिश की थी. उसने सचिवालय में काम करने वाली कर्मचारियों को ड्यूटी के दौरान साड़ी, सलवार कमीज या फिर दुपट्टे के साथ चूड़ीदार पहनने की अनिवार्य बनाया था, वहीं पुरुषों को फॉर्मल पैंट-शर्ट में ऑफिस आने का निर्देश दिया गया था. राज्य सरकार ने कहा था कि पारंपरिक परिधान- धोती में ऑफिस आने की छूट नहीं होगी. वहां का स्कूली शिक्षा विभाग भी ऐसी कोशिश कर चुका है.
उसने स्कूली शिक्षकों से कहा था कि वे ऐसे शालीन कपड़ों में आएं, जो उनके पेशे और संस्कृति से मेल खाते हों. 2013 में कर्नाटक सरकार ने अपनी महिला कर्मचारियों के लिए ड्रेस कोड लागू किया था. कुछ अति उत्साही पंचायतें भी इस मामले में कूदती रही हैं. मार्च, 2014 में मथुरा के बरसाना में 52 गांवों की एक पंचायत ने महिलाओं के जींस पहनने पर पाबंदी लगा दी थी.
हम लोगों को यह याद रखना चाहिए कि हम गांधी की परंपरा के देश हैं और हाल में हमने गांधी की 150वीं जन्मशती मनायी है. गांधी ने 1888 में कानून के एक छात्र के रूप में इंग्लैंड में सूट पहनते थे, लेकिन भारत में उन्होंने एक-एक कर सभी वस्त्र त्याग दिये और सिर्फ धोती में दिखे. सन् 1917 गांधी जी जब चंपारण पहुंचे, तब वह कठियावाड़ी पोशाक पहने हुए थे.
जब गांधी जी ने सुना कि नील फैक्ट्रियों के मालिक निम्न जाति के औरतों और मर्दों को जूते नहीं पहनने देते थे, तो उन्होंने तुरंत जूते पहनने बंद कर दिये. दूसरी यात्रा में एक निर्धन महिला को अपना चोगा सौंप दिया था और इसके बाद उन्होंने चोगा ओढ़ना ही बंद कर दिया. सन् 1918 में जब वह अहमदाबाद में मजदूरों की लड़ाई में शामिल हुए, तो उन्होंने देखा कि उनकी पगड़ी में जितना कपड़ा लगता है, उसमें चार लोगों का तन ढका जा सकता है. उसके बाद उन्होंने पगड़ी पहनना छोड़ दिया था.
आजादी के बाद हमारे राजनेताओं के पहनावे में भी भारी बदलाव आया है. आजादी के दौर में नेताओं की पहली पसंद धोती-कुर्ता और गांधी टोपी थी और महिलाएं साड़ी पहनती थीं. बाद के दिनों में धोती-कुर्ता की जगह पायजामा-कुर्ता ने ले ली, लेकिन महिला नेताओं की पसंद साड़ी बनी रही. अगली पीढ़ी में गांधी टोपी का चलन धीरे-धीरे कम होने लगा. फिलहाल आप, सपा और कांग्रेस सेवा दल जैसे खास दलों व संगठनों को छोड़कर अन्य दलों के कुछेक नेता ही टोपी पहनते हैं.
पिछले पांच-सात साल में पहनावे का ट्रेंड बदला है. राजनीति में आने वाली नयी पीढ़ी की पसंद अब पैंट-शर्ट, सूट-बूट हो गया है. महिला नेताओं की पसंद भी बदली है. साड़ी की जगह अब सलवार-शमीज लेने लगी है. हम देश-काल और परिस्थितियों के अनुसार पहनावे के बारे में निर्णय लें तो बेहतर होगा.

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