भागना एक क्रिया है

पीयूष पांडे व्यंग्यकार pandeypiyush07@gmail.com भागना सेहत के लिए अच्छा होता है और भागते-भागते देश की एकता बोनस में मिल जाये, तो इससे अच्छा क्या हो सकता है. भागना एक क्रिया है. किंतु देश की अधिसंख्य आबादी के लिए भागना एक ‘क्रीड़ा’ भी है. भागने की इस क्रीड़ा का कैनवास बहुत बड़ा है. यह दृश्य और […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 12, 2019 7:43 AM
पीयूष पांडे
व्यंग्यकार
pandeypiyush07@gmail.com
भागना सेहत के लिए अच्छा होता है और भागते-भागते देश की एकता बोनस में मिल जाये, तो इससे अच्छा क्या हो सकता है. भागना एक क्रिया है. किंतु देश की अधिसंख्य आबादी के लिए भागना एक ‘क्रीड़ा’ भी है.
भागने की इस क्रीड़ा का कैनवास बहुत बड़ा है. यह दृश्य और अदृश्य दोनों ही रूप में खेली जा रही है. बस, ट्रेन और मेट्रो पकड़ने के दौरान लाखों लोग इसमें संलग्न नजर आते हैं, जबकि हजारों युवा हीरो बनने के लिए मुंबई भाग रहे हैं.
कई युवा ऐसे हैं, जो धीरुभाई अंबानी बनने के लिए घर से भाग रहे हैं. उन्हें लगता है कि उनके घरवाले दुकान पर जबरदस्ती बैठाकर उनके साथ जुल्म कर रहे हैं, जबकि उनका पोंटेशियल अंबानी से कम नहीं. भागकर शादी करना तो देश के युवाओं का पुराना शौक है.
कुछ विद्वान कहते हैं कि भागकर शादी दहेज प्रथा को खत्म करने के लिए की जाती है. कुछ अन्य विद्वान मानते हैं कि भागकर शादी में एक रोमांच है. चूंकि विवाह होने के बाद रोमांच की कोई गुंजाइश नहीं होती, इसलिए कई युवा इस विकल्प को पहले ही अपनाते हैं.
मैदान पर दौड़नेवाले छोटे-मोटे धावक स्वर्ण पदक से संतोष कर सकते हैं. लेकिन, चतुर धावक बड़े लक्ष्य पर निशाना साधते हैं. जैसे, कई युवा देश में पढ़ाई-लिखाई के बाद इंटरनेशनल धावक बनते हुए अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा आदि की तरफ निकल लेते हैं.
डॉलर-पाउंड में कमाई के लिए. कभी-कभी मां-बाप से मिलने या शादी वगैरह के लिए वे पुन: स्वदेश लौटते हैं, लेकिन उनके भीतर का इंटरनेशनल रेसर उन्हें देश में रहने नहीं देता. प्राइवेट कंपनियों के कर्मचारी हर चौथे महीने दूसरी कंपनी की तरफ भाग लेते हैं. इससे उनका वेतन भी बढ़ता चलता है. थोड़ा वरिष्ठ होने के बाद वे भागते नहीं, सिर्फ भागने का हल्ला मचाते हैं. इंक्रीमेंट से कुछ दिन पहले कंपनियों में हर दूसरा शख्स भागने का हल्ला मचा रहा होता है. उसके बाद पता चलता है कि हल्ला मचानेवाला एक भी शख्स भाग नहीं पाया.
भागने के खेल में अपना ही मजा है. बहुत सारे राजनेता ताउम्र एक पार्टी से दूसरी पार्टी में भागते रहते हैं. भागते हुए उनकी विचारधारा भी भागती है. इस भागदौड़ में कभी-कभी विचारधारा चित्त हो जाती है. फिर राजनेता बिना विचारधारा के ही भागता है.
अब जो भागत है, सो पावत है- सत्ता, पैसा, ठेका. नेताओं को भागने की अच्छी प्रैक्टिस होती है, इसलिए अकसर वे समस्याओं से दूर भागते हैं. किसान खुदकुशी कर रहे हों, तो वे वहां से भाग जाते हैं. हां, अगर कहीं फोटो खींचाने का कार्यक्रम हो, तो वे भागकर तुरंत वहां पहुंच जाते हैं.
भागने के खेल में जो खिलाड़ी विशेषज्ञता हासिल कर लेते हैं, वे बैंकों का अरबों लेकर विदेश भाग जाते हैं. सरकार कहती है कि वह भी उनके पीछे भागेगी, लेकिन भागनेवाला जानता है कि अगर दो खिलाड़ी एक ही रफ्तार पर आगे-पीछे भाग रहे हों, और आगेवाला खिलाड़ी पहले से ही सौ किमी आगे हो, तो उसे पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है.

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